एमबीएम छात्रों की खोज- मल्टीटास्किंग एग्रीकल्चर रोबोट - बदल देगा किसानों की कार्यशैली

Jitendra Kumar Sinha
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खेती और किसान को लेकर जब भी बात होती है, तो आमतौर पर मिट्टी, मेहनत, मौसम और मुनाफे की चर्चा करते हैं। लेकिन जब तकनीक की बात आती है, तो आज भी भारत के अधिकांश किसान उससे काफी दूर नजर आते हैं। आधुनिक उपकरणों और डिजिटल समाधानों की लागत, प्रशिक्षण की कमी और जागरूकता का अभाव देश के कृषि क्षेत्र को पीछे छोड़े हुए हैं। लेकिन इसी देश में कुछ युवा अपनी शिक्षा को जमीन से जोड़ रहा हैं, और खेती को एक नये युग में ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक उदाहरण राजस्थान के जोधपुर स्थित एमबीएम यूनिवर्सिटी के छह छात्रों ने प्रस्तुत किया है।

एमबीएम यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष के बीई छात्रों मुरलीधर सिखवाल, तनु जांगिड़, प्रियंका चौहान, निशा चौधरी, राजवर्धन सिंह और यश गौड़ ने मिलकर एक ऐसा मल्टीटास्किंग एग्रीकल्चर रोबोट विकसित किया है, जो खेती के लगभग सभी प्रमुख कार्यों को अकेले कर सकता है। यह रोबोट जुताई से लेकर सिंचाई, बीज बुवाई, कीटनाशक छिड़काव और खरपतवार हटाने जैसे कार्यों को भी कर सकता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसे किसान एक मोबाइल ऐप के माध्यम से कहीं से भी नियंत्रित कर सकता हैं। यानि यह केवल एक मशीन नहीं है, बल्कि एक स्मार्ट सहायक है, जो किसानों की मेहनत को कम, और उनकी उत्पादकता को कई गुना अधिक कर सकता है।

इस रोबोट की संकल्पना, डिजाइन और कार्यप्रणाली को पूरी तरह से भारतीय किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसकी डिजाइनिंग से लेकर कोडिंग तक का हर हिस्सा इन छात्रों ने स्वयं किया है। इसकी कार्यक्षमता और लागत को देखते हुए यह प्रोटोटाइप भविष्य में एक क्रांतिकारी उत्पाद बन सकता है, जो खासकर छोटे और मध्यम स्तर के किसानों के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इस प्रोजेक्ट को एमबीएम यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल विभाग के प्रोफेसर संतोष मीणा और विभागाध्यक्ष डॉ. एम.के. भास्कर के मार्गदर्शन में विकसित किया गया है।

इस रोबोट में ईएसपी32 माइक्रोकंट्रोलर का इस्तेमाल किया गया है, जो मोबाइल ऐप से दिए गए निर्देशों को पढ़कर संबंधित यंत्रों तक पहुंचाता है। इसके बाद विभिन्न मोटर्स और सेंसर्स की मदद से यह खेत में सटीक काम करता है। उदाहरण के तौर पर, बीज बुवाई की प्रक्रिया में यह रोबोट मिट्टी की गहराई, नमी और तापमान के आधार पर बीजों की दूरी और गहराई तय करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है। वहीं सिंचाई के लिए यह नमी सेंसर की मदद से यह निर्धारित करता है कि कहां कितनी पानी की आवश्यकता है। इससे जल की बचत होगी और फसल को जरूरी मात्रा में ही पानी मिलेगा।

कीटनाशक छिड़काव के लिए इसमें ‘सो सिस्टम’ (Spray Optimization System) लगाया गया है, जो फसल की ऊंचाई, प्रकार और कीटों की जानकारी के आधार पर कीटनाशकों का सटीक छिड़काव करता है। यह न केवल महंगे कीटनाशकों की बर्बादी को रोकता है, बल्कि खेत में फैलने वाले रसायनों की मात्रा को भी कम करता है, जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

रोबोट में लगे सोलर पैनल से ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाता हैं। यानि किसानों को बार-बार बैटरी चार्ज करने या डीजल खर्च करने की जरूरत नहीं होगी। सौर ऊर्जा से संचालित यह मशीन दिनभर खेत में कार्य कर सकता है। यही नहीं, यह रोबोट GPS सिस्टम से भी लैस है, जिससे किसान अपनी जमीन की मैपिंग कर सकता हैं और अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार विशिष्ट कार्य निर्धारित कर सकता हैं।

इस परियोजना का सबसे प्रेरणादायक पक्ष यह है कि यह सब कुछ छात्रों ने सीमित संसाधनों में किया है। उनके पास न तो बड़ी कंपनियों जैसी सुविधाएं थीं और न ही महंगे उपकरण, लेकिन उनके पास थी जमीनी समझ और कुछ कर गुजरने की ललक। उन्होंने स्क्रैप मटेरियल और स्थानीय संसाधनों से यह रोबोट तैयार किया है। यही कारण है कि इसका संभावित लागत भी अन्य कृषि मशीनों की तुलना में काफी कम है, जिससे इसकी पहुंच आम किसान तक हो सकता है।

छात्रों ने विशेष रूप से इस बात पर ध्यान दिया है कि यह मशीन ‘किसान फ्रेंडली’ हो। मोबाइल ऐप का इंटरफेस इतना सरल और सहज हो कि एक सामान्य स्मार्टफोन रखने वाला कोई भी किसान बिना तकनीकी जानकारी के इसे चला सके। ऐप में केवल कुछ सरल बटन और विकल्प हैं, जैसे "जुताई शुरू करें", "बीज बोइए", "सिंचाई चालू करें" या "कीटनाशक छिड़काव करें"। इसके अलावा यह ऐप हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध कराया गया है, जिससे ग्रामीण किसान इसे आसानी से समझ सके।

देश में खेती को लेकर सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, लागत में वृद्धि और उत्पादकता में गिरावट। मजदूरों की कमी, रासायनिक खाद-बीजों की महंगाई और जल संकट ने खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। लेकिन इस तरह की तकनीकी खोज इन समस्याओं का समाधान बन सकता है। यदि यह मल्टीटास्किंग एग्रीकल्चर रोबोट बड़े स्तर पर अपनाया जाता है, तो किसान अपने खेतों में 50% तक समय और लागत बचा सकता हैं, साथ ही उत्पादन में 30% से अधिक की वृद्धि भी संभव है।

इस इनोवेशन को देखकर स्पष्ट होता है कि यदि युवा शिक्षा को केवल डिग्री तक सीमित न रखा जाए और समाज की वास्तविक समस्याओं से इसे जोड़ दिया जाए, तो देश के लिए कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता हैं। यह परियोजना केवल एक मशीन नहीं है, बल्कि यह एक सोच है, सोच जो खेती को स्मार्ट, सतत और भविष्य-संवादी बना सकता है।

अब जब यह प्रोटोटाइप अपने परीक्षण चरण में सफल हो चुका है, तो छात्र इसे स्टार्टअप के रूप में आगे बढ़ाने की योजना बना रहा है। वह चाहता हैं कि यह रोबोट देशभर के किसानों तक पहुंचे और उनकी खेती की शैली में क्रांतिकारी बदलाव लाए। इसके लिए वह राज्य सरकार, कृषि विभाग और स्टार्टअप इनक्यूबेटर्स से भी संपर्क में हैं। यदि उन्हें सरकारी सहायता, निवेश और उद्योग से जुड़ाव मिल जाता है, तो यह भारत के कृषि क्षेत्र में एक नया अध्याय खोल सकता है।

यह मॉडल न केवल भारत के लिए, बल्कि दुनिया के उन विकासशील देशों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, जहां किसान तकनीक से वंचित हैं। अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में यह मॉडल किसानों को स्मार्ट खेती की ओर प्रेरित कर सकता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि एमबीएम यूनिवर्सिटी के इन छात्रों ने एक ऐसा बीज बोया है, जो आने वाले समय में भारतीय कृषि की जमीन को ही नहीं, उसकी दिशा को भी बदल देगा। यह मल्टीटास्किंग एग्रीकल्चर रोबोट आधुनिक तकनीक और ग्रामीण जीवन के बीच एक सेतु है, जो खेतों में मेहनत करने वाले हाथों को अब स्मार्टफोन से जोड़ रहा है।



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