आरसीबी की जीत पर मातम में बदली बेंगलुरु की शाम - भाजपा राज्यपाल से मांग करेगी - सरकार को बर्खास्त किया जाए

Jitendra Kumar Sinha
0



बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर जो हुआ, उसे सामान्य प्रशासनिक लापरवाही कहना न केवल त्रासदी को छोटा बनाना होगा, बल्कि उन मासूम जिंदगियों के साथ अन्याय होगा, जिन्होंने महज अपनी टीम की जीत का जश्न मनाने के लिए अपनी जान गंवा दी। भगदड़ की यह घटना अचानक नहीं थी, यह पूर्व निर्धारित, सरकार द्वारा प्रायोजित एक अमानवीय त्रासदी थी, जिसे रोकने की जिम्मेदारी खुद सरकार पर थी। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने इसे "सरकार प्रायोजित हत्या" करार देते हुए मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या और उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार से इस्तीफे की मांग किया है।

4 जून की शाम, जब रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की जीत का जश्न पूरे शहर में मनाया जा रहा था, चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भारी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। प्रशंसकों की संख्या, नियंत्रण से बाहर हो चुका था, और किसी भी तरह की सुरक्षा व्यवस्था का, पूरी तरह अभाव था।

अपराह्न 3:15 बजे भीड़ बेकाबू हो गई थी और एक छोटी सी अफवाह ने भगदड़ को जन्म दे दिया। लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। किसी ने भी यह नहीं सोचा कि लोग दब रहे हैं, मर रहे हैं।

शाम 4:30 बजे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पहले से तय कार्यक्रम में शिरकत करना था। मृतकों की संख्या सात हो चुकी थी।

शाम 6:30 बजे उपमुख्यमंत्री स्टेडियम पहुंचते हैं और वहां से आरंभ होती है आतिशबाजियों की वह रात, जिसमें करीब एक करोड़ रुपये की पटाखे जलाए गए। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठता है कि क्या यह जश्न था या मृतकों का अपमान?

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सी. नारायणस्वामी ने गांधी प्रतिमा के सामने प्रदर्शन करते हुए कहा कि "यह सरकार प्रायोजित हत्या है। जिनके पास नैतिकता होती तो, वे 11 लाशों पर खड़े होकर जश्न नहीं मनाते।" प्रदर्शन के दौरान भाजपा नेताओं ने हाथों में तख्तियां लीं हुई थी, जिस पर लिखा था- "गुनहगार कौन?" , "सरकार या राक्षस?", "हमारे बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन?"। नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा है कि "मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री राज्य के अपराधी हैं। उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए।"

भाजपा नेताओं ने उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार को आरसीबी का "ब्रांड एंबेसडर" बताते हुए आरोप लगाया है कि उन्होंने एक राजनेता की तरह नहीं, बल्कि प्रचारक की तरह व्यवहार किया है। नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक के अनुसार "जब लोगों की मौत हो रही थी, उस समय उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार जीत के कार्यक्रम में झूम रहे थे। क्या उन्हें मरने वालों की चीखें सुनाई नहीं दीं?"

राजनीतिक हलकों में यह प्रश्न बार-बार उठाया जा रहा है कि क्या इस तरह की घटनाओं पर केवल इस्तीफा लेना ही पर्याप्त है? या फिर सरकार की जवाबदेही तय की जानी चाहिए?, क्या ऐसे आयोजनों की पूर्व अनुमति और सुरक्षा मूल्यांकन अनिवार्य नहीं होना चाहिए?, क्या प्रशासन की नाकामी को ढकने के लिए केवल पांच पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना पर्याप्त है? नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक का कहना है कि "यह सरकार न केवल नैतिकता खो चुकी है, बल्कि अब कानून की नजर में भी आरोपी बन चुकी है।"

इस भगदड़ में जिन 11 लोगों की जान गई, उनमें अधिकतर युवा थे। कुछ पहली बार स्टेडियम के पास किसी उत्सव में शामिल होने आए थे। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। एक पीड़ित माँ कहती है कि “मेरा बेटा बस अपनी टीम की जीत देखने गया था। उसने क्या गुनाह किया था?” कई परिवारों को अभी तक मुआवजे की रकम तक नहीं मिली है। पोस्टमार्टम के बाद भी सरकारी रवैया उदासीन रहा है।

इस घटना से जुड़े तमाम तथ्यों की जांच करने पर कई प्रश्न उठते हैं, क्या आयोजकों को पहले से अनुमान नहीं था कि इतनी भीड़ होगी?, पुलिस ने कार्यक्रम को अनुमति क्यों दी, जब क्षमता से अधिक लोग आ रहे थे?, क्या मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को भगदड़ की सूचना नहीं मिली? इस पर भाजपा नेता का तीखा प्रहार था कि “अगर उन्हें सूचना नहीं मिली, तो क्या उनका प्रशासन अंधा है? अगर मिली, तो क्या वे पत्थरदिल हैं?”

इस घटना के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त बी. दयानंद सहित पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन भाजपा का कहना है कि पुलिस को बलि का बकरा बनाया गया है। नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक का बयान है कि “पुलिस ने अनुमति नहीं दी थी। फिर भी जश्न मनाया गया। अब उन्हीं पर दोष मढ़ा जा रहा है। हम पुलिस के साथ हैं।”

जब पूरा शहर शोक में डूबा था, तब स्टेडियम में करीब एक करोड़ रुपये की आतिशबाजी की गई। प्रश्न यह उठता है कि यह पैसा कहां से आया?, क्या यह खर्च सरकार ने किया?, क्या सरकार संवेदनहीन हो चुकी है?
आम जनता और मृतकों के परिजनों ने इसे “हृदयहीनता की पराकाष्ठा” बताया है।

भाजपा नेताओं ने उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार की तुलना विजय माल्या से करते हुए कहा है कि “विजय माल्या ने RCB की नींव रखी थी और अब सिद्धरामय्या-शिवकुमार उस विरासत को संभाल रहे हैं- सिर्फ शराब और शोर की विरासत।”

भाजपा ने ऐलान किया है कि वह जल्द ही राज्यपाल से मिलकर मांग करेगी कि सरकार को बर्खास्त किया जाए। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पर आपराधिक मामला दर्ज हो। मृतकों के परिवारों को न्यूनतम 50 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए, और एक न्यायिक जांच कमेटी गठित की जाए।

घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी सरकार की आलोचना तेज हुई है। #RCBDisaster ट्रेंड करने लगा। युवाओं ने कहा है कि  “हम क्रिकेट प्रेमी हैं, पर मौत का उत्सव नहीं।” एक ट्विटर यूजर ने लिखा है कि “अगर आपकी सरकार के रहते हुए लोग महज जश्न में मारे जाएं, तो आप उस कुर्सी पर बैठने के लायक नहीं।”

बेंगलुरु की यह घटना सिर्फ एक भगदड़ नहीं थी, बल्कि एक चेतावनी है-  एक ऐसी चेतावनी जो दर्शाती है कि जब सरकारें संवेदनशील नहीं होती हैं, तो उत्सव मातम में बदल जाते हैं।यह सवाल केवल कर्नाटक की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि देशभर के लिए एक आइना भी है कि- क्या हमारे नेताओं की प्राथमिकता जनता है या प्रचार?, क्या संवेदना अब सत्ता के भार से दब चुकी है? यदि इन 11 मौतों पर सिर्फ राजनीति होती रही, और जिम्मेदार बचते रहे, तो यह लोकतंत्र का अपमान होगा।

सत्ता एक जिम्मेदारी होती है, जश्न नहीं। अगर सरकारें मातम के बीच हँसती हैं, तो लोकतंत्र रोता है। बेंगलुरु का यह दिन, इतिहास में एक काले अध्याय की तरह याद किया जाएगा क्योंकि जिस दिन जहाँ पटाखे गूंजते रहे और वहीं इंसानियत दम तोड़ती रही।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top