राजस्थान के सीमावर्ती जिला जालोर में 5 और 6 जून को इतिहास रच दिया गया। वर्षों से भारत में शरण लिए हुए 11 पाकिस्तान मूल के नागरिकों को अब "भारतीय नागरिक" होने का गौरव प्राप्त हुआ है। यह अवसर उनके जीवन में नई पहचान, सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक बन गया है।
राज्य सरकार के निर्देश पर जालोर जिला प्रशासन ने 5-6 जून को दो दिवसीय नागरिकता शिविर आयोजित किया। इसका उद्देश्य वर्षों से भारत में रह रहे पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करना था। यह शिविर जालोर जिला कलक्टर कार्यालय में संपन्न हुआ, जहां नागरिकता के लिए आवश्यक प्रक्रिया पूरी की गई।
शिविर के समापन समारोह में जिला कलक्टर डॉ. प्रदीप के. गावंडे, जिला पुलिस अधीक्षक ज्ञानचन्द्र यादव एवं अतिरिक्त जिला कलक्टर राजेश मेवाड़ा की उपस्थिति रही। इन अधिकारियों ने व्यक्तिगत रूप से नागरिकता प्रमाण पत्र प्रदान किए और नव-नागरिकों को शुभकामनाएँ दीं। यह आयोजन प्रशासनिक मानवीयता और संवेदनशीलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण बना। जिन 11 लोगों को नागरिकता प्रदान की गई, वे हैं, लीलावंती, मक्खन रेबारी, भागी, गिरधारी सिंह, रानी, सीताराम, गंगाराम, बछी रेबारी, ज्ञानसिंह, सबलसिंह और सवाई। यह सभी लोग लंबे समय से भारत में शांतिपूर्ण जीवन यापन कर रहे थे और नागरिकता के लिए आवेदन किए हुए थे। अब इनकी वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हुई।
भारतीय नागरिक बनने के बाद अब ये लोग मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, सरकारी योजनाओं का लाभ और रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अब ये लोग देश की मुख्यधारा में शामिल होकर सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
इस नागरिकता अभियान से यह साबित हुआ है कि भारत केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि संवेदनाओं और सह-अस्तित्व का संगम है। यह कदम राजस्थान की सीमाओं पर बसे उन हजारों परिवारों के लिए भी आशा की किरण है जो वर्षों से अपनी पहचान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
जालोर में 11 पाकिस्तानी नागरिकों को भारतीय नागरिकता मिलना केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि इंसानियत और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत है। यह कहानी न सिर्फ इन 11 लोगों की है, बल्कि एक राष्ट्र की विशाल हृदयता की भी है जो अपने दरवाजे जरूरतमंदों के लिए सदैव खुला रखता है।