ब्रह्मोस मिसाइलें दुश्मन के एयरबेस, कमांड सेंटर और बंकरों को निशाना बनाती हैं

Jitendra Kumar Sinha
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"ऑपरेशन सिंदूर" जैसे सैन्य अभियानों में जब भारत की सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइलें दुश्मन के एयरबेस, कमांड सेंटर और बंकरों को निशाना बनाती हैं, तब एक बड़ा प्रश्न लोगों के मन में आता है कि “क्या होगा यदि ऐसी कोई मिसाइल पाकिस्तान के परमाणु हथियार भंडार से टकरा जाए? क्या यह एक नाभिकीय विस्फोट को जन्म देगा? या केवल रेडियोधर्मी रिसाव का खतरा होगा?”

परमाणु हथियार अत्यंत जटिल यंत्र होते हैं, जिनमें फिशन (विभाजन) और फ्यूजन (संलयन) तकनीक का प्रयोग होता है। इन्हें सक्रिय करने के लिए बेहद सटीक तकनीकी अनुक्रम और विशेष कोडेड कमांड की आवश्यकता होती है। केवल विस्फोट या गर्मी से यह बम नहीं फटता है। हर परमाणु हथियार में Permissive Action Links (PALs) होते हैं — ये इलेक्ट्रॉनिक लॉक होते हैं जो हथियार को किसी गैर-अधिकृत उपयोग से रोकता हैं। यह तंत्र इतना संवेदनशील होता है कि यदि कोई गलत कोड डाला जाए तो हथियार निष्क्रिय हो जाता है।

परमाणु हथियारों को अत्यधिक संरक्षित, गहराई में स्थित रीइन्फोर्स्ड कंक्रीट और स्टील बंकरों में रखा जाता है। इनकी दीवारें कई मीटर मोटी होती हैं और इन्हें बंकर बस्टर मिसाइलों से भी बचाने की योजना बनाई जाती है। इसकी सुरक्षा के तीन स्तर भौतिक सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा और निगरानी प्रणाली होते हैं। इन बंकरों में निरंतर बिजली आपूर्ति, तापमान नियंत्रण और वेंटिलेशन सिस्टम होता है ताकि हथियार स्थिर स्थिति में रहें और कोई रिसाव न हो।

ब्रह्मोस मिसाइल की विशेषता है कि इसकी गति 2.8 से 3.0 मैक (सुपरसोनिक), रेंज 300-800 किलोमीटर, मारक क्षमता बंकर बस्टर प्रकार के वेरिएंट और नेविगेशन इनर्शियल और जीपीएस आधारित, होती है। ब्रह्मोस मिसाइल को ऐसे बंकरों पर हमला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो सघन कंक्रीट और स्टील संरचना में छिपे हों। हालांकि यह बंकरों को नष्ट कर सकता है, लेकिन इससे परमाणु बम विस्फोट नहीं कर सकते हैं। 

किसी भी सुपरसोनिक मिसाइल जैसे ब्रह्मोस मिसाइल के हमले से परमाणु विस्फोट नहीं हो सकता है, क्योंकि बम को सक्रिय करने के लिए विशेष कमांड जरूरी होता है। विस्फोटक का निर्माण नियंत्रित और समन्वित प्रक्रिया से होता है। बिना सही अनुक्रम के केवल कोर टूट सकता है, लेकिन विस्फोट नहीं हो सकता है। यदि विस्फोट के कारण यूरेनियम या प्लूटोनियम कोर टूट या बिखर जाता है तो रेडियोधर्मी रिसाव की संभावना होती है। यह स्थिति डर्टी बम जैसी होती है। रेडियोधर्मी रिसाव की स्थिति में तात्कालिक असर हवा में रेडियोधर्मी तत्वों का घुलना, निकटवर्ती सैनिकों और नागरिकों का विकिरण संपर्क तथा तत्काल स्वास्थ्य प्रभाव जैसे मतली, उल्टी, त्वचा जलन दिखेगा। लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव में  कैंसर और जेनेटिक समस्याएं, भूमि और जलस्रोतों का प्रदूषण, हजारों वर्षों तक क्षेत्र को 'नो-गो ज़ोन' घोषित करना पड़ेगा। 

परमाणु हथियारों को अत्यधिक सुरक्षा में रखा जाता है और इसे 'सुरक्षित' रखने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता  है असामयिक या अनजाने विस्फोट से बचाव, आतंकी या अनाधिकृत उपयोग को रोकना और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक और विधिक दायित्वों का पालन करना। 

यदि ऑपरेशन सिंदूर जैसा कोई अभियान परमाणु भंडार के नजदीक हमला करता है, तो इसका उद्देश्य केवल सामरिक संरचनाओं को नष्ट करना है, परमाणु हथियारों को नहीं। जनरल कमांड या रक्षा मंत्रालय की नीति यह होती है कि ऐसे किसी भी हमले में रेडियोधर्मी खतरे को न्यूनतम रखा जाए।

1980 के दशक में अमेरिकी वायुसेना ने ऐसे कई अभ्यास किए थे जिसमें यह सिद्ध हुआ था कि कोई भी पारंपरिक विस्फोट परमाणु विस्फोट नहीं कर सकता है। MIT और Stanford के विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना सही ट्रिगर मैकेनिज्म के परमाणु विस्फोट असंभव है। IAEA मानक के अनुसार, हर हथियार में Failsafe और Zero-Fire Protocol होता है।

जब ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें दुश्मन के एयरबेस और बंकरों पर हमला करती हैं, तब आम जनमानस में नाभिकीय विस्फोट की आशंका उठना स्वाभाविक होता है। लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों और सुरक्षा संरचनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि परमाणु हथियार अत्यधिक सुरक्षित होते हैं। मिसाइल हमला परमाणु विस्फोट नहीं करवा सकता है। अधिकतम खतरा केवल रेडियोधर्मी रिसाव और पर्यावरण प्रदूषण का हो सकता है।

भारत जैसे जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र जब भी किसी सैन्य कार्रवाई को अंजाम देता है, तो वह केवल लक्ष्य तक सीमित नहीं होता है, बल्कि इसके परिणामों का भी गहन अध्ययन किया जाता है। "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान भी रणनीति यह रही कि आम नागरिकों, पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पूर्ण सम्मान हो।



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