प्रत्येक वर्ष 12 जून को “विश्व बाल श्रम निषेध दिवस” के रूप में मनाया जाता है, जो समाज को यह याद दिलाने का अवसर देता है कि बच्चों का स्थान स्कूलों में है, कार्यस्थलों पर नहीं। इसी भावना के साथ इस वर्ष बिहार सरकार के गृह विभाग ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए बाल श्रम के खिलाफ सशक्त संदेश देने के उद्देश्य से शपथ ग्रहण कार्यक्रम का आयोजन किया। विभाग के अपर मुख्य सचिव अरविन्द कुमार चौधरी ने, कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों और कर्मियों को शपथ दिलाया और बाल अधिकारों के संरक्षण की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराया।
श्री चौधरी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्य को बाल श्रम मुक्त बनाना सिर्फ कानूनी या प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व भी है। उन्होंने सभी अधिकारियों से आह्वान किया कि वे इस मिशन को केवल औपचारिकता न मानें, बल्कि पूरी ईमानदारी और संवेदनशीलता से इसे अमल में लाएं। शपथ में शामिल सभी कर्मियों ने यह वचन दिया है कि वे किसी भी रूप में बाल श्रम का समर्थन नहीं करेंगे, न ही इसे नजरअंदाज करेंगे। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे से श्रम कार्य नहीं कराया जाएगा, चाहे वह घरेलू हो, व्यावसायिक हो या औद्योगिक।
यह शपथ केवल औपचारिक वक्तव्य नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन की ओर उठाया गया ठोस कदम था। जब सरकारी तंत्र खुद को इस प्रकार की जिम्मेदारी के लिए प्रतिबद्ध करता है, तो यह समाज के अन्य हिस्सों को भी प्रेरित करता है। बाल श्रम की समस्या केवल आर्थिक मजबूरी या सामाजिक उपेक्षा का परिणाम नहीं है, यह जागरूकता की कमी और सामाजिक संवेदनहीनता की उपज भी है। ऐसे में जब एक उच्च स्तरीय सरकारी विभाग यह संदेश देता है कि बच्चों का बचपन छीनना एक अपराध है, तो यह निश्चित ही एक परिवर्तन की शुरुआत हो सकता है।
यह पहल अन्य विभागों और संस्थाओं के लिए भी एक उदाहरण है कि कैसे प्रशासनिक स्तर पर नीतिगत संकल्प से सामाजिक बदलाव की नींव रखी जा सकती है। बाल श्रम की समाप्ति सिर्फ सरकारी आदेशों से नहीं होगा, इसके लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक और प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। जब हर नागरिक यह संकल्प लेगा कि वह किसी भी बच्चे से श्रम कार्य नहीं कराएगा और उनके लिए शिक्षा व पोषण का वातावरण सुनिश्चित करेगा, तभी सही मायनों में भारत बाल श्रम मुक्त राष्ट्र बन सकेगा।