जब किसी लोकतांत्रिक देश की बागडोर जनता द्वारा चुनी गई सरकार के बजाय कुछ अदृश्य ताकतों के हाथों में हो, तो प्रश्न उठता है कि क्या सत्ता सच में जनता के हाथों में है? ऐसे ही सवालों से जुड़ा एक शब्द है "डीप स्टेट"। यह शब्द जितना रहस्यमयी लगता है, उतनी ही जटिल होता है इसकी हकीकत।
‘डीप स्टेट’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1990 के दशक में तुर्की में हुआ था। तुर्की भाषा के "डेरिन डेवेलेट" (Derin Devlet) से निकले इस शब्द का अर्थ है – "गहराई में छिपी सरकार"। यह ऐसे तंत्र को दर्शाता है जो लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के समानांतर चलता है, लेकिन उसके लिए जनता की जवाबदेही नहीं होती है। तुर्की में यह शब्द सेना, खुफिया एजेंसियों और नौकरशाही के उस गठजोड़ के लिए इस्तेमाल हुआ है जो पर्दे के पीछे रहकर सरकार को नियंत्रित करता था। धीरे-धीरे यह शब्द वैश्विक राजनीति में भी प्रवेश कर गया है।
इक्कीसवीं सदी में अमेरिका में भी ‘डीप स्टेट’ का उल्लेख तब सामने आया जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एफबीआई और सीआईए जैसे संस्थानों पर उनकी सरकार को कमजोर करने का आरोप लगाया। ट्रंप समर्थकों का मानना था कि वाशिंगटन की नौकरशाही, मीडिया और सुरक्षा एजेंसियां मिलकर एक ऐसा ढांचा बना चुका हैं जो राष्ट्रपति की नीतियों को लागू नहीं होने देता है।
आज के समय में पाकिस्तान को 'डीप स्टेट' की सबसे सटीक मिसाल माना जाता है। वहां की सेना, आईएसआई (Inter-Services Intelligence), नौकरशाही और न्यायपालिका एक ऐसा जटिल नेटवर्क बनाते हैं जो सरकार के फैसलों को सीधे या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है। पाकिस्तानी राजनीति में सेना का दखल कोई नया विषय नहीं है, वह प्रधानमंत्री को बना भी सकता है और गिरा भी सकता है।
'डीप स्टेट' का हिस्सा बनने के लिए किसी पद पर होना जरूरी नही होता है। इसमें शामिल हो सकता हैं, सेना के अधिकारी, खुफिया एजेंसियों के प्रमुख, वरिष्ठ नौकरशाह, जज, रसूखदार राजनेता, मीडिया मालिक, कार्पोरेट घराने और यहां तक कि संगठित अपराध से जुड़े लोग। ये सभी मिलकर एक ऐसा नेटवर्क बनाते हैं जो अदृश्य रूप से सरकार को प्रभावित या नियंत्रित करता है।
कुछ लोग ‘डीप स्टेट’ को महज एक षड्यंत्र सिद्धांत मानते हैं। उनका कहना है कि यह अवधारणा अतिशयोक्तिपूर्ण है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वायत्तता को निशाना बनाने के लिए गढ़ी गई है। लेकिन जब दुनिया भर में सरकारों के पीछे चल रही ‘सत्ता की अदृश्य राजनीति’ को देखते हैं, तो यह विचार पूरी तरह से निराधार नहीं लगता है।
‘डीप स्टेट’ कोई आधिकारिक संस्था नहीं है, बल्कि यह सत्ता का एक ऐसा छुपा हुआ चेहरा है जो दिखता नहीं है, लेकिन असर करता है। लोकतंत्र की आत्मा पारदर्शिता और जवाबदेह है, और 'डीप स्टेट' इन्हीं सिद्धांतों को चुनौती देता है। यह जरूरी है कि आम जनता जागरूक रहे, ताकि सत्ता की बागडोर हमेशा उन हाथों में रहे जिन्हें उन्होंने खुद चुना है, न कि उन हाथों में जो अंधेरे में अपनी ताकत दिखाता हैं।