राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित गंगा मैया का मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आस्था, स्थापत्य कला और सांप्रदायिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण भी है। यह मंदिर अनूठा इसलिए भी है क्योंकि जहां देशभर में गंगा मंदिरों की भरमार है, वहीं भरतपुर का यह मंदिर राजवंशीय इतिहास, मुस्लिम शिल्पकार की मूर्ति निर्माण कला, और चार पीढ़ियों के तप और समर्पण से निर्मित हुआ है। यह गाथा केवल एक मंदिर निर्माण की नहीं, बल्कि यह गाथा है श्रद्धा से जन्मी संकल्प शक्ति की, जिसने 90 वर्षों तक अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा।
भरतपुर रियासत के महाराजा बलवंत सिंह के जीवन में संतान नहीं था। राजदरबार में जब इस विषय पर चिंता गहराई, तो राजपुरोहित ने सलाह दी कि वह हरिद्वार के हर की पौड़ी जाकर गंगा मैया से संतान प्राप्ति की कामना करें। बलवंत सिंह ने गंगा तट पर गहन तप कर प्रार्थना किया। कुछ समय बाद उन्हें पुत्र के रूप में महाराजा जसवंत सिंह की प्राप्ति हुई। आभार स्वरूप उन्होंने यह संकल्प लिया कि वे भरतपुर में गंगा मैया का भव्य मंदिर बनवाएंगे।
महाराजा बलवंत सिंह ने वर्ष 1845 में मंदिर की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने बंसी पहाड़पुर की पहाड़ियों से लाई गई विशेष पत्थरों का चयन किया, जो न केवल मजबूत था बल्कि उस समय के स्थापत्य के लिए उपयुक्त भी माना जाता था। इस कार्य में कुशल शिल्पकारों और कारीगरों की टीम को लगाया गया था, जो वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रांकन और आभूषणकारी कला में माहिर थे।
यह मंदिर सिर्फ बलवंत सिंह के जीवनकाल में ही पूर्ण नहीं हो सका। निर्माण कार्य चार पीढ़ियों तक चलता रहा। हर उत्तराधिकारी ने मंदिर निर्माण को राजधर्म और आस्था का प्रतीक मानकर कार्य को आगे बढ़ाया। मंदिर के निर्माण में करीब 90 वर्ष का समय लगा। इसका पूर्ण निर्माण 1935 में हुआ, और 22 फरवरी 1937 को मंदिर में गंगा माता की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गई।
यह मंदिर केवल स्थापत्य कला का उदाहरण नहीं है बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द का भी प्रतीक है। गंगा माता की जो मूर्ति मंदिर में विराजित है, उसका निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार ने किया था। यह तथ्य अपने आप में अनूठा है, जहां एक हिन्दू राजा ने गंगा मैया के मंदिर का संकल्प लिया, वहीं एक मुस्लिम कलाकार ने धार्मिक भावनाओं के अनुरूप अत्यंत सुंदर प्रतिमा गढ़ी।
मंदिर का ढांचा दो मंजिला है, जो 84 खंभों पर टिका है। खंभों की संख्या हिन्दू धर्म की चौरासी लाख योनियों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। मंदिर का मुख्य भाग मुगल शैली में बना है जबकि पीछला भाग बौद्ध स्थापत्य की शैली में है। यह मिश्रण इसे और भी विशिष्ट बनाता है। मंदिर की छत पर बनी बेल-बूटियों और फूल-पत्तों की नक्काशी, मेहराबों की गढ़ाई, और दीवारों पर बनाई गई धार्मिक आकृतियां दर्शकों को अभिभूत कर देता हैं।
गंगा मंदिर की सबसे विशिष्ट परंपरा यह है कि यहां हर दिन गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। यही नहीं, श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भी गंगाजल ही वितरित किया जाता है। इस कार्य के लिए गंगाजल को लगभग 160 किलोमीटर दूर से विशेष टैंकरों के माध्यम से भरतपुर लाया जाता है और मंदिर की विशाल जल टंकी में संग्रहित किया जाता है। पूरे वर्ष में 15,000 लीटर से अधिक गंगाजल अभिषेक और प्रसाद वितरण में उपयोग होता है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इस अवसर पर भरतपुर के गंगा मंदिर में विशेष पूजा, भव्य महाआरती और दीपदान का आयोजन होता है। इस वर्ष, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा गंगा दशहरा के पावन अवसर पर भरतपुर आए। उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना, महाआरती, और सुजान गंगा नहर पर दीपदान कार्यक्रम में भाग लिया।
गंगा मैया की मूर्ति का विशेष श्रृंगार किया जाता है। उनके कानों में मोम से कुंडल, नाक में नथनी, और भव्य वस्त्रालंकार पहनाया जाता हैं। यह श्रृंगार अत्यंत भक्ति भाव और विधिविधान से होता है। श्रृंगार प्रक्रिया में स्थानीय महिलाएं, कलाकार, और पुजारियों की टोली सम्मिलित होता है, जिससे यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि सामूहिक श्रद्धा का उत्सव बन जाता है।
हर साल हजारों श्रद्धालु भरतपुर आते हैं, और गंगा मंदिर उनके लिए एक विशेष धार्मिक स्थल होता है। मंदिर के साथ-साथ भरतपुर का लोहागढ़ किला, केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य, और राजा-महाराजाओं की विरासत भी उन्हें आकर्षित करता है। राज्य सरकार इस मंदिर को धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयासरत है। आगामी वर्षों में यहां साउंड एंड लाइट शो, धार्मिक संगोष्ठी, और संस्कृति मेलों आयोजित करने की योजना है।
गंगा मंदिर केवल एक हिंदू तीर्थस्थल नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संगम है। जहां एक मुस्लिम शिल्पकार ने देवी की मूर्ति बनाई, वहीं मंदिर निर्माण में राजस्थानी, मुगल और बौद्ध स्थापत्य शैलियों का समन्वय हुआ। यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का एक अमर उदाहरण बन गया है, जो दर्शाता है कि आस्था और कला की कोई जाति, धर्म या भाषा नहीं होती है।
भरतपुर का गंगा मैया मंदिर हमें श्रद्धा, धैर्य, कलात्मकता और एकता का संदेश देता है। जहां राजा बलवंत सिंह का संकल्प, चार पीढ़ियों की तपस्या, और मुस्लिम कारीगर की कला मिलकर एक ऐसे मंदिर का निर्माण किया हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। यह मंदिर न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह भारत की समरसता और आस्था का जीवंत प्रतिमा भी है।