जब हम अंतरिक्ष की ओर देखते हैं, तो हमें वहां असीम विस्तार, अज्ञात रहस्य और अनगिनत तारे दिखाई देता हैं। लेकिन इन तारों के बीच कुछ ऐसे होते हैं, जिनके आसपास नवगठित ग्रह अपनी परिक्रमा में होते हैं, नए जीवन की संभावनाओं और ग्रह निर्माण की प्रक्रिया को समझने की कुंजी लिए हुए। हाल ही में नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (CSA) द्वारा संचालित जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) ने ऐसी ही एक अद्भुत खोज किया है, जहां एक ही तारे, वाईएसईएस-1 (YSES-1) के पास दो नवजात, गैसीय ग्रहों की अलग-अलग प्रकृति सामने आई है।
वाईएसईएस-1, यह नाम जितना सरल लगता है, उतना ही असाधारण है यह तारा। यह हमारी पृथ्वी से लगभग 310 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है, यानि करीब 3,000 खरब किलोमीटर दूर। यह ब्रह्मांडीय दूरी सामान्य समझ से परे है, लेकिन तकनीक के अद्भुत विकास और JWST की इंफ्रारेड दृष्टि के कारण अब यह तारा और इसके आस-पास जन्म ले रहे ग्रह हमारे वैज्ञानिकों की नजरों में आ चुका हैं। इस तारे के चारों ओर दो नवजात ग्रह मौजूद हैं, वह है वाईएसईएस-1 बी और वाईएसईएस-1 सी, दोनों ही विशाल गैसीय ग्रह हैं, जिसकी प्रकृति एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। यह खोज अपने आप में ऐतिहासिक है, क्योंकि अब तक खोजे गए 5,900 एक्सोप्लैनेट्स में से केवल 2% को ही उनकी शैशवावस्था में प्रत्यक्ष देखा जा सका है।
इस तरह की खोज कोई सामान्य घटना नहीं होती है। यह इसलिए संभव हो सका है क्योंकि यह दोनों ग्रह अपने तारे से अपेक्षाकृत बहुत दूर स्थित हैं, सूर्य और नेपच्यून की दूरी से भी 5 से 10 गुना अधिक। आम तौर पर तारा इतना चमकदार होता है कि उसके आसपास के ग्रहों को देखना असंभव हो जाता है, लेकिन इतनी दूरी के कारण तारे की रोशनी JWST के अवलोकन में बाधा नहीं बनी। JWST की इंफ्रारेड तकनीक, और विशेषकर हाई-रेजोल्यूशन स्पेक्ट्रोस्कोपी, ने इन ग्रहों के वायुमंडल में उपस्थित अणुओं की जानकारी प्रदान की। वैज्ञानिकों को इनमें सिलिकेट कण, पानी, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड जैसे महत्वपूर्ण घटक मिला हैं।
वाईएसईएस-1 बी अपने तारे के करीब स्थित ग्रह है, और इसका भार सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (Jupiter) से 14 गुना अधिक है। इसके चारों ओर एक पतली धूल की डिस्क पाई गई है, जिसे ग्रह निर्माण की अंतिम अवस्था माना जा रहा है।
वायुमंडलीय विशेषता है कि पानी और कार्बन मोनोऑक्साइड की पुष्टि, संभवतः जीवन के प्रारंभिक आवश्यक तत्व, तापमान अपेक्षाकृत अधिक और धूल की उपस्थिति इस ग्रह को एक निर्माणाधीन ग्रह के रूप में दर्शाती है यह ग्रह बताता है कि कैसे गैसीय ग्रह बनने के क्रम में धूल और गैस की परतें धीरे-धीरे एक ठोस आकार ग्रहण करती हैं, और इसके बाद एक स्थिर ग्रह अस्तित्व में आता है।
वाईएसईएस-1 सी थोड़ा दूर स्थित ग्रह है और इसका भार बृहस्पति से 6 गुना अधिक है। इसकी सबसे आश्चर्यजनक विशेषता है सिलिकेट क्लाउड्स, यानि बेहद बारीक रेत जैसे कणों से बने बादल। यह अपने आप में एक चौंकाने वाली खोज है। इन बादलों की रचना ऐसी है, मानो यहां रेत की बारिश होती हो। वैज्ञानिकों ने यहां मीथेन, पानी, कार्बन मोनोऑक्साइड और डाईऑक्साइड जैसे अणुओं की मौजूदगी दर्ज किया है। यह ग्रह एक ठंडी, रहस्यमयी और अपेक्षाकृत धीमी विकास प्रक्रिया में है। यह एक ऐसा ग्रह है जो गैसीय ग्रहों के दूसरे प्रकार की विकास प्रक्रियाओं को समझने का अवसर देता है।
सदियों से खगोलशास्त्री यह मानते आए हैं कि ग्रह निर्माण एक सामान्य प्रक्रिया है, जो तारे के चारों ओर धूल और गैस के घूर्णन से शुरू होकर समय के साथ एक निश्चित दिशा में जाता है। लेकिन वाईएसईएस-1 के ये दो ग्रह इस मान्यता को झकझोरता हैं।
डॉ. कीलेन होख का कथन है कि “एक ही तारा, एक जैसे हालात, लेकिन दो ग्रहों का अलग मिजाज। यह दिखाता है कि ग्रह निर्माण की प्रक्रिया में कई फैक्टर कार्य करते हैं जो हम अब तक समझ नहीं पाए थे।”
JWST सिर्फ एक टेलीस्कोप नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड के इतिहास में झांकने का एक माध्यम है। इन नवगठित ग्रहों को देखना सिर्फ वर्तमान की तस्वीर ही नहीं, बल्कि अतीत में झांकना है, एक ऐसा अतीत जहां सौरमंडल का भी जन्म हुआ था। JWST की क्षमता है, इंफ्रारेड डिटेक्शन दूरदराज के और ठंडे पिंडों की पहचान, हाई रेजोल्यूशन स्पेक्ट्रोस्कोपी वायुमंडल की संरचना की गहराई से जांच, और डीप फील्ड इमेजिंग अरबों साल पहले के ब्रह्मांड की झलक।
इस खोज से एक और सवाल उभरता है कि क्या सौरमंडल के जन्म के समय भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा? क्या शनि और बृहस्पति की संरचना में अंतर इसी तरह के विविध वातावरणों का परिणाम है? तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि बृहस्पति एक विशाल गैसीय ग्रह है, जिसके पास मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र और कई उपग्रह हैं। शनि वलयों वाला ग्रह है, लेकिन घनत्व में बृहस्पति से हल्का है। यूरेनस व नेपच्यून आइस जायंट्स जिनकी संरचना अलग है। शायद JWST जैसे उपकरणों के माध्यम से यह समझ पाएंगे कि ग्रहों की विविधता का कारण क्या था।
वाईएसईएस-1 बी और सी में पानी, कार्बन यौगिक और बादल जैसी संरचनाएं जीवन की संभावना की ओर इशारा करता हैं। यद्यपि यह दोनों ही ग्रह विशाल और गैसीय हैं, और पृथ्वी जैसे जीवन के लिए प्रतिकूल हैं, लेकिन उनके उपग्रहों पर जीवन की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
याद रखना चाहिए कि जीवन के लिए जरूरी तत्व (पानी, कार्बन आधारित यौगिक) इन ग्रहों में हैं। इनकी कक्षा में कोई चंद्रमा हो सकता है, जो जीवन के लिए अनुकूल हो। आने वाले समय में JWST और अन्य मिशन ऐसे उपग्रहों को खोजने का प्रयास करेगा।