रेल पटरियों के नीचे साइकिलों का ट्रैक

Jitendra Kumar Sinha
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बढ़ती जनसंख्या, अनियंत्रित ट्रैफिक और प्रदूषण के बीच जब शहरों में सांसें घुटने लगती हैं, तब समाधान कहीं न कहीं नवीन सोच को जन्म देती हैं। स्विट्जरलैंड का शहर ज्यूरिख इसी तरह के नवाचार का मिसाल बनकर सामने आया है। इस शहर ने न केवल पर्यावरण अनुकूल भविष्य के लिए कदम बढ़ाया है, बल्कि एक ऐसी परियोजना को साकार किया है, जो दुनिया भर के शहरी योजनाकारों और सरकारों के लिए प्रेरणा बन सकती है।

ज्यूरिख के मुख्य रेलवे स्टेशन के ठीक नीचे एक विशेष सुरंग बनाया गया है, जिसे विशेष रूप से साइकिल चालकों, ई-बाइक, ई-मोपेड और हल्के इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए समर्पित किया गया है। इसकी लागत लगभग 38.6 मिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 4 करोड़ रुपए से अधिक) है, और यह अपने आप में दुनिया की पहली और अनूठी पहल है।

ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड की आर्थिक राजधानी होने के साथ-साथ यूरोप के सबसे व्यवस्थित शहरों में गिना जाता है। लेकिन बढ़ते ट्रैफिक और शहरीकरण के साथ वहां भी साइकिल चालकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। सीमित लेन, तेज गति वाले वाहन और पर्याप्त पार्किंग की कमी, यह समस्या वर्षों से चर्चा में थी। स्थानीय लोगों और साइकिल संघों ने बार-बार इस बात को उठाया था कि पर्यावरण के लिए बेहतर और ट्रैफिक को कम करने वाले साधनों को अधिक महत्व दिया जाए। प्रशासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए एक स्थायी समाधान की दिशा में सोचना शुरू किया, परिणामस्वरूप इस सुरंग का विचार आया।

यह सुरंग ज्यूरिख के 4 और 5 जिला को जोड़ती है, और कसरननस्ट्रासे (Kasernenstrasse) तथा सिलक्वाई (Sihlquai) के बीच फैली हुई है। इसकी लंबाई 440 मीटर है और चौड़ाई 6 मीटर। यह सुरंग खास है क्योंकि इसमें पैदल चलने तक की अनुमति नहीं है। यह पूरी तरह से साइकिल, ई-बाइक, ई-मोपेड और 20 किमी/घंटा की गति से कम चलने वाले हल्के इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आरक्षित है। इस सुरंग में 1240 साइकिल पार्किंग स्पेस हैं और वह भी मुफ्त। यह सुविधा ना केवल साइकिल चालकों की सुविधा को बढ़ाता है, बल्कि उन्हें शहर के भीतर बिना चिंता के यात्रा करने की आजादी देता है।

इस सुरंग के निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल और ध्वनि अवशोषक सामग्री का उपयोग किया गया है, जिससे शोर कम हो और आंतरिक वातावरण साइकिल चालकों के लिए आरामदायक बना रहे। इस टनल में आधुनिक स्मार्ट सेंसर, सीसीटीवी कैमरा, और वायु गुणवत्ता मॉनिटर लगाया गया है, जो सुरक्षा और निगरानी को सुनिश्चित करता हैं। इस सुरंग को सोलर एनर्जी से रोशन किया गया है और इसकी लाइटिंग सिस्टम ऊर्जा की खपत को न्यूनतम रखने के लिए डिजाइन किया गया है।

इस सुरंग के खुलने से साइकिल चालकों को सड़क पर गाड़ियों के साथ संघर्ष नहीं करना पड़ता है। इससे शहरी ट्रैफिक में स्पष्ट कमी देखा गया है। यूरोप के कई शहरों की तरह ज्यूरिख ने भी ग्रीन मोबिलिटी को प्राथमिकता दिया है। इस टनल ने न केवल साइकिल उपयोग को प्रोत्साहित किया है, बल्कि लोगों में ‘स्मार्ट कम्यूटिंग’ की आदत भी डाला है। जैसे-जैसे अधिक लोग साइकिलिंग की ओर बढ़ रहे हैं, स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है।

यूरोप में कोपेनहेगन, एम्स्टर्डम जैसे शहर पहले ही साइकिल फ्रेंडली था, लेकिन ज्यूरिख ने अंडरग्राउंड टनल बनाकर इनसे भी एक कदम आगे की पहल कर दिया है। बीबीसी, डॉयचे वेले, फोर्ब्स और गार्जियन जैसे प्रमुख मीडिया संस्थानों ने इस परियोजना को भविष्य के ‘सस्टेनेबल अर्बन ट्रांजिट’ मॉडल के रूप में सराहा है।

दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता जैसे शहरों में ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुका है। लेकिन साइकिल चालकों की स्थिति आज भी बेहद खराब है,  लेन नहीं हैं, सुरक्षा का अभाव है और पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि भारत के शहर भी इस मॉडल को अपनाएं तो मेट्रो स्टेशनों के नीचे या उनके बगल में साइकिल सुरंगें बनाया जा सकता हैं। नगर निगम और मेट्रो विकास प्राधिकरण मिलकर योजना बना सकता हैं। PPP मॉडल (Public-Private Partnership) के माध्यम से निवेश और रखरखाव संभव हो सकता है। इंदौर, पुणे, चंडीगढ़, भुवनेश्वर जैसे उभरते शहरों में यह प्रयोग अपेक्षाकृत सरल और प्रभावी हो सकता है।

कभी गांव-शहर की सड़कों पर साइकिल आम साधन हुआ करता था। आधुनिकता और मोटर युग ने इसे पीछे कर दिया है। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य चिंताएं और ट्रैफिक से मुक्ति की चाह ने फिर से साइकिल को चर्चित बना दिया है। ज्यूरिख की यह सुरंग केवल भौतिक संरचना नहीं है, यह एक विचार है,  एक आंदोलन है, एक दिशा है। यह बताता है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति, नागरिक भागीदारी और दूरदर्शी योजना हो, तो कोई भी शहर साइकिल की घंटियों से फिर से गूंज सकता है।

इस सुरंग ने शहरी विकास की परंपरागत सोच को चुनौती दी है। यह दिखाता है कि शहर केवल कारों के लिए नहीं होते हैं वह सभी लोगों के लिए होता हैं और लोगों की सुविधा, स्वास्थ्य और पर्यावरण सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। स्विट्जरलैंड का यह प्रयोग एक क्रांति है, एक खामोश लेकिन गूंजदार क्रांति। इसकी घंटियों की आवाज जल्द ही भारत सहित दुनियाभर के शहरों में गूंजेगी।



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