"पैर हिलाने की आदत - धर्म, विज्ञान और स्वास्थ्य की दृष्टि से गंभीर चेतावनी होता है"

Jitendra Kumar Sinha
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हमारा जीवन जिन आदतों से निर्मित होता है, वही आदतें हमारे भाग्य, स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति को आकार देता हैं। कई बार साधारण दिखने वाला आदत, जिन पर हम ध्यान नहीं देते हैं, वह हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। इन्हीं में से एक आदत है ‘बैठे-बैठे पैर हिलाना’।

बचपन से घर के बुजुर्ग यह समझाते आए हैं कि पैर हिलाना अनुचित है। यह केवल सामाजिक मर्यादा या संस्कार की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे छुपे हैं गहरे धार्मिक, वैज्ञानिक और चिकित्सकीय कारण।

हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ करते समय अनुशासन और मानसिक एकाग्रता को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि

"आसनस्थो मन: शुद्धि: क्रिया च नियमेन च।
तदा सिध्यति यज्ञोऽपि पुण्यं तेन लभ्यते॥"

अर्थात, जब व्यक्ति स्थिर होकर बैठता है, तब ही उसकी पूजा और यज्ञ सफल होता हैं। पैर हिलाना मानसिक चंचलता और अशांत चित्त का प्रतीक होता है, जिससे पूजा का पुण्य कम हो जाता है।

वेद-पुराणों के अनुसार,  शाम के समय महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति असभ्य तरीके से बैठे-बैठे पैर हिला रहा होता है, तो देवी लक्ष्मी का अपमान होता है। यह अपमान लक्ष्मी की कृपा को छीन लेता है और आर्थिक संकट का कारण बनता है। "चंचलं चरणं यत्र, तत्र न स्थिर लक्ष्मीः।" यह श्लोक बताता है कि जहां चंचलता है, वहां लक्ष्मी नहीं ठहरती है।

पैर हिलाना एक प्रकार की ‘अनजानी बेचैनी’ या ‘Unconscious Anxiety’ का लक्षण होता है। यह तब होता है जब व्यक्ति मानसिक तनाव, घबराहट, डर या अवसाद से गुजर रहा होता है। मेडिकल साइंस इस स्थिति को Restless Legs Syndrome (RLS) कहता है। यह एक न्यूरोलॉजिकल विकार है जिसमें व्यक्ति को बार-बार अपने पैरों को हिलाने की आवश्यकता महसूस होता है, खासकर आराम की स्थिति में। जैसे- नींद न आना, पैरों में झुनझुनी या खिंचाव, बेचैनी तथा अवसाद और मानसिक थकावट ये सब इसके लक्षण होते हैं। हृदय रोगों का खतरा- लगातार पैर हिलाने से दिल की धड़कनों की गति बढ़ जाता है। रक्तचाप असंतुलित हो जाता है। Cardiovascular Diseases का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। रक्त प्रवाह में गड़बड़ी के कारण रक्त थक्का बन सकता हैं जिससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक की संभावना रहता है।

बैठे-बैठे लगातार पैर हिलाने से घुटनों और एड़ी के जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है। इससे जोड़ों में सूजन, दर्द और नसों में सूजन की समस्या उत्पन्न हो सकता है। यह समस्या विशेषकर वृद्धों, मोटे लोगों और डेस्क जॉब करने वालों में अधिक देखा जाता है। 

भारतीय सभ्यता में शांत और संयमित व्यवहार को गरिमा का प्रतीक माना गया है। जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक या पारिवारिक बैठक में पैर हिलाता है, तो यह अशिष्टता और असंवेदनशीलता का प्रतीक माना जाता है। यह आदत व्यक्ति की आंतरिक स्थिति को भी उजागर करता है। कई बार किसी के हावभाव देखकर ही उसके तनाव या बेचैनी का अनुमान लगाया जा सकता है, और पैर हिलाना इनमें प्रमुख है। जो लोग ध्यान, प्राणायाम या योग साधना करते हैं, उनके लिए स्थिरता सबसे बड़ी साधना है। बैठे-बैठे पैर हिलाना ध्यान भंग करता है और साधना को विफल बना सकता है।

एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से बैठे-बैठे पैर हिलाते हैं, उनमें रक्तचाप की अनियमितता पाई जाती है। यह आदत धीरे-धीरे हृदय, गुर्दे और मस्तिष्क को प्रभावित करने लगता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आया है कि बैठकर पैर हिलाना एक Psychomotor Agitation है जो मानसिक विकारों की ओर संकेत करता है। RLS के रोगी को नींद की कमी, थकावट और चिड़चिड़ेपन की समस्या होती है। इससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होता है।

कहा जाता है कि जब लक्ष्मण जी प्रभु राम की सेवा में सदा अनुशासित रहते थे, वे कभी भी ध्यान या सेवा करते समय अशांत नहीं होते थे। यह अनुशासन ही उन्हें भगवान के समीपतम बना पाया। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- "योगस्थ: कुरु कर्माणि" अर्थात योग (एकाग्रता) में स्थित होकर कर्म करो। पैर हिलाना इस एकाग्रता का विपरीत है।

बैठे-बैठे पैर हिलाना एक साधारण सी लगने वाली आदत है, लेकिन इसके पीछे छुपे प्रभाव चौंकाने वाले होते हैं। यह न केवल धार्मिक रूप से अशुभ माना जाता है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी हानिकारक है। इस तरह के आदतों पर आत्ममंथन करना चाहिए और यदि कोई आदत हमारे स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति या सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहा हो, तो उसे समय रहते ही छोड़ देना चाहिए।



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