मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा को मिला - मैथिली में पाठ्य सामग्री तैयार करने की जिम्मेदारी

Jitendra Kumar Sinha
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भारत सरकार की बहुभाषिक शिक्षा को सशक्त बनाने की पहल को एक नई दिशा मिली है। अब आंगनबाड़ी से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में संभव हो सकेगा। इसी क्रम में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा को एक ऐतिहासिक जिम्मेदारी सौंपी गई है मैथिली भाषा में संपूर्ण पाठ्य सामग्री का निर्माण।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने भारतीय भाषा संवर्द्धन समिति के तत्वावधान में, मैथिली में शैक्षणिक सामग्री तैयार करने के लिए, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय को नोडल विश्वविद्यालय घोषित किया है। यह निर्णय मैथिली भाषा को शिक्षण क्षेत्र में मजबूती देने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।

इस अभियान का नेतृत्व विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मैथिली विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार मेहता को सौंपा गया है। उन्हें इस परियोजना के नोडल प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया है। प्रो. मेहता का मैथिली साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में गहन अनुभव, इस कार्य को गुणवत्ता और व्यापकता देगा।

इस महत्वपूर्ण बैठक में भारतीय भाषा संवर्द्धन समिति के डॉ. चन्दन श्रीवास्तव ने संसाधन पुरुष के रूप में भाग लिया और परियोजना की रूपरेखा तथा दिशा-निर्देशों पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया। समिति द्वारा गठित टीम अब विभिन्न शैक्षिक स्तरों के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम तैयार करने में जुटेगी।

इस पहल के पीछे प्रारंभिक शिक्षा से उच्च शिक्षा तक मातृभाषा में अध्ययन की सुविधा। मैथिली भाषा को शिक्षा प्रणाली में स्थायी और सम्मानजनक स्थान दिलाना। स्थानीय छात्रों में विषय की समझ को और अधिक स्पष्ट और गहन बनाना मूल उद्देश्य है। यह निर्णय 'नई शिक्षा नीति 2020' के मूल सिद्धांतों से भी मेल खाता है, जो मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को प्राथमिकता देता है।

यह पहल मिथिला क्षेत्र के लाखों छात्रों के लिए वरदान साबित हो सकता है। मैथिली में उपलब्ध उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्य सामग्री उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा के मुख्यधारा में लाने का कार्य करेगा। साथ ही, यह क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति सामाजिक और शैक्षणिक जागरूकता को भी बढ़ावा देगा।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय को मिली यह जिम्मेदारी केवल पाठ्य सामग्री निर्माण की नहीं, बल्कि मैथिली भाषा के गौरव को पुनः स्थापित करने की है। यह एक सांस्कृतिक आंदोलन का प्रारंभ भी है, जिसमें भाषा, शिक्षा और क्षेत्रीय अस्मिता, तीनों का संगम होगा।



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