अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर विश्व के सबसे महान सांस्कृतिक एवं धार्मिक केंद्रों में से एक बन रहा है। इस मंदिर की दिव्यता और भव्यता में चार चांद लगाने का श्रेय गुजरात के सुरेंद्रनगर जिला के ध्रांगध्रा कस्बे को भी जाता है, जहां के प्रसिद्ध शिल्पी हितेश सोमपुरा और उनकी टीम ने 1800 बेमिसाल मूर्तियां बनाकर राम मंदिर को सौंपा है।
ध्रांगध्रा की यह मिट्टी सिर्फ नमक की नहीं, बल्कि संस्कृति और शिल्पकला की भी गवाह रही है। यही धरती है जिसने सदियों से मंदिर निर्माण और मूर्तिकला की परंपरा को जीवित रखा है। हितेश सोमपुरा का परिवार पीढ़ियों से इस पवित्र कला को साध रहा है। उनके पूर्वजों ने भी सोमनाथ और द्वारका जैसे ऐतिहासिक मंदिरों में अपना योगदान दिया है, और अब राम जन्मभूमि मंदिर में उनकी कला की छाप अमिट रूप से दर्ज हो गया है।
अयोध्या के मंदिर में लगी 1800 मूर्तियां केवल पत्थरों की आकृतियां नहीं हैं, बल्कि श्रद्धा, परिश्रम और सांस्कृतिक विरासत का मूर्त स्वरूप हैं। यह मूर्तियां मंदिर के स्तंभों पर उकेरी गईं दिव्य आकृतियों से लेकर गुंबदों की जटिल कलाकृतियों तक फैली हैं। प्रदक्षिणा मार्ग की दीवारों पर उत्कीर्ण रचनाएं, शिखर के गवाक्षों पर अंकित देवताओं की मूर्तियां, और राम दरबार के मुख्य प्रवेश द्वार पर विराजमान प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, यह सब मिलकर मंदिर को एक जीवंत महाकाव्य में परिवर्तित कर देता हैं।
इस अद्भुत कार्य के पीछे 35 दक्ष कारीगरों की मेहनत है, जिन्होंने वर्षों तक तप की भांति इस कार्य को अंजाम दिया है। हर मूर्ति, हर शिल्प में एक कहानी है, कोई भगवान की लीला को दर्शाता है, कोई भक्तों की आस्था को, तो कोई भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को।
ध्रांगध्रा के कारीगरों का यह योगदान केवल एक स्थापत्य कार्य नहीं है, बल्कि भारत की सनातन परंपरा का जीवंत दस्तावेज है। यह भारत के उन हजारों अनाम शिल्पकारों को भी श्रद्धांजलि है, जिनके हाथों से इतिहास बनता है लेकिन जिनका नाम इतिहास की किताबों में नहीं आता है।