पहाड़ों की वादियों में बहे खून की आंच अब अदालत की चौखट तक पहुंच चुकी है। कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर कांग्रेस नेता और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा द्वारा दिए गए एक कथित विवादित बयान ने नया राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। इस बयान को लेकर हिन्दू समाज में तीव्र आक्रोश देखा गया है, और अब यही आक्रोश न्यायपालिका की चौखट तक पहुँच चुका है।
हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस के राष्ट्रीय संयोजक कुलदीप तिवारी ने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने हेतु लखनऊ की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) अदालत में अर्जी दाखिल की है। इस अर्जी में वाड्रा पर पहलगाम हमले को लेकर पूरे "हिन्दू समाज" को कटघरे में खड़ा करने का आरोप लगाया गया है।
राष्ट्रीय संयोजक कुलदीप तिवारी का कहना है कि वाड्रा ने 23 अप्रैल 2025 को अपने बयान में इस हमले की पृष्ठभूमि में "हिन्दू कट्टरता" और "धार्मिक ध्रुवीकरण" को जिम्मेदार ठहराया था। उनका यह बयान प्रिंट मीडिया, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हुआ, जिसे संगठन ने हिन्दू समाज के विरुद्ध घृणा फैलाने वाला करार दिया है।
इस मामले पर सीजेएम कोर्ट ने अर्जी की पोषणीयता (maintainability) की सुनवाई के लिए 20 जून 2025 की तारीख निर्धारित की है। अधिवक्ता शेखर निगम और प्रियंका राव, जो इस अर्जी में याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे हैं, ने कहा है कि यह बयान न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि यह समाज में धार्मिक विद्वेष फैलाने की मंशा से दिया गया प्रतीत होता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने सियासी गलियारों में भी हलचल मचा दी है। जहां विपक्षी दल इस बयान को "स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार" कहकर वाड्रा के पक्ष में खड़े हैं, वहीं कई हिन्दू संगठनों ने इसे "घोर अपमानजनक" और "सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचाने वाला" बयान बताया है।
अब सबकी निगाहें 20 जून को लखनऊ की सीजेएम कोर्ट पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि वाड्रा के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा या नहीं। इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि संवेदनशील मुद्दों पर बयानबाजी करना न केवल सामाजिक, बल्कि कानूनी परिणाम भी ला सकता है। पहलगाम जैसे जघन्य आतंकी हमले के बाद एक जिम्मेदार नागरिक और नेता से अपेक्षा होया है कि वह समाज को जोड़े, न कि उसे और अधिक बांटे।