साहित्य अकादमी द्वारा घोषित पुरस्कार सूची में - मिथिला क्षेत्र के तीन विद्वान साहित्यकार शामिल

Jitendra Kumar Sinha
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मिथिला की धरती एक बार फिर साहित्यिक सृजन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान दर्ज कराते हुए गौरवान्वित हुई है। साहित्य अकादमी द्वारा घोषित पुरस्कार सूची में मिथिला क्षेत्र के तीन विद्वान साहित्यकारों को स्थान मिला है। यह पुरस्कार न केवल व्यक्तिगत उपलब्धियां हैं, बल्कि मैथिली और संस्कृत भाषा-संस्कृति के जीवंत स्वर को राष्ट्रीय पटल पर प्रतिष्ठित करने वाले प्रमाण भी हैं।

मधुबनी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार मुन्नी कामत को उनकी मैथिली कहानी ‘चुक्का’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। यह कहानी पारंपरिक मिथिला समाज में स्त्रियों की संवेदनाओं, संघर्षों और चुप्पी के भीतर छिपे प्रतिरोध को उजागर करती है। मुन्नी कामत का लेखन सदैव समाज के हाशिये पर खड़े पात्रों को केंद्र में लाने के लिए जाना जाता है। ‘चुक्का’ में उन्होंने एक ऐसी नारी की कहानी है, जो परिस्थितियों की मार खाकर भी अपनी अस्मिता नहीं खोती है।

मैथिली की युवा कवयित्री नेहा झा मणि को उनकी कविता ‘बनारस आ हम’ के लिए पुरस्कृत किया जाएगा। यह कविता बनारस शहर में रहने के अनुभव, आत्म-संवाद और मिथिला की स्मृतियों को काव्यात्मक शैली में पिरोती है। बनारस, जहाँ संस्कृति और साधना का संगम होता है, वहां रहकर नेहा ने आत्मबोध के भावों को मैथिली भाषा में जिस सहजता से व्यक्त किया है, वह मैथिली काव्य की नई दिशा की ओर संकेत करता है।

संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा के विद्वान डॉ. धीरज पांडेय को संस्कृत कृति ‘पारिभाषिकशब्दस्वारस्यम्’ के लिए यह प्रतिष्ठित सम्मान मिलेगा। यह ग्रंथ संस्कृत के पारिभाषिक शब्दों की गहराई, उनका सौंदर्य और उनके शास्त्रीय प्रयोग को समर्पित है। इस कृति में डॉ. धीरज पांडेय ने तकनीकी और सांस्कृतिक शब्दों को एक नई दृष्टि से देखा है, जिससे संस्कृत भाषा का समकालीन उपयोग और भी सशक्त हुआ है।

मिथिला की यह तिकड़ी यह सिद्ध करता है कि यह क्षेत्र केवल पारंपरिक लोक संस्कृति का भंडार नहीं है, बल्कि आधुनिक चेतना, विमर्श और रचनात्मकता का भी केंद्र है। मैथिली और संस्कृत, दोनों ही भाषाएं मिथिला की आत्मा हैं, और इन भाषाओं में हो रहे रचनात्मक कार्यों को राष्ट्रीय मान्यता मिलना पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है।

इन पुरस्कारों के माध्यम से मिथिला की साहित्यिक चेतना को जो पहचान मिली है, वह अगली पीढ़ी के साहित्यकारों को प्रेरित करने वाला है। यह सम्मान केवल तीन व्यक्तियों का नहीं, पूरे मिथिला अंचल की सांस्कृतिक चेतना और भाषायी गरिमा का है।



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