अंतरिक्ष विज्ञान का नया प्रयोग - “कृत्रिम सूर्यग्रहण”

Jitendra Kumar Sinha
0




हजारों वर्षों से इंसान सूर्यग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं को विस्मय और रहस्य के भाव से देखता आया है। पहले यह घटना देवता का क्रोध माना जाता था, लेकिन विज्ञान ने इन्हें एक स्वाभाविक खगोलीय प्रक्रिया के रूप में समझाया। अब तकनीक इतना उन्नत हो चुका है कि इंसान केवल देखने या समझने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने खुद कृत्रिम सूर्यग्रहण बना डाला। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के नए मिशन प्रोबा-3 की सच्चाई है। इसने विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और खगोलीय घटनाओं के अध्ययन में क्रांतिकारी संभावना को जन्म दिया है।

प्राकृतिक सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आकर सूर्य को ढँक देता है। लेकिन यह घटना बहुत दुर्लभ और क्षणिक होता हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण कुछ ही मिनटों के लिए देखा जा सकता है, और वह भी सीमित स्थानों से। वैज्ञानिक वर्षों तक इस क्षण के इंतजार में रहते हैं, लेकिन वह केवल कुछ मिनट ही इसका अध्ययन कर पाता है। इसलिए लंबे और बार-बार दोहराए जा सकने वाला सूर्यग्रहण का विचार वैज्ञानिकों के मन में लंबे समय से था। अब यह सपना साकार हो चुका है।

प्रोबा-3 (Proba-3) मिशन को 2024 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य था, दो छोटे सैटेलाइटों की सहायता से कृत्रिम सूर्यग्रहण उत्पन्न करना। इस प्रयोग की सफलता का प्रदर्शन पेरिस एयर शो 2025 में किया गया, जहां इसकी उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें जारी की गईं।

कृत्रिम सूर्यग्रहण के प्रयोग में दो सैटेलाइट शामिल हैं। पहला कोरोनाग्राफ सैटेलाइट, जो दूर से सूर्य का अवलोकन करता है और दूसरा ऑक्ल्टर सैटेलाइट,जो सूर्य के सामने आकर प्रकाश को अवरुद्ध करता है (बिल्कुल चंद्रमा की तरह)। यह दोनों सैटेलाइट अंतरिक्ष में एक-दूसरे से केवल 150 मीटर (492 फीट) की दूरी पर होते हैं और पृथ्वी से हजारों किलोमीटर ऊपर उड़ते हैं। इनका परस्पर स्थान एकदम सटीक होना चाहिए, केवल एक मिलीमीटर से भी कम की त्रुटि की गुंजाइश है।

इन सैटेलाइटों के संचालन में GPS नेविगेशन, स्टार ट्रैकर, लेजर मार्गदर्शन प्रणाली और रेडियो लिंक संचार प्रणाली, तकनीकों का प्रयोग होता है। यह सब मिलकर इतना सटीक नियंत्रण प्रदान करता हैं कि एक सैटेलाइट सूर्य को छिपाता है, और दूसरा उसी क्षण सूर्य के बाहरी वायुमंडल "कोरोना" का अध्ययन करता है।

सूर्यग्रहण के समय जो अद्भुत प्रकाश-वलय सूर्य के चारों ओर दिखता है, उसे कोरोना कहते हैं। यह सूर्य का सबसे बाहरी वायुमंडल होता है, जिसकी तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी अधिक होता है, यानि सूर्य की सतह से कई गुना गर्म। इसका रहस्य वैज्ञानिकों के लिए अब तक अनसुलझा रहा है। प्राकृतिक ग्रहण के कुछ मिनटों में इसका अध्ययन कठिन होता था। लेकिन प्रोबा-3 मिशन में कोरोना का घंटों तक अवलोकन किया जा सकता है,  यह सौर भौतिकी में एक क्रांति है।

प्रोबा-3 मिशन से अब तक 10 सफल कृत्रिम सूर्यग्रहण बनाया जा चुका हैं। इनमें सबसे लंबा सूर्यग्रहण 5 घंटा तक चला, जो अब तक का रिकॉर्ड है। जुलाई 2025 से वैज्ञानिक इस पर औपचारिक शोध और प्रयोग शुरू करेंगे। इसका लक्ष्य 200 कृत्रिम सूर्यग्रहण बनाना है, यानि हर सप्ताह दो ग्रहण। प्रोबा-3 मिशन वैज्ञानिकों को 1000 घंटे से अधिक पूर्ण सूर्यग्रहण जैसी स्थितियां देगा, जिससे वह सौर गतिविधियों, प्लाज्मा विस्फोट, कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) जैसे गूढ़ रहस्यों का गहराई से विश्लेषण कर सकेगा।

सौर कोरोना के व्यवहार को समझकर वैज्ञानिक सोलर स्टॉर्म्स (Solar Storms) के समय और तीव्रता की सटीक भविष्यवाणी कर पाएंगे। यह तूफान उपग्रहों, बिजली ग्रिड और इंटरनेट व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकता हैं। सूर्य की किरणों के व्यवहार की गहराई से जानकारी भविष्य में सौर पैनलों की कार्यक्षमता बढ़ा सकता है। सूर्य की गतिविधियां पृथ्वी की जलवायु और मौसम पर गहरा असर डालता हैं। इन गतिविधियों का विस्तृत अध्ययन जलवायु परिवर्तन को समझने में सहायक हो सकता है।

इस मिशन की सफलता से अमेरिका, जापान और भारत जैसे देश भी प्रेरित हुआ हैं। जापान पहले से हिनोदे और सोलर-B जैसे अभियानों से सौर अवलोकन में अग्रणी है। भारत का आदित्य-L1 मिशन पहले ही सौर कोरोना के अध्ययन में लगा है, लेकिन प्रोबा-3 जैसी formation flying तकनीक अभी नई है।

भविष्य में इंटरप्लेनेटरी प्रयोगशालाएं बनाई जाएंगी जो सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की त्रिकोणीय पोजिशन को कृत्रिम रूप से बनाकर विविध ग्रहण उत्पन्न करेगी। AI नियंत्रित माइक्रो-सैटेलाइट्स का प्रयोग होगा जो स्वतः ग्रहण की स्थिति बना सकेगा और बदल सकेगा। सौर तूफान से सुरक्षा के लिए ढाल प्रणाली बनाया जा सकेगा जो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों की रक्षा करेगा।

रॉयल ऑब्जर्वेटरी ऑफ बेल्जियम के वैज्ञानिक आंद्रे जुकोव के अनुसार, यह तकनीक "अविश्वसनीय और रोमांचक" है। उनके अनुसार यह मानवीय सटीकता और कल्पनाशक्ति का एक अत्यंत दुर्लभ मेल है। कुछ वैज्ञानिक यह भी चेताते हैं कि इतनी उच्च सटीकता से नियंत्रित यंत्र किसी साइबर हमले या त्रुटि का शिकार हो सकता हैं, जिससे अंतरिक्ष में टकराव की स्थिति बन सकता है। अतः इसमें AI की निगरानी के साथ-साथ मानवीय नियंत्रण भी आवश्यक है।

प्रोबा-3 मिशन यह साबित करता है कि मानव बुद्धि और तकनीक मिलकर प्रकृति की सबसे दुर्लभ घटनाओं को भी दोहराने में सक्षम है। यह केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं है, बल्कि विज्ञान की नई संभावनाओं का उद्घोष है। अब सूर्यग्रहण केवल दुर्लभ क्षण नहीं रहा, बल्कि प्रयोगशाला की दीवारों के भीतर सजीव हो चुका है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top