युद्ध के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारत का एक और कदम - 'रुद्रास्त्र'

Jitendra Kumar Sinha
0

 



भारत की रक्षा प्रणाली ने एक और क्रांतिकारी कदम आगे बढ़ाया है। राजस्थान के जैसलमेर जिला के पोकरण फायरिंग रेंज में एक ऐसी तकनीक का सफल परीक्षण हुआ है, जो न केवल देश की सीमाओं को पहले से अधिक सुरक्षित बनाएगा, बल्कि युद्ध के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारत को एक नई दिशा में भी आगे बढ़ाएगा। यह तकनीक है – हाइब्रिड वीटीओएल यूएवी 'रुद्रास्त्र'।

भारत रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की सफलता का सबसे दमदार उदाहरण अब “रुद्रास्त्र” के रूप में उभरकर सामने आया है। यह यूएवी (Unmanned Aerial Vehicle) न केवल दुश्मन के छिपे ठिकानों पर हमला करने में सक्षम है, बल्कि यह उसे पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। दुश्मन चाहे कितनी भी चतुराई से छिपा हो, रुद्रास्त्र उसकी तलाश करेगा, मंडराएगा और उसे पूरी तरह समाप्त कर देगा। पोकरण की तपती धरती पर हुए इस सफल परीक्षण ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत अब युद्ध के आधुनिक हथियारों के मामले में किसी भी विकसित देश से पीछे नहीं है।

“रुद्रास्त्र” की सबसे बड़ी खासियत है इसकी हाइब्रिड VTOL (Vertical Take-Off and Landing) क्षमता। यानि यह ड्रोन किसी रनवे पर निर्भर नहीं रहता है। वह किसी भी स्थान से सीधा ऊपर उठकर उड़ान भर सकता है और लक्ष्य भेदन कर वापस भी आ सकता है। आधुनिक युद्धों में, जहां त्वरित प्रतिक्रिया और सटीक हमला ही जीत का निर्धारक होता है, वहां इस तरह की तकनीकें गेम चेंजर साबित होता हैं।

यह परीक्षण भारतीय सेना द्वारा निर्धारित मानकों पर किया गया है और जानकारी के अनुसार, “रुद्रास्त्र” हर कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरा है। जिस तरह से इसने सटीकता से लक्ष्य को नष्ट किया और बिना किसी त्रुटि के अपनी लॉन्चिंग साइट पर वापसी की, वह अत्यंत प्रभावशाली था। “रुद्रास्त्र” की उड़ान क्षमता लगभग 1.30 घंटा है और यह लगभग 170 किलोमीटर के दायरे में परिचालन करने में सक्षम है। परीक्षण के दौरान उसने 50 किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र को कवर करते हुए मिशन को पूरा किया है और सफलता से लौट आया है।

सबसे विशेष बात यह है कि “रुद्रास्त्र” न केवल निगरानी या जासूसी के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, बल्कि यह हमला करने की भी पूरी क्षमता रखता है। इस यूएवी के साथ एक छोटा बम लगाया गया था, जिसे टेस्टिंग के दौरान मध्य ऊँचाई से छोड़ा गया। जैसे ही यह बम निशाने के पास पहुँचा, यह हवा में ही विस्फोटित हुआ और उसका असर एक बड़े क्षेत्र में देखने को मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि “रुद्रास्त्र” न केवल दुश्मन की टोह ले सकता है, बल्कि उसे पूरी तरह समाप्त करने का सामर्थ्य भी रखता है।

रुद्रास्त्र को विकसित करने वाली कंपनी सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस है, जो एक निजी भारतीय कंपनी है। उल्लेखनीय है कि अब भारत की निजी कंपनियां भी रक्षा उत्पादन में भागीदारी कर रहा हैं और अत्याधुनिक तकनीक विकसित कर रहा हैं, जो पहले केवल सार्वजनिक क्षेत्र या विदेशी कंपनियों के दायरे में आता था। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की रक्षा तैयारियां अब आत्मनिर्भरता की ओर तीव्र गति से अग्रसर हैं।

परीक्षण के दौरान “रुद्रास्त्र” यह भी दिखाया कि वह एक ही जगह पर स्थिर रहकर दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रख सकता है। यह ‘हॉवरिंग’ क्षमता बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे एक ही क्षेत्र में अधिक देर तक निगरानी किया जा सकता है, जिससे गुप्त ठिकानों की पहचान करना आसान हो जाता है। साथ ही, यह यूएवी वीडियो लिंक से लैस है, जिससे यह रीयल-टाइम में निगरानी और हमले दोनों की क्षमता रखता है।

भारत के लिए “रुद्रास्त्र” केवल एक ड्रोन नहीं है, बल्कि रणनीतिक बदलाव का संकेत है। अब वह युग समाप्त हो रहा है जब भारत रक्षा उपकरणों के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहता था। अब देश की रक्षा प्रणाली भारत में ही विकसित हो रहा है और वह भी अत्याधुनिक तकनीक के साथ। “रुद्रास्त्र” जैसे यूएवी के आने से सीमा सुरक्षा बलों को वास्तविक समय में दुश्मन की गतिविधियों पर निगाह रखने और आवश्यकता पड़ने पर उसी क्षण जवाबी कार्रवाई करने की शक्ति मिलता है।

इसके अतिरिक्त, युद्ध के समय जब सैनिकों को दुश्मन के इलाके में प्रवेश करने का जोखिम होता है, उस स्थिति में “रुद्रास्त्र” जैसे यूएवी का उपयोग सैनिकों की जान की रक्षा करते हुए दुश्मन पर चोट करने का सर्वोत्तम विकल्प बन सकता है। यह मानव रहित प्रणाली दुश्मन के इलाके में जाकर सटीक बमबारी कर सकता है और सैनिकों को बिना जोखिम के बड़ी सफलता दिला सकता है।

अगर आने वाले वर्षों में “रुद्रास्त्र” को भारतीय सेना में बड़े पैमाने पर शामिल किया जाता है, तो यह सीमा पर तैनात सैनिकों का एक भरोसेमंद हथियार बन सकता है। इसकी बड़ी संख्या में तैनाती के साथ दुश्मन की घुसपैठ की किसी भी कोशिश को पहले ही विफल किया जा सकता है। आतंकवादी ठिकानों, दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में छिपे दुश्मनों, सीमावर्ती गाँवों में संदिग्ध गतिविधियों, हर मोर्चे पर “रुद्रास्त्र” का उपयोग देश की सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

इसकी तुलना अगर वैश्विक स्तर पर हो, तो देखा जा सकता है कि अमेरिका, इजरायल और चीन जैसे देश पहले से ही अत्याधुनिक यूएवी का प्रयोग कर रहा हैं। भारत भी अब इस होड़ में शामिल हो चुका है। लेकिन यह “रुद्रास्त्र” न केवल तकनीकी रूप से उन्नत है, बल्कि यह भारतीय भूभाग और जलवायु की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। यह रेगिस्तान, जंगल, हिमालयी क्षेत्र और शहरी इलाकों,  हर तरह की परिस्थिति में आसानी से उड़ सकता है।

भारत की युद्धनीति में अब यह परिवर्तन स्पष्ट दिख रहा है कि अब सीमित संसाधनों से अधिकतम प्रभाव कैसे प्राप्त किया जाए। “रुद्रास्त्र” इस रणनीति का सटीक उदाहरण है। कम लागत, स्वदेशी निर्माण, अत्याधुनिक तकनीक और बहुपयोगिता,  यह सभी विशेषताएं इसे भविष्य का ब्रह्मास्त्र बताता हैं।

जहां एक ओर भारत साइबर युद्ध, स्पेस वारफेयर और मिसाइल टेक्नोलॉजी में तेजी से आत्मनिर्भर हो रहा है, वहीं इस तरह के स्वदेशी हाइब्रिड यूएवी देश की रणनीतिक क्षमता में गुणात्मक वृद्धि करेगा। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से अगर ऐसे और हथियार बनाया जाए, तो भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो सकता है, जो अपनी सेनाओं को आधुनिकतम और पूर्णतः स्वदेशी हथियारों से लैस रखता हैं।

“रुद्रास्त्र” का यह परीक्षण ऐसे समय पर हुआ है जब भारत की सीमाओं पर सतर्कता और तकनीकी मजबूती की सबसे अधिक आवश्यकता है। चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर लगातार तनाव की स्थिति बनी रहती है। ऐसे में इस तरह की प्रणाली से न केवल सीमाओं पर निगरानी मजबूत होगी, बल्कि देश के भीतर छिपे हुए आतंकवादी नेटवर्क पर भी सटीक और प्रभावी हमला किया जा सकता है।

“रुद्रास्त्र” के परीक्षण की सफलता इस बात का भी प्रतीक है कि भारत अब रक्षा उत्पादन में केवल ग्राहक नहीं, बल्कि निर्माता की भूमिका में आ चुका है। वह दिन दूर नहीं है जब भारत रक्षा उपकरणों का निर्यातक भी बनेगा। अफ्रीका, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया जैसे देशों में सुरक्षा की जरूरतें बढ़ रही हैं और भारत इस आवश्यकता को पूरा करने की पूरी क्षमता रखता है।

युवाओं के लिए भी “रुद्रास्त्र” प्रेरणा का स्रोत है। यह दिखाता है कि विज्ञान, तकनीक और नवाचार की शक्ति से भारत रक्षा क्षेत्र में भी वैश्विक मंच पर चमक सकता है। जो युवा आज इंजीनियरिंग, रोबोटिक्स, एआई, एविएशन और डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रहे हैं, उनके लिए यह भविष्य की एक रोशनी है। भारत अब रक्षा क्षेत्र में केवल हथियारों का उपभोग करने वाला देश नहीं रहेगा, बल्कि वह उन्हें डिजाइन, निर्मित और निर्यात करने वाला देश बनेगा।

इस परीक्षण ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि निजी कंपनियों की भागीदारी से रक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व तेजी आ सकता है। सरकार को चाहिए कि इस तरह की कंपनियों को और अधिक समर्थन, फंडिंग और अनुसंधान का अवसर प्रदान करे। इससे भारत की सुरक्षा प्रणाली को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है।

“रुद्रास्त्र” केवल एक यूएवी नहीं है, बल्कि यह एक प्रतीक है भारत के आत्मविश्वास का, आत्मनिर्भरता का और आत्मरक्षा के अधिकार का। यह दिखाता है कि भारत अब किसी भी प्रकार की चुनौती से निपटने के लिए तैयार है, चाहे वह सीमा पार से हो या सीमा के अंदर से।

 



 


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top