243 सीटों पर दांव लगाएंगे चिराग पासवान, बिहार की सियासत में बड़ा ऐलान

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां ज़ोरों पर हैं और चिराग पासवान ने अपने इरादे बेहद साफ़ कर दिए हैं। आरा में आयोजित 'नव संकल्प महासभा' में उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चिराग ने कहा कि यह कदम किसी निजी महत्वाकांक्षा से प्रेरित नहीं है, बल्कि एनडीए को मज़बूत करने और “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” के विजन को साकार करने के लिए उठाया गया है।


चिराग पासवान ने यह भी स्पष्ट किया कि वह मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वे खुद कोई पद नहीं मांगते, बल्कि उनकी पार्टी की ताकत और बिहार के लोगों का समर्थन ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने जनता से अपील की कि उन्हें जहाँ से लड़ना चाहिए, वह लोग तय करें। उनका यह बयान बताता है कि वह जनता के साथ सीधा जुड़ाव बनाना चाहते हैं और जमीनी राजनीति में विश्वास रखते हैं।


इस घोषणा के ज़रिए चिराग ने एक साथ कई निशाने साधे हैं। पहला, उन्होंने एनडीए के भीतर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है। दूसरा, यह संदेश दिया है कि उनकी पार्टी सीटों के बंटवारे की पिछली राजनीति से आगे बढ़ चुकी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में LJP (रामविलास) ने 100% स्ट्राइक रेट दर्ज की थी और अब विधानसभा में भी वही प्रदर्शन दोहराने का लक्ष्य है। उन्होंने इस बात को भी दोहराया कि गठबंधन धर्म निभाना उनकी प्राथमिकता है, लेकिन LJP को उसकी वास्तविक हैसियत भी मिलनी चाहिए।


चिराग ने महागठबंधन और विशेष रूप से राजद और कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इनके शासनकाल में बिहार जंगलराज का शिकार बना था, और आज एनडीए ने जो विकास किया है, वह साफ़ दिख रहा है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वह जाति और मजहब की राजनीति से ऊपर उठकर विकास को वोट दें।


उनकी यह घोषणा बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह केवल चुनाव लड़ने की रणनीति नहीं, बल्कि एक सियासी संदेश है कि चिराग अब एनडीए के भीतर एक निर्णायक भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वहीं, उनके इस कदम से एनडीए के सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग को लेकर तनाव भी बढ़ सकता है। मगर चिराग ने अपने तेवर से यह दिखा दिया है कि वह किसी समझौते के मूड में नहीं हैं।


बिहार की सियासत में अब हर पार्टी को अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी, क्योंकि चिराग पासवान अब केवल एक सहयोगी नेता नहीं, बल्कि एक चुनावी गेम चेंजर बनकर उभरे हैं।

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