भारतीय थलसेना को जल्द ही ₹30,000 करोड़ की लागत से विकसित किया गया स्वदेशी क्यूआर-एसएएम (QRSAM - क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल) सिस्टम मिलने जा रहा है। यह कदम भारत की वायु रक्षा प्रणाली को और मजबूत करेगा और देश की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
यह मिसाइल प्रणाली पूरी तरह से भारत में विकसित की गई है। इसे DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन), भारत डायनेमिक्स लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने मिलकर तैयार किया है। रक्षा मंत्रालय जल्द ही इस परियोजना को अंतिम मंजूरी देने की योजना बना रहा है, जिससे सेना को तीन रेजिमेंट QRSAM सिस्टम मिल सकें।
QRSAM सिस्टम की खासियत यह है कि यह तेजी से प्रतिक्रिया देने में सक्षम है। यह प्रणाली चलते-फिरते लक्ष्यों को पहचानकर हमला कर सकती है और दिन-रात, किसी भी मौसम में काम करने में सक्षम है। इसकी रेंज करीब 30 किलोमीटर है, जो इसे मध्यम दूरी की मिसाइल और आकाश जैसी प्रणाली के बीच की जरूरत को पूरा करने लायक बनाती है।
यह प्रणाली सेना की मौजूदा एयर डिफेंस स्ट्रक्चर के साथ मिलकर एक मजबूत मल्टी-लेयर सुरक्षा कवच तैयार करेगी। खासकर उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर यह सिस्टम दुश्मन के विमानों, हेलिकॉप्टरों और ड्रोन को नष्ट करने में कारगर होगा।
इस डील की खबर के बाद भारतीय रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में उछाल देखा गया है। BEL, BDL, Data Patterns, Paras Defence जैसी कंपनियों के शेयरों में 2% तक की तेजी आई है।
रक्षा अधिग्रहण परिषद इस प्रस्ताव को जून 2025 के अंत तक मंजूरी दे सकती है। इसके बाद सेना को सिस्टम की डिलीवरी शुरू होगी। यह सौदा न सिर्फ सैन्य दृष्टिकोण से बल्कि आर्थिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिहाज़ से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
यह मिसाइल प्रणाली भविष्य में भारतीय सेना को किसी भी संभावित हवाई खतरे से निपटने में और अधिक सक्षम बनाएगी।