इज़राइल और ईरान के बीच तनाव चरम पर पहुंच चुका है। दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बन चुकी है और हमले लगातार जारी हैं। इज़राइल ने ईरान के कई प्रमुख ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की, जिनमें राजधानी तेहरान, नतनज़ और अन्य रणनीतिक स्थान शामिल हैं। ये हमले ऐसे समय में हो रहे हैं जब ईरान ने भी इज़राइल पर मिसाइल और ड्रोन से जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है। ईरान ने फत्ताह-1 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइल का भी इस्तेमाल किया, जो बहुत तेज़ और घातक मानी जाती है।
इस युद्ध में अब तक ईरान में 224 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 1,300 से ज्यादा घायल हुए हैं। वहीं, इज़राइल में 24 लोगों की मौत हुई है और 600 से अधिक घायल हैं। यह लड़ाई अब केवल दो देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। तेल की कीमतों में अचानक उछाल आया है और वैश्विक शेयर बाजारों में भारी अस्थिरता देखी जा रही है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह बिना शर्त आत्मसमर्पण करे। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका को ईरान के सर्वोच्च नेता आयातोल्लाह ख़ामनेई का सटीक ठिकाना पता है, लेकिन अभी उन्हें निशाना बनाने का कोई इरादा नहीं है। दूसरी ओर, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह बयान देकर खलबली मचा दी कि इस संकट को समाप्त करने के लिए ख़ामनेई को निष्क्रिय करना एक जरूरी कदम हो सकता है।
इस बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने युद्धविराम की अपील की है। फ्रांस, रूस, तुर्की और G7 देशों ने कूटनीतिक समाधान के पक्ष में बयान दिए हैं। हालांकि, ज़मीनी हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं और किसी भी समय ये युद्ध और भयानक रूप ले सकता है।
यह संघर्ष केवल सैन्य ताकत की लड़ाई नहीं है, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैश्विक हितों और रणनीतिक दांव-पेच का अखाड़ा बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह युद्ध एक व्यापक क्षेत्रीय संकट में बदलता है या कोई चमत्कारिक कूटनीतिक पहल इसे थाम लेती है।