इज़राइल और ईरान के बीच तनाव एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। हाल ही में इज़राइल ने ईरान के खिलाफ एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू किया, जिसमें ड्रोन और मिसाइल हमले शामिल थे। इन हमलों का मुख्य निशाना ईरान की सैन्य और ऊर्जा संरचनाएं बनीं, विशेष रूप से साउथ पार्स गैस क्षेत्र की एक प्रमुख रिफाइनरी को निशाना बनाकर हमला किया गया। इस हमले के बाद गैस उत्पादन पर गंभीर असर पड़ा और आग की घटनाओं ने वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया।
जवाब में ईरान ने भी इज़राइल पर भारी संख्या में बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन दागे। इन हमलों में कई इज़राइली शहरों को नुकसान पहुंचा, जिनमें यरुशलम और तेल अवीव शामिल हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन हमलों में कई नागरिकों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए हैं।
इस बढ़ते तनाव का असर केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका सीधा असर वैश्विक ऊर्जा बाजारों पर भी पड़ा है। कच्चे तेल की कीमतों में 7 से 12 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई, और ब्रेंट क्रूड का दाम $100 प्रति बैरल के करीब पहुंच गया। सोने की कीमतें भी उछल गईं, और वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई। हालांकि, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के शेयरों में तेजी आई है।
ईरान ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि हालात और बिगड़े, तो वह स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ को बंद कर सकता है। यह मार्ग वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित करता है, और इसके बंद होने से दुनिया भर में तेल संकट गहरा सकता है।
इस बीच, अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप जैसे प्रमुख वैश्विक ताकतें तनाव कम करने की कोशिशों में लगी हैं। हालांकि, ईरान और अमेरिका के बीच चल रही परमाणु वार्ताएं इस समय ठप पड़ी हैं, और ऐसे में कूटनीतिक समाधान दूर की बात लग रही है।
इज़राइल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसका लक्ष्य केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना ही नहीं है, बल्कि उसकी सैन्य क्षमता को भी कमजोर करना है। दूसरी ओर, ईरान इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानते हुए लगातार पलटवार की चेतावनी दे रहा है।
यह संघर्ष अब सैन्य झड़पों से आगे बढ़कर वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का कारण बनता जा रहा है। अगर यह स्थिति जल्द नहीं संभली, तो न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया को इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।