जहां हर ईंट में गूंजती है अध्यात्म और कला की विरासत - “ म्यांमार का बगान”

Jitendra Kumar Sinha
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दक्षिण-पूर्व एशिया के दिल में बसे म्यांमार का बगान (Bagan) एक ऐसा अनमोल रत्न है, जो न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि बौद्ध धर्म की आध्यात्मिक गहराई को भी जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है। यह ऐतिहासिक नगरी म्यांमार के मध्यवर्ती क्षेत्र में स्थित है और यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जा चुका है।

बगान की नींव 9वीं शताब्दी में डाली गई थी, लेकिन इसका स्वर्णकाल 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच आया, जब पगन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसने धार्मिक, सांस्कृतिक और शिल्पकला के क्षेत्र में अद्वितीय उन्नति दिखी। राजा अनावरता (King Anawrahta) ने थेरवाद बौद्ध धर्म को राज्यधर्म के रूप में अपनाया और हजारों धार्मिक संरचनाओं का निर्माण कराया।

बगान में फैले करीब 2,500 धार्मिक ढांचे, जिनमें भव्य मंदिर, शांतिपूर्ण मठ, खंडहर, पगोडा और स्तूप शामिल हैं, आज भी श्रद्धा और विस्मय का कारण बनता है। यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में अनाथपिन्य मंदिर, धम्मयांगी मंदिर और श्वेसीगॉन पगोडा प्रमुख हैं। इनकी दीवारों पर उकेरी गई कहानियां, बुद्ध की मूर्तियां और चित्रकला उस काल की धार्मिक भक्ति और कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाता है।

बगान की स्थापत्य शैली विभिन्न संस्कृतियों का संगम है। भारतीय, श्रीलंकाई और स्थानीय म्यांमार शैली का प्रभाव मंदिरों की संरचना और चित्रकारी में साफ दिखाई देता है। मंदिरों की बनावट में लाल ईंटों का व्यापक उपयोग किया गया है, जिनकी सादगी और गहराई अपने आप में मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।

बगान केवल एक पुरातात्विक स्थल नहीं है, बल्कि आज भी एक जीवंत आध्यात्मिक केंद्र है। यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह स्थान बौद्ध दर्शन का केंद्र है, जहां ध्यान, प्रार्थना और साधना के लिए एक दिव्य वातावरण मौजूद है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय बगान के ऊपर उड़ते गुब्बारों से इसका दृश्य स्वर्गिक अनुभव प्रदान करता है।



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