पंचगव्य से - होगा 19 बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज

Jitendra Kumar Sinha
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वर्तमान समय में जब आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ अनेक बीमारियों का इलाज खोजने में असमर्थ साबित हो रही हैं या फिर इलाज अत्यधिक महँगा हो गया है, ऐसे में आयुर्वेद की ओर लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में एक अनूठी और प्रशंसनीय पहल की है। सरकार पंचगव्य- दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर, के उपयोग से मंजन, मलहम, औषधियां और अन्य उत्पाद तैयार करेगी, जो न केवल स्वास्थ्य लाभकारी होगा बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बल देगा। पंचगव्य संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'गाय से प्राप्त पांच वस्तुएं'। इसमें शामिल हैं दूध, दही, घी, गोमूत्र, और गोबर। यह पांचों वस्तु मिलकर जब शुद्ध, नियंत्रित और वैज्ञानिक विधि से उपयोग की जाय, तो आयुर्वेद के अनुसार, इनसे शरीर की कई बीमारियों का इलाज संभव होता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने पंचगव्य आधारित उत्पादों के निर्माण को आयुर्वेदिक उद्योग का हिस्सा बनाकर, न केवल ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने का प्रयास किया है, बल्कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक अनुसंधान का संगम भी प्रस्तुत किया है। प्रदेश गोसेवा आयोग के ओएसडी डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने जानकारी दी है कि सरकार द्वारा पंचगव्य से तैयार उत्पादों को डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, त्वचा विकार, आदि जैसी कुल 19 बीमारियों के इलाज में कारगर पाया गया है।

गोमूत्र को आयुर्वेद में एक संजीवनी तत्व माना गया है। इसमें पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड, कार्बोलिक एसिड, और एंजाइम्स औषधीय तत्व पाया जाता है। इन सभी तत्वों के कारण गोमूत्र शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, मेटाबॉलिज्म को संतुलित करता है, डिटॉक्सीफिकेशन यानि शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालता है, और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक हो सकता है (कुछ प्रायोगिक अध्ययनों के अनुसार)। 

सरकार के अनुसार और आयुर्वेद विशेषज्ञों की मान्यता के अनुसार पंचगव्य आधारित उत्पादों से डायबिटीज (मधुमेह) में शुगर नियंत्रण, अग्न्याशय क्रिया में सुधार, हृदय रोग में हृदय की कार्यक्षमता में सुधार, उच्च रक्तचाप में रक्त संचार का संतुलन, अस्थमा में सांस की नली की सफाई, त्वचा विकार (सोरायसिस, दाद) में संक्रमण रोधी प्रभाव, डैंड्रफ और बाल झड़ना में बालों की जड़ें मजबूत करना, बुखार और वायरल संक्रमण में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, कब्ज और पेट की गैस में पाचन तंत्र में सुधार, सिरदर्द और माइग्रेन में स्नायु तंत्र को शांत करना, गठिया और वात रोग में सूजन और दर्द में राहत, रक्त विकार में रक्त को शुद्ध करना, स्त्री रोग में हार्मोन संतुलन में सहायता, मूत्र रोग में मूत्र नली की सफाई, थकावट और कमजोरी में ऊर्जा का संचार, एलर्जी और साइनस में शरीर को डिटॉक्स करना, मोटापा में फैट बर्निंग में सहायक, लीवर विकार में लीवर की मरम्मत और सुरक्षा, आंखों की समस्याएं में आंखों की दृष्टि में सुधार, कैंसर (प्रारंभिक अवस्था) में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि पर नियंत्रण, इस प्रकार 19 बीमारियों में लाभ होता है।

उत्तर प्रदेश सरकार की योजना के अनुसार, पंचगव्य आधारित आयुर्वेदिक मंजन- मसूड़ों को मजबूत करने और मुंह की दुर्गंध मिटाने में सहायक, मलहम और लेप- चोट, सूजन और फोड़े-फुंसियों में उपयोगी, गोमूत्र अर्क- पेट की बीमारियों और डिटॉक्स के लिए, गो-टी पाउडर (गोमूत्र आधारित चाय)- डायबिटीज और वजन नियंत्रण के लिए, क्रीम और फेस पैक- सौंदर्य प्रसाधनों के रूप में, गो-शैम्पू और साबुन- त्वचा और बालों की देखभाल के लिए, गो-धूपबत्ती- पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए, और गो-फिनाइल- जैविक और पर्यावरणहितैषी फर्श साफ करने वाला, उत्पाद तैयार किया जा सकता है।

हाल के वर्षों में कई वैज्ञानिक संस्थानों ने पंचगव्य और गोमूत्र पर अध्ययन किया हैं। राष्ट्रीय गोधन अनुसंधान केंद्र, आईआईटी खड़गपुर, और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर जैसे संस्थानों के अनुसार, गोमूत्र में जैविक कीटनाशक के गुण होते हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता हैं जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाता हैं, इसका pH स्तर संतुलित होता है, जिससे यह आंतरिक और बाहरी दोनों रूप में उपयोगी है, इन पहलुओं की पुष्टि किया है।

सरकार की इस योजना से न केवल चिकित्सा क्षेत्र को लाभ होगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध होगा। मुख्यत गौशालाओं का पुनर्जीवन- गायों की देखभाल और उत्पाद संग्रह के लिए नई व्यवस्था, कृषक महिलाओं को प्रशिक्षण- महिलाओं को पंचगव्य उत्पादों के निर्माण के लिए प्रशिक्षित किया जाना, स्थानीय ब्रांड और उद्यम- ग्राम स्तर पर आयुर्वेदिक स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन, निर्यात की संभावना- अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक उत्पादों की मांग के चलते निर्यात की अपार संभावनाएं, शामिल हैं।

भारतीय संस्कृति में गाय को 'माता' का स्थान दिया गया है। पंचगव्य न केवल औषधीय बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। पुराने वैदिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है, और अब वैज्ञानिक शोधों ने भी इसके औषधीय पक्ष को प्रमाणित किया है।

लोगों में अभी भी गोमूत्र और पंचगव्य को लेकर भ्रांतियाँ हैं, वैज्ञानिक प्रमाणों की आवश्यकता है, उत्पादन की शुद्धता और मानकीकरण तथा बाजार में भरोसेमंद ब्रांड की कमी की चुनौतियाँ हैं । जबकि प्रचार-प्रसार और जनजागरण अभियान से, सरकारी सहायता से अनुसंधान प्रयोगशालाओं की स्थापना से,  FSSAI एव आयुष मंत्रालय से प्रमाणन व्यवस्था से सामुदायिक गोशालाओं के माध्यम से निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण से समाधान संभव है।

गोमूत्र और पंचगव्य आधारित उत्पादों का उपयोग आयुर्वेद में प्राचीन काल से होता आया है, लेकिन अब उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे आधुनिक विज्ञान और औद्योगिक दृष्टिकोण से जोड़कर स्वास्थ्य, रोजगार और संस्कृति तीनों को एकसाथ जोड़ा है। यह न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि विश्व को भी भारतीय आयुर्वेद की शक्ति से परिचित कराएगा।



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