राजस्थान के नीमकाथाना क्षेत्र में अरावली की वादियों के बीच स्थित “बालेश्वर महादेव” मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक ऐसा स्थान भी है जहां प्रकृति की सुंदरता, इतिहास की गहराई और अध्यात्म की ऊंचाई एक साथ मिलती है। सावन के पवित्र महीने में यह स्थल भक्ति, आस्था और रहस्य से भरपूर वातावरण में डूब जाता है। भक्त यहां न केवल भगवान शिव के बालस्वरूप के दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि आसपास की वादियों में बिखरे प्राकृतिक दृश्यों और शांति के अनुभव के लिए भी यहां खिंचे चले आते हैं।
“बालेश्वर महादेव” मंदिर की प्राचीनता को प्रमाणित करता है इसकी दीवार पर अंकित प्राकृत भाषा का शिलालेख। यह शिलालेख मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता का साक्ष्य है और विद्वानों के अनुसार, यह लगभग 1000 वर्षों पुराना हो सकता है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण सूर्यवंशी राजाओं ने करवाया था, जिन्होंने अपने राज्यकाल में शिवभक्ति को प्राथमिकता दी थी।
पुरातात्विक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह मंदिर भारतीय शिल्पकला और धार्मिक स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की दीवारों और गर्भगृह में की गई नक्काशी आज भी सजीव प्रतीत होता है।
इस मंदिर में भगवान शिव को “बालेश्वर महादेव” यानि बालस्वरूप शिव के रूप में पूजा जाता है। यह स्वरूप शिव के कोमल, करुणामय और सरल व्यक्तित्व का प्रतीक है। मंदिर के पुजारी पंडित कौशलदत्त शर्मा बताते हैं कि इस धाम में भगवान को बालक की तरह पूजा जाता है, दूध, मिश्री और घृत से उनका जलाभिषेक किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को भक्त बड़ी श्रद्धा से भगवान “बालेश्वर महादेव” के शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, भस्म और दूध चढ़ाते हैं और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
बालेश्वर धाम की सबसे रोचक बात इसका प्राकृतिक शिवलिंग है। यह शिवलिंग किसी भी पत्थर से निर्मित नहीं है, बल्कि इसे धरती से स्वयं उत्पन्न (स्वयम्भू) माना जाता है। मंदिर के वरिष्ठ पुजारी लीलाराम योगी बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने लगभग 400 साल पहले शिवलिंग की गहराई जानने के लिए खुदाई की थी। जब खुदाई 12.5 फीट नीचे तक की गई तब भी शिवलिंग का अंत नहीं मिला। इतना ही नहीं, खुदाई के दौरान मधुमक्खियों का अजीबोगरीब हमला हुआ जिससे खुदाई बंद करनी पड़ी। यह घटना आज भी रहस्य बनी हुई है और भक्तों के बीच इस शिवलिंग को अत्यंत चमत्कारी और अद्भुत माना जाता है।
मंदिर के पीछे स्थित गुलर के पेड़ की जड़ के पास एक छोटा सा कुंड स्थित है, जिसे अमृत कुंड कहा जाता है। यह कुंड वर्षभर जल से भरा रहता है और इससे निरंतर जलधारा बहती रहती है। आज तक वैज्ञानिक या भूगर्भशास्त्री यह पता नहीं लगा सका है कि इस कुंड में पानी कहां से आता है।
स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, यह जलधारा कैलाश पर्वत से जुड़ा माना जाता है और इसे पवित्र एव औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। भक्त इस जल को पीते हैं, स्नान करते हैं और इसे घर भी ले जाते हैं।
नीमकाथाना से बालेश्वर महादेव मंदिर तक का मार्ग स्वयं में एक अद्भुत अनुभव है। अरावली की वादियां, हरे-भरे पेड़, पक्षियों की चहचहाहट और पर्वतीय रास्तों की ठंडी हवा इस यात्रा को अत्यंत सुखद बनाता है। जैसे प्रकृति स्वयं अपने भक्तों को भगवान तक पहुंचने का आमंत्रण देती है। मंदिर के आसपास की हरियाली और शांत वातावरण ध्यान और योग के लिए आदर्श स्थल प्रदान करता है।
बालेश्वर धाम को तांत्रिक ऊर्जा से भी जोड़ा जाता है। कुछ साधक यहां ध्यान, साधना और तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं। माना जाता है कि सावन की अमावस्या, महाशिवरात्रि और त्रयोदशी के दिन यहां की ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय होती है।
यहां ध्यान करने से चक्र संतुलन (chakra balancing), मन की शांति और साक्षात्कार की अनुभूति संभव होता है। कई साधक बताते हैं कि उन्हें यहां ध्यान के दौरान दिव्य प्रकाश और शिवस्वरूप के दर्शन हुए हैं।
सावन में यहां हर सोमवार को विशाल भंडारा और शिवझांकी का आयोजन होता है। रुद्राभिषेक, महाआरती, शिव तांडव और ध्वनि वादन इस मंदिर को सांस्कृतिक जीवंतता से भर देतता है।
स्थानीय कलाकार ढोल-नगाड़ों के साथ भजन-कीर्तन करते हैं और लोकनृत्य प्रस्तुत करते हैं। बच्चों के लिए झूले, मेले की दुकानें, धार्मिक पुस्तकें और प्रसाद की व्यवस्था इसे एक धार्मिक उत्सव का रूप दे देता है।
“बालेश्वर महादेव” मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह स्थानीय समाज का सांस्कृतिक और भावनात्मक केंद्र भी है। मंदिर में चलने वाली गौशाला, निःशुल्क चिकित्सा शिविर, भोजनालय और शिक्षण केंद्र समाजसेवा का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
त्योहारों के समय मंदिर प्रबंधन द्वारा रक्तदान, वस्त्र वितरण और पौधारोपण जैसे कार्य भी करवाया जाता है। यह शिवधाम स्थानीय युवाओं में धार्मिक चेतना और सामाजिक सेवा की प्रेरणा का स्रोत है।
मंदिर प्रबंधन और श्रद्धालुओं द्वारा मिलकर हरियाली बचाओ और स्वच्छता अभियान चलाया जाता है। श्रद्धालु यहां आने पर प्लास्टिक का उपयोग नहीं करते हैं, जैविक प्रसाद का वितरण करते हैं और मंदिर परिसर में वृक्षारोपण को बढ़ावा देते हैं। यह एक अनूठा उदाहरण है जहां आध्यात्म और पर्यावरण चेतना का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।
“बालेश्वर महादेव” मंदिर केवल पूजा-अर्चना का केंद्र नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, अध्यात्म, संस्कृति और रहस्य का संगम है। यहां की रहस्यमयी शिवलिंग, अमृत कुंड, प्राकृतिक दृश्य और भक्ति का वातावरण मन को शांत और आत्मा को तृप्त करता है।
जो भी एक बार यहां आता है, वह बार-बार आने की इच्छा करता है। अरावली की वादियों में बसा यह शिवधाम हर श्रद्धालु को जीवन में कम से कम एक बार अवश्य दर्शन करना चाहिए।
