भगवान बुद्ध की कर्मभूमि और लोकतंत्र की जननी वैशाली की पावन धरती पर एक नया इतिहास रचा जा रहा है। यहाँ भगवान बुद्ध के पवित्र स्मृति अवशेषों को सहेजने और दुनिया भर के बौद्ध धर्मावलंबियों के दर्शन के लिए निर्मित हो रहा 'बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय-सह-स्मृति स्तूप' अब अपने अंतिम चरण में है और लगभग बनकर तैयार हो चुका है।
बिहार सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्घाटन इसी महीने, यानि जुलाई के अंत तक होने की प्रबल संभावना है, जिसके बाद यह ऐतिहासिक स्थल दुनिया भर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए खुल जाएगा।
इस महत्वपूर्ण परियोजना की प्रगति का जायजा लेने के लिए गुरुवार को भवन निर्माण विभाग के सचिव कुमार रवि ने स्वयं निर्माण स्थल का निरीक्षण किया। उन्होंने स्तूप के विभिन्न हिस्सों, संग्रहालय की गैलरियों और दर्शक सुविधाओं का बारीकी से अवलोकन किया तथा अधिकारियों को शेष कार्यों को शीघ्रता से अंतिम रूप देने का निर्देश दिया। उनके इस दौरे से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार इस परियोजना को लेकर कितनी गंभीर है और इसे समय पर पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह स्मृति स्तूप केवल एक भव्य संरचना नहीं, बल्कि करोड़ों बौद्ध अनुयायियों की आस्था का केंद्र बनेगा। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान बुद्ध के उन पवित्र अवशेषों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान प्रदान करना है, जो वैशाली की भूमि से प्राप्त हुए थे।
माना जाता है कि महापरिनिर्वाण के पश्चात भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया था, जिनमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। इन अमूल्य निधियों को अब तक पटना संग्रहालय में रखा गया था, लेकिन अब वह अपनी मूल भूमि पर वापस लौट रही हैं।
यह स्तूप और संग्रहालय बौद्ध धर्म की शिक्षाओं, भगवान बुद्ध के जीवन और वैशाली के गौरवशाली इतिहास की जीवंत झांकी प्रस्तुत करेगा। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल पवित्र अवशेषों के दर्शन कर पाएंगे, बल्कि अत्याधुनिक संग्रहालय के माध्यम से बुद्ध के सम्यक दर्शन के सिद्धांत को भी समझ सकेंगे।
वैशाली पहले से ही एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल है, जहाँ अशोक स्तंभ, अभिषेक पुष्करणी और विश्व शांति स्तूप जैसे कई ऐतिहासिक स्मारक मौजूद हैं। अब इस भव्य स्मृति स्तूप के निर्माण से वैशाली का महत्व अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर और भी बढ़ जाएगा। उम्मीद है कि इसके लोकार्पण के बाद देश-विदेश से आने वाले बौद्ध तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
यह स्तूप शांति, करुणा और सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में वैशाली के गौरवशाली अतीत को उसके भव्य भविष्य से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा। इसके तैयार होने का इंतजार न केवल बिहार, बल्कि दुनिया भर के बौद्ध समुदाय को बेसब्री से है।
