अचानक हृदय रोग से मृत्यु और कोविड-19 के बीच कोई संबंध नहीं

Jitendra Kumar Sinha
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कोरोना वैक्सीन और हार्ट अटैक से मौतों के बीच कोई संबंध नहीं... स्वास्थ्य  मंत्रालय की दो टूक - health ministry clarifies no links between covid  vaccines and sudden deaths icmr risky ...

कोविड-19 महामारी के बाद से अचानक दिल की मौतों (Sudden Cardiac Deaths) को लेकर लोगों के मन में भय बढ़ गया है। विशेषकर युवा वर्ग में अचानक हृदयगति रुकने के मामलों ने चिंताएं और संदेह पैदा किया है। सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चाओं तक एक सवाल बार-बार उठता रहा है कि क्या कोविड-19 का संक्रमण या वैक्सीनेशन अचानक दिल की मौतों के लिए जिम्मेदार है? इस प्रश्न का उत्तर देने और विज्ञान आधारित निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए कर्नाटक सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है, जिसने 251 मामलों का अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपी है। 

कर्नाटक के हासन जिले में कुछ ही महीनों के भीतर 24 से अधिक युवाओं की अचानक हृदय मृत्यु की खबरें आईं। इनमें से कई मामलों में पीड़ित बिल्कुल स्वस्थ माने जा रहे थे। कोविड-19 के बाद देश भर में युवाओं में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही थी। इसे देखते हुए कर्नाटक सरकार ने जयदेव हृदय रोग संस्थान के निदेशक डॉ. के. एस. रवींद्रनाथ की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की। अप्रैल 2025 से 31 मई 2025 के बीच 251 मरीजों का विश्लेषण किया गया। इनमें 32 महिलाएं शामिल थीं और सभी की आयु 45 वर्ष से कम थी। इनमें से कुछ मरीज जीवित थे और कुछ की मृत्यु हो चुकी थी।

अध्ययन का उद्देश्य था कि कोविड-19 संक्रमण और वैक्सीनेशन के कारण अचानक हृदयगति से मृत्यु के संभावित संबंध की जांच। परंपरागत हृदय जोखिम कारकों की पहचान। तुलनात्मक डेटा के जरिए महामारी पूर्व और पश्चात स्वास्थ्य प्रवृत्तियों की समझ। सभी 251 मरीजों की चिकित्सकीय प्रोफाइल, टीकाकरण स्थिति, पारिवारिक इतिहास, लाइफस्टाइल, धूम्रपान, मधुमेह, हाई कोलेस्ट्रॉल, और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर्स की गहन समीक्षा की गई। तुलनात्मक अध्ययन के लिए 2019 की वीसीएडी रजिस्ट्री से डेटा लिया गया और समान आयु वर्ग के मरीजों से तुलना की गई। रिपोर्ट में अस्पष्ट मृत्यु वाले मामलों पर पोस्टमॉर्टम आधारित अध्ययन की सिफारिश की गई।

विशेषज्ञ समिति ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि इन 251 मामलों में कोविड संक्रमण या वैक्सीनेशन का कोई प्रत्यक्ष कारण का संबंध नहीं पाया गया है। यानि कोविड या वैक्सीन के कारण अचानक दिल की गति रुकने से मौत होने का दावा वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, युवाओं में हृदय रोग के प्रमुख कारण हैं धूम्रपान की लत, मधुमेह और इंसुलिन रेजिस्टेंस, कोलेस्ट्रॉल विकार और मोटापा, निष्क्रिय जीवनशैली और पारिवारिक इतिहास। विशेष रूप से यह देखा गया है कि कोविड काल के दौरान लोगों की लाइफस्टाइल अधिक खराब हुई है, फिजिकल एक्टिविटी कम हुई है, और खानपान में असंतुलन बढ़ा है।

251 मरीजों में से 249 को कोविड वैक्सीन लगी थी, 53 को सिर्फ 1 डोज, 180 को 2 डोज और 17 को बूस्टर डोज। इनमें से 144 को कोविशील्ड, 64 को कोवैक्सिन, और 52 मरीज वैक्सीन का नाम नहीं बता सका। इस डेटा से यह साबित नहीं होता है कि वैक्सीनेशन के कारण हृदय रोग की घटनाएं बढ़ीं है। क्योंकि इनमें अधिकांश मरीज परंपरागत जोखिम कारकों से ग्रस्त थे।

अध्ययन में 2019 (कोविड पूर्व) और 2025 (कोविड पश्चात) के मरीजों के स्वास्थ्य प्रोफाइल की तुलना की गई। निष्कर्ष यह निकला कि लाइफस्टाइल डिसऑर्डर बढ़े हैं, लिपिड स्तर और मोटापा ज्यादा देखने को मिला है और मानसिक तनाव और व्यायाम की कमी ने भी भूमिका निभाई है । इससे यह स्पष्ट होता है कि कोविड के कारण जीवनशैली में आई गिरावट ने हृदय रोग की आशंका को बढ़ाया है, न कि कोविड वायरस या टीका।

विशेषज्ञ समिति ने कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की हैं ताकि भविष्य में युवाओं में हृदय रोगों की घटनाएं रोकी जा सके। राज्य स्तर पर युवाओं के लिए नियमित हृदय जांच कार्यक्रम चलाए जाएं। देशभर में अचानक हृदय मृत्यु के मामलों के लिए एक केंद्रीय डेटा बैंक बनाया जाए। कक्षा 10 या 15 वर्ष की उम्र में अनिवार्य हृदय स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था हो। अस्पष्ट युवा मौतों के मामलों में शव परीक्षण आधारित रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए। कोविड, टीकाकरण और दिल की बीमारियों पर राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक अध्ययन प्रोत्साहित किया जाय।

अचानक हुई युवा मौतों को लेकर सोशल मीडिया पर अफवाहें बहुत तेजी से फैली हैं। बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के वैक्सीनेशन को दोष देना आम हो गया। इससे टीका लेने वालों में डर फैला, और टीकाकरण की दर भी प्रभावित हुई है। जनता को साक्ष्य आधारित सूचना देना और चिकित्सा विशेषज्ञों के निष्कर्षों को प्रचारित करना अत्यावश्यक है। इससे भय, भ्रम और गलत धारणाओं को रोका जा सकता है।

स्कूलों, कॉलेजों, और कार्यस्थलों पर हृदय स्वास्थ्य के बारे में शिक्षा देना आवश्यक है। जीवन शैली में सुधार के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, धूम्रपान और शराब से दूरी तथा तनाव प्रबंधन करना चाहिए। विशेषकर 30 वर्ष की उम्र के बाद सालाना ECG, लिपिड प्रोफाइल और ब्लड शुगर की जांच कराना बेहद आवश्यक है।



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