ईरान में दुष्कर्म के दोषी को दी गई सार्वजनिक फांसी

Jitendra Kumar Sinha
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ईरान में हाल ही में एक अत्यंत गंभीर और बहस को जन्म देने वाली घटना सामने आई है, जहां दुष्कर्म और हत्या के दोषी एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई। यह निर्णय न केवल न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा था, बल्कि पीड़िता के परिवार की मांग पर इसे सार्वजनिक रूप से अंजाम दिया गया। यह घटना दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गई है, खासकर मानवाधिकारों और सजा के तरीकों को लेकर।

यह मामला मार्च 2025 का है, जब ईरान के एक शहर में एक युवक ने एक किशोरी के साथ पहले दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या कर दी। इस घिनौने अपराध के बाद पूरे देश में रोष फैल गया। स्थानीय पुलिस ने तेजी से कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया। अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई। इस फैसले के विरुद्ध जब आरोपी ने देश की सर्वोच्च अदालत में अपील की, तो वहां भी उसकी सज़ा को बरकरार रखा गया।

इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि पीड़िता के माता-पिता ने अदालत से अनुरोध किया कि दोषी को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाए, ताकि समाज के सामने एक सशक्त संदेश जाए और ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। ईरान के कानून में यह प्रावधान है कि मृत्युदंड पीड़िता के परिवार की मांग पर सार्वजनिक रूप से भी दिया जा सकता है। अंततः न्यायालय ने इस मांग को स्वीकार करते हुए फांसी सार्वजनिक रूप से देने का आदेश दिया।

इस घटना को लेकर दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। एक पक्ष का मानना है कि यह कदम साहसी और प्रभावी है। सार्वजनिक फांसी से समाज को एक कड़ा संदेश मिलता है कि ऐसे जघन्य अपराधों के लिए कोई माफी नहीं है। यह पीड़ित परिवार को भी संतोष देता है कि उन्हें न्याय मिला है।

वहीं, मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दूसरा पक्ष यह कहता है कि सार्वजनिक फांसी जैसे तरीके अमानवीय हैं और यह मध्ययुगीन न्याय प्रणाली का याद दिलाता है। उनके अनुसार, अपराध चाहे जितना भी बड़ा हो, सजा का तरीका सभ्य होना चाहिए।

ईरान में इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि न्याय की परिभाषा क्या होनी चाहिए। क्या पीड़ित को संतोष दिलाना सर्वोपरि है, या समाज को एक आदर्श संदेश देना? सार्वजनिक फांसी न्याय का एक सशक्त प्रतीक है या क्रूरता की छाया? इस पर विचार जरूरी है। लेकिन इतना तय है कि इस घटना ने अपराध, कानून और मानवाधिकारों के बीच के संतुलन को लेकर नई बहस छेड़ दी है।



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