बिजली, पानी, शिक्षा, आवास और परिवहन जैसी जन उपयोगी सेवाओं से जुड़ी समस्याएं आम लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। इन सेवाओं में जब विवाद उत्पन्न होता है, तो न्याय पाने की प्रक्रिया लंबी और खर्चीली हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए बिहार की राजधानी पटना में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए “जन उपयोगी सेवाओं की स्थायी लोक अदालत” का गठन किया है।
स्थायी लोक अदालत (Permanent Lok Adalat) एक वैकल्पिक न्याय प्रणाली है, जहां जनता से जुड़ी सेवाओं में उत्पन्न विवादों को अदालत में मुकदमा दायर किए बिना ही सुलझाया जाता है। इसका उद्देश्य है तेज, कम खर्चीला और आपसी सहमति पर आधारित समाधान करना। यह अदालत प्री-लिटिगेशन यानि अदालत में मुकदमा दायर होने से पहले की स्थिति में ही विवादों का समाधान करती है।
अब तक इस अदालत के दायरे में परिवहन सेवा, जल आपूर्ति, विद्युत आपूर्ति, औषधालय (अस्पताल/चिकित्सा), पर्यावरण संरक्षण, बीमा सेवा शामिल था। लेकिन अब इसमें शिक्षा, शैक्षणिक संस्थान, भू-संपदा एवं आवास सेवाएं भी शामिल कर ली गई हैं। इसका मतलब है कि अगर स्कूल की फीस, एडमिशन, मकान से जुड़ी समस्याएं या जमीन की रजिस्ट्री आदि से संबंधित कोई विवाद है, तो उसे अदालत में ले जाने से पहले यहां सुलझाया जा सकता है।
पटना व्यवहार न्यायालय में गठित इस अदालत के अध्यक्ष अवकाश प्राप्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सत्येंद्र पांडेय हैं। उनके साथ संजय कुमार शुक्ला और ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रतिनिधि रेशमा प्रसाद को सदस्य नियुक्त किया गया है। रेशमा की नियुक्ति एक समावेशी न्याय प्रणाली की दिशा में बड़ा और स्वागतयोग्य कदम है।
आम जनता को राहत इस न्याय से राहत मिलता है क्योंकि लगो को सीधे अदालत के चक्कर काटना नहीं पड़ता है। समय की बचत बचत होती है, अन्यथा सालों चलने वाले मुकदमे लोग फंसे रहते हैं। खर्च में कमी होती है क्योंकि बिना वकील और भारी कोर्ट फीस के समझौते की राह आसान होता है। समाज में सद्भाव बनता है क्योंकि दोनों पक्षों की सहमति से समाधान होता है।
पटना में जन उपयोगी सेवाओं की स्थायी लोक अदालत का गठन आमजन के लिए न्याय के रास्ते को और अधिक सुलभ, सस्ता और त्वरित बनाता है। इससे न केवल न्याय व्यवस्था पर बोझ कम होगा, बल्कि लोगों को अपने अधिकारों के लिए एक प्रभावी मंच भी मिलेगा। यह पहल न्याय के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक सराहनीय कदम है।
