
21वीं सदी में बीमारियाँ बदल गई हैं। अब बीमारी का चेहरा सिर्फ संक्रमण या बैक्टीरिया नहीं, बल्कि आदतें बन चुकी है, तंबाकू, शराब और मीठा पेय। यह आदतें धीरे-धीरे शरीर को खा रहा है और मौत की ओर ले जा रहा है। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस आदत से लड़ने के लिए एक नया फार्मूला दिया है- 3|35|50. यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि एक वैश्विक स्वास्थ्य क्रांति का बिगुल है।
इस पहल का नाम है "3 बाय 35" (3×35), जिसका उद्देश्य है, 3 हानिकारक उत्पाद- तंबाकू, शराब और मीठे पेय। 2035 तक इन पर हेल्थ टैक्स के जरिए कीमत में कम से कम 50% की वृद्धि। इससे गैर-संचारी रोगों (Non-communicable Diseases: NCDs) से होने वाली मौतों में भारी कमी का लक्ष्य। WHO की माने तो अगर इस फार्मूले को पूरी तरह अपनाया जाए, तो अगली 5 करोड़ समयपूर्व मौतें रोका जा सकता है। और साथ ही, 1 लाख करोड़ डॉलर की पूंजी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जुटाया जा सकता है।
गैर-संचारी रोग वह है, जो संक्रमण से नहीं बल्कि जीवनशैली, भोजन, तनाव, और हानिकारक आदतों से जन्म लेता है। इनमें प्रमुख है- हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर, और फेफड़ों की बीमारियाँ। WHO के अनुसार, दुनिया भर में 75% से अधिक मौतें इन रोगों के कारण होती हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में तंबाकू, शराब और अधिक चीनी का सेवन मुख्य कारण होता है।
हेल्थ टैक्स यानि स्वास्थ्य कर का उद्देश्य केवल राजस्व जुटाना नहीं है, बल्कि जनस्वास्थ्य को प्राथमिकता देना है। इससे दोहरा लाभ होता है, पहला लाभ यह है कि महंगा होने से लोग कम खरीदते हैं और दूसरा फायदा यह है कि राजस्व में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया जा सके। डब्ल्यूएचओ के डॉ. जेरेमी फैरर का कहना है कि "हेल्थ टैक्स हमारे पास मौजूद सबसे प्रभावशाली उपायों में से एक है।"
भारत में तंबाकू और शराब पर पहले से ही टैक्स है, लेकिन सिगरेट पर 28% जीएसटी + मुआवजा उपकर, बीड़ी और बिना धुएं वाला तंबाकू (जैसे गुटखा, जर्दा) पर कम टैक्स और मीठे पेयों पर भी टैक्स दर कम है।
आश्चर्य की बात यह है कि भारत में तंबाकू उपभोग करने वालों में से दो-तिहाई लोग गुटखा या बीड़ी का उपयोग करते हैं, जिन पर टैक्स बहुत कम है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय है कि भारत की टैक्स नीति अभी भी राजस्व उगाही पर केंद्रित है, न कि जनस्वास्थ्य सुधार पर।
डॉ. प्रशांत कुमार सिंह (ICMR, NICPR) का कहना है कि "भारत की कर नीति में संभावनाएं हैं, लेकिन एक स्पष्ट और समन्वित स्ट्रक्चर की कमी के कारण यह जनस्वास्थ्य में बदलाव नहीं ला पा रही है।"
बीड़ी और बिना धुएं वाले तंबाकू पर भी सिगरेट जितना टैक्स होना चाहिए, मीठे पेयों (शुगर-ड्रिंक्स) पर कर में वृद्धि होना चाहिए और शराब पर राज्यों के साथ केंद्र की साझा नीति बनना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 2022 के बीच 140 देशों ने तंबाकू करों में वृद्धि की है। इससे कीमतों में औसतन 50% वृद्धि हुई है, उपयोग में कमी आई है, राजस्व में वृद्धि हुई है और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है। फ्रांस में तंबाकू पर भारी टैक्स के कारण युवा धूम्रपान में 40% की कमी आई है और फिलिपींस में टैक्स से जुटे पैसे से यूनिवर्सल हेल्थकेयर फंड बना है।
भारत के लिए संदेश है कि जनस्वास्थ्य को प्राथमिकता दें, सभी हानिकारक उत्पादों को समान रूप से टैक्स के दायरे में लाएं, राज्य और केंद्र मिलकर रणनीति बनाएं और स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाएं, टैक्स के साथ शिक्षा भी जरूरी है।
बहस होती रही है कि क्या टैक्स बढ़ाने से गरीबों पर बोझ बढ़ेगा? लेकिन तंबाकू और शराब से गरीब तबका सबसे अधिक प्रभावित होता है, बीमारी की लागत- इलाज, कमाई में कमी, पारिवारिक बोझ, कहीं ज्यादा है। इसलिए टैक्स बढ़ाकर उपयोग कम करना, लंबे समय में आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा।
मीठे पेयों में कोई पोषण नहीं है, अत्यधिक शुगर जो मोटापा, डायबिटीज और बच्चों में दांत खराब करता है, बच्चों और युवाओं को लत लगती है। WHO की सलाह है कि 50% मूल्य वृद्धि करें, स्कूलों में बैन लगाएं और जागरूकता फैलाएं।
भारत में गैर-संचारी रोगों का बोझ 60% से अधिक है, स्वास्थ्य खर्च का बड़ा हिस्सा आम जनता की जेब से जाता है, गरीब, ग्रामीण, अशिक्षित वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है और हर साल हो रही लाखों मौत, रोकथाम योग्य है।
नीति-निर्माण में स्वास्थ्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और उपभोक्ता मामलों का समन्वय जरूरी है, हेल्थ टैक्स से मिले पैसे को जनस्वास्थ्य पर खर्च करना अनिवार्य है और बीमा योजनाओं में इन रोगों की विशेष कवरेज होना चाहिए।
जनभागीदारी की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि तंबाकू, शराब और मीठे पेयों से दूरी बनाएं, स्वस्थ विकल्प अपनाएं और फल, नींबू पानी, छाछ, नारियल पानी का सेवन करना चाहिए, बच्चों को शुरुआत से ही इससे दूर रखना चाहिए और लोकल स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।
