जर्मनी के राइन-रूहर में आयोजित वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स (WUG) में भारत की बैडमिंटन टीम ने मिश्रित टीम इवेंट में कांस्य पदक जीतकर देश को गर्व का मौका दिया, लेकिन इस उपलब्धि के बीच एक बड़ा विवाद सामने आया है। इस टीम में चयनित 12 खिलाड़ियों में से 6 को खेलने से रोक दिया गया है, जिससे चयन प्रक्रिया और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा हो गया है।
मामला की गंभीरता इस बात से झलकती है कि जिन खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था, वह अंतिम समय पर कागजी प्रक्रिया में गड़बड़ी के चलते बाहर कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, 16 जुलाई को प्रबंधकों की बैठक में भारतीय अधिकारियों ने खिलाड़ियों के नाम और संबंधित विवरण सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया, जिससे छह खिलाड़ियों की भागीदारी रद्द कर दी गई है।
खेल जगत में इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। बाहर किए गए खिलाड़ियों और उनके परिजनों ने इसे प्रशासनिक लापरवाही बताया है, जिससे न केवल उनके करियर पर असर पड़ा है बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा आघात पहुंचा है। इन खिलाड़ियों ने महीनों तक मेहनत किया, प्रशिक्षण लिया और उम्मीदें बांधी थीं, लेकिन एक मामूली कागजी गलती ने उनका सपना चकनाचूर कर दिया।
मामला की गूंज अब खेल मंत्रालय तक पहुंच चुका है। कई खेल संघों और खिलाड़ियों ने इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने का मांग किया है। भारतीय विश्वविद्यालय खेल महासंघ (AIU) पर भी सवाल उठाया जा रहा है कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और तैयारी का घोर अभाव क्यों था?
भारतीय बैडमिंटन टीम ने मिश्रित टीम इवेंट में कांस्य पदक जीता है, लेकिन इस विवाद ने उस जीत की चमक फीकी कर दी है। जानकारों का मानना है कि अगर सभी 12 खिलाड़ी टीम में होते, तो शायद भारत पदक तालिका में और ऊपर पहुंच सकता था।
यह घटना भारत में खेल प्रबंधन के स्तर पर सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है। खिलाड़ी सालों मेहनत करता है, लेकिन अगर व्यवस्थाएं कमजोर हों, तो उनका भविष्य दांव पर लग जाता है। अब देखना यह है कि क्या दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होता है या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।
