पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने ‘अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल क्रिमिनल लॉ संशोधन) बिल, 2024’ को विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया है। इस विधेयक में बलात्कार और यौन अपराधों के लिए कड़ी सजा, यहां तक कि मृत्युदंड का भी प्रावधान था। केंद्र सरकार ने इस बिल की कुछ धाराओं को अत्यधिक कठोर और न्यायिक विवेक के विरुद्ध बताते हुए आपत्ति जताई थी। विशेष रूप से बिल की धारा 66 पर विवाद है, जिसमें बलात्कार पीड़िता की मृत्यु या उसके वेजिटेटिव स्टेट में जाने की स्थिति में न्यायालय के पास किसी प्रकार की छूट न रहकर सीधे मृत्युदंड की अनिवार्यता थी। यह प्रावधान भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए सिद्धांतों के भी विरुद्ध माना गया।
केंद्र ने यह भी कहा कि धारा 64 और 65 में प्रस्तावित बदलाव भारतीय न्याय संहिता की मौजूदा रूपरेखा से मेल नहीं खाते और इससे सबसे कमजोर वर्ग, जैसे 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को पर्याप्त संरक्षण नहीं मिल पाएगा। राज्य सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन सूत्रों के अनुसार वह इस विधेयक को महिला और बाल सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी मानती है। यह बिल पिछले साल एक मेडिकल छात्रा के साथ हुई जघन्य घटना के बाद राज्य सरकार द्वारा लाया गया था, जिसे विधानसभा ने भारी समर्थन से पारित किया था।
तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े ऐसे कानूनों को रोक कर राजनीतिक मंशा दिखा रही है, जबकि भाजपा का कहना है कि कानून बनाते समय संविधानिक संतुलन और न्यायिक विवेक का पालन जरूरी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा इस विधेयक को संशोधित करती है या फिर राजनीतिक टकराव और गहराता है।
