भविष्य मालिका: एक रहस्यमयी ग्रंथ या ईश्वरीय पूर्वज्ञान?

Jitendra Kumar Sinha
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भविष्य मालिका नाम सुनते ही एक रहस्यपूर्ण, अलौकिक और चौंकाने वाली दुनिया का आभास होता है। यह ग्रंथ दक्षिण भारत के एक महान संत विल्ल्वामंगलत्तु स्वामी द्वारा रचित माना जाता है, जिन्हें भगवान गुरुवायूरप्पन का अनन्य भक्त कहा गया है। कहा जाता है कि यह ग्रंथ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर लिखा गया था, जिसमें भविष्य की घटनाओं का स्पष्ट और वर्णनात्मक उल्लेख है। यह केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि समय से पहले भविष्य का आईना है जिसे पढ़ते हुए आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।


भविष्य मालिका में भारत और विश्व से जुड़ी कई घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी की गई है। इनमें भारत का विभाजन, महापुरुषों का आगमन, राजनीतिक षड्यंत्र, प्राकृतिक आपदाएँ, वैश्विक महामारी और धार्मिक पतन जैसे विषय शामिल हैं। यह कोई सामान्य काव्य या लिपिबद्ध दर्शन नहीं है, बल्कि एक ऐसी रहस्यमयी भविष्यवाणी है जो समय के साथ सजीव होती चली गई। ग्रंथ में गांधीजी जैसे संत का वर्णन मिलता है जो बिना शस्त्र के सत्ता को झुकने पर मजबूर कर देता है। वहीं नेहरू जैसे नेताओं की महत्वाकांक्षा और छलपूर्ण राजनीति की ओर भी संकेत मिलता है। विभाजन के समय बहाए गए रक्त की चेतावनी और धर्म के पतन की भविष्यवाणी इस ग्रंथ को और भी प्रासंगिक बना देती है।


भविष्य मालिका में यह भी कहा गया है कि कलियुग के अंत में जब अधर्म चरम पर होगा, तो धर्म के नाम पर कपट करने वाले नकली संत पैदा होंगे। वे भगवा वस्त्र पहनकर स्वार्थ सिद्ध करेंगे और धर्म को बदनाम करेंगे। जनता भ्रमित होगी और चारों ओर विनाश, असंतुलन और नैतिक पतन व्याप्त होगा। इन भविष्यवाणियों में जल, वायु और अग्नि के माध्यम से संहार और शुद्धिकरण की बात भी आती है। यह साफ संदेश देता है कि जो लोग सत्य और धर्म के मार्ग पर टिके रहेंगे, वही अंत में बचे रहेंगे।


ग्रंथ में एक विशेष भविष्यवाणी यह भी है कि एक समय आएगा जब उत्तर दिशा से एक तेजस्वी योगी प्रकट होगा जो सत्ता में न होते हुए भी देश की दिशा बदलेगा। उसकी दृष्टि अग्नि के समान होगी, वाणी में मंत्र होगा और उसका प्रभाव समुद्र की लहरों की तरह दूर-दूर तक फैलेगा। बहुत से लोग इस भविष्यवाणी को आज के भारत के कुछ प्रमुख आध्यात्मिक नेताओं से जोड़ते हैं।


हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि भविष्य मालिका की भाषा प्रतीकात्मक है, जिसे कोई भी समय के अनुसार व्याख्यायित कर सकता है। लेकिन यह तर्क इस बात को नकार नहीं सकता कि ग्रंथ में कई घटनाएँ दशकों पहले इस प्रकार लिखी गई थीं, जो बाद में हूबहू घटित हुईं। 2004 की सुनामी, कोरोना जैसी महामारी, भ्रष्टाचार की राजनीति, और समाज में नैतिक मूल्यों का क्षरण – इन सबका उल्लेख इस ग्रंथ में मिलता है।


भविष्य मालिका सिर्फ घटनाओं का विवरण नहीं है, बल्कि यह चेतावनी भी है कि अगर हम धर्म और सत्य के मार्ग से भटकेंगे, तो प्रकृति और समय हमें उसी अनुपात में दंड देंगे। यह ग्रंथ आधुनिक युग के उस सत्यनारायण कथा की तरह है जिसे केवल पूजा नहीं, समझना और आत्मसात करना भी जरूरी है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर हर युग में चेतावनी देता है, हर युग में संकेत देता है – लेकिन सुनता वही है, जो भीतर से जाग्रत हो।


जब पूरी दुनिया भ्रम, भय और लालच के साये में जी रही हो, तब भविष्य मालिका जैसे ग्रंथ एक आध्यात्मिक मशाल बनकर उभरते हैं। चाहे आप इसे अलौकिक मानें या एक दिव्य कल्पना, इसमें छिपा हुआ सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था जब यह लिखा गया था। भविष्य मालिका केवल भविष्य बताने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्मपरिष्कार की प्रेरणा है – जो बताता है कि परिवर्तन बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है।

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