बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले चल रही विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया अब अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। राज्य निर्वाचन कार्यालय के अनुसार अब तक करीब 96% फॉर्म भरकर जमा किए जा चुके हैं, जिनमें लगभग 7.57 करोड़ मतदाताओं की जानकारी शामिल है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन करना और यह सुनिश्चित करना है कि केवल योग्य मतदाताओं के नाम ही सूची में दर्ज हों। 24 जून से शुरू हुई यह प्रक्रिया 25 जुलाई तक चलेगी और 1 अगस्त को संशोधित प्रारूप मतदाता सूची जारी की जाएगी।
2003 तक पंजीकृत मतदाताओं को सिर्फ नाम की पुष्टि करनी थी, लेकिन उसके बाद शामिल मतदाताओं को पहचान पत्र, जन्म स्थान और नागरिकता से संबंधित दस्तावेज भी देने थे। राज्यभर में हजारों बूथ स्तर अधिकारी घर-घर जाकर जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। साथ ही राजनीतिक दलों ने अपने एजेंट नियुक्त किए हैं जो इस प्रक्रिया की निगरानी में मदद कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि 30 अगस्त तक आपत्तियों और दावों के लिए समय दिया जाएगा, ताकि किसी वैध नागरिक का नाम सूची से वंचित न रहे।
हालांकि यह प्रक्रिया विवादों से अछूती नहीं रही है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सख्त दस्तावेजी नियमों के कारण गरीब, प्रवासी और ग्रामीण मतदाताओं को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि इस बहाने बड़ी संख्या में लोगों के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने चुनाव आयोग को सलाह दी कि वह आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को नागरिकता साबित करने के लिए मान्य माने। लेकिन आयोग का कहना है कि ये दस्तावेज पर्याप्त नहीं हैं और नागरिकता की पुष्टि के लिए अन्य कानूनी प्रमाण जरूरी हैं।
राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए विशेष शिविरों की व्यवस्था की है। शिक्षा विभाग की ओर से यह भी निर्देश दिया गया है कि जहां-जहां स्कूलों में बूथ स्तर का कार्य हो रहा है, वहां शिक्षा का कार्य प्रभावित न हो। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने या सुधारने की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से पूरी हो।
इस पूरी कवायद का लक्ष्य यह है कि चुनाव से पहले मतदाता सूची पूरी तरह सटीक, अद्यतन और विवाद रहित हो। इससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व में हर योग्य नागरिक को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिले। हालांकि कानूनी और राजनीतिक बहसें अभी जारी हैं, लेकिन आयोग का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया संविधान और कानून के अनुरूप है और इसका उद्देश्य चुनाव को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है।
