चिराग पासवान पर जेडीयू का तंज: 'अर्जुन बनो, अभिमन्यु नहीं'

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार की राजनीति में एक बार फिर एनडीए के भीतर टकराव की स्थिति बन गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के हालिया बयानों ने गठबंधन के भीतर हलचल मचा दी है। चिराग ने कानून-व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार की आलोचना की, जिससे जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) भड़क गई। जेडीयू के प्रवक्ता अरुण भारती ने चिराग को सलाह देते हुए कहा कि वे ‘अभिमन्यु’ न बनें, बल्कि ‘अर्जुन’ की तरह सोचें। उन्होंने कहा कि अर्जुन ने चक्रव्यूह को तोड़ा था, जबकि अभिमन्यु उसमें फंस गया था। यह बयान स्पष्ट संकेत था कि अगर चिराग गठबंधन धर्म नहीं निभाते, तो खुद के लिए राजनीतिक संकट खड़ा कर बैठेंगे।


एनडीए के भीतर यह बयानबाज़ी सिर्फ जुबानी हमला नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। जेडीयू चाहती है कि चिराग अपनी सीमाएं समझें और एनडीए के भीतर रहते हुए मर्यादा में बोलें। दूसरी ओर, चिराग पासवान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे बिहार की राजनीति में अपनी पार्टी की स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी पार्टी राज्य की 244 सीटों में से करीब 60 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। इससे यह साफ है कि चिराग अब महज़ एक सहयोगी दल नहीं, बल्कि खुद को निर्णायक शक्ति के तौर पर देख रहे हैं।


बीजेपी इस पूरे विवाद में अभी तक चुप्पी साधे हुए है। पार्टी के भीतर एक वर्ग चिराग पासवान को उभरते हुए नेता के तौर पर देखता है, लेकिन दूसरा वर्ग उन्हें बिहार में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने से रोकना चाहता है। यह स्थिति बीजेपी के लिए असहज है, क्योंकि उसे एक ओर गठबंधन के छोटे दलों को संतुष्ट रखना है, और दूसरी ओर जेडीयू जैसे पुराने और मजबूत सहयोगी को भी नाराज़ नहीं करना है।


चिराग पासवान का यह रुख नई राजनीतिक रणनीति की ओर इशारा करता है। वे खुद को युवा चेहरे के तौर पर पेश कर रहे हैं और बिहार के मुद्दों पर खुलकर बोल रहे हैं। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि वे सिर्फ नाम के नेता नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़े मुद्दों पर गंभीर हैं। लेकिन उनकी यह आक्रामकता एनडीए के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है, खासकर तब जब चुनाव नजदीक हैं और सीटों के बंटवारे पर विचार चल रहा है।


जेडीयू की नाराज़गी इस बात से भी है कि चिराग पासवान गठबंधन में रहते हुए ऐसी बयानबाज़ी कर रहे हैं, जिससे सरकार की छवि को नुकसान हो रहा है। उन्हें यह डर है कि चिराग अगर इसी तरह खुद को अलग और बड़ा साबित करते रहे तो एनडीए में दरार गहराई ले सकती है। वहीं चिराग के समर्थकों का कहना है कि वे अपने हक की बात कर रहे हैं और बिहार की राजनीति में उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


इस पूरे घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि एनडीए के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं है। चिराग पासवान की महत्वाकांक्षा और जेडीयू की सख्त प्रतिक्रिया बताती है कि गठबंधन में शक्ति संतुलन अब पहले जैसा नहीं रहा। अगर बीजेपी इस स्थिति को संभालने में असफल रहती है, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में एनडीए को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अभी तक जो मतभेद बयानबाज़ी तक सीमित हैं, वे आगे चलकर गठबंधन को तोड़ने की दिशा में भी जा सकते हैं।

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