बिहार में मतदाता सूची की जांच में सामने आए नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के संदिग्ध नागरिक

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की विशेष समीक्षा के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के संदिग्ध नागरिकों के नाम सामने आए हैं। चुनाव आयोग की ओर से राज्यभर में चलाए जा रहे “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” (SIR) के दौरान बूथ-लेवल अधिकारियों ने ऐसे हजारों मामलों को चिन्हित किया है, जहां संदिग्ध विदेशी नागरिकों ने आधार कार्ड, राशन कार्ड, डोमिसाइल जैसे दस्तावेज़ों के सहारे भारतीय मतदाता पहचान पत्र प्राप्त किए हैं।


इन नागरिकों की पहचान के लिए आयोग द्वारा विशेष सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है और यह प्रक्रिया 1 अगस्त से 31 अगस्त के बीच पूरी होगी। जिनके दस्तावेज़ संदिग्ध पाए जाएंगे और नागरिकता स्पष्ट नहीं हो पाएगी, उन्हें 30 सितंबर को प्रकाशित होने वाली अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएगा। चुनाव आयोग इस बात पर विशेष ध्यान दे रहा है कि किसी भी वास्तविक भारतीय नागरिक का नाम गलती से न हटे।


इस कार्रवाई को लेकर बिहार की राजनीति में घमासान मच गया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इन खबरों को बकवास बताते हुए कहा कि बिना किसी आधिकारिक बयान के केवल 'सूत्रों' के हवाले से मीडिया को सूचनाएं दी जा रही हैं, जिससे जनता को भ्रमित किया जा रहा है। वहीं, भाजपा ने विपक्ष पर आरोप लगाया है कि वह घबरा गया है क्योंकि उसका कथित "अवैध वोट बैंक" अब खतरे में पड़ गया है। भाजपा का कहना है कि वर्षों से सीमा पार से आए लोगों को राजनीतिक संरक्षण देकर वोटर लिस्ट में शामिल कराया गया।


चुनाव आयोग की ओर से अब तक कोई औपचारिक प्रेस रिलीज़ जारी नहीं की गई है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जब तक किसी व्यक्ति की नागरिकता की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उसका नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग के अनुसार, इस विशेष पुनरीक्षण अभियान में लगभग 7.8 करोड़ मतदाताओं के दस्तावेज़ों की जांच की जा रही है, जिसमें 77,000 से अधिक बूथ-लेवल अधिकारी तैनात हैं।


बिहार में यह पूरी कवायद आगामी अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है। सीमावर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों के अवैध रूप से बसने की शिकायतें लंबे समय से मिलती रही हैं। अब आयोग इन सभी मामलों की गहराई से जांच कर रहा है ताकि मतदाता सूची पूरी तरह से शुद्ध और कानूनी तौर पर वैध हो।


यह पूरा मामला आने वाले हफ्तों में और भी गर्मा सकता है क्योंकि राजनीतिक दल इसे अपने-अपने नज़रिए से भुनाने की कोशिश करेंगे। लेकिन चुनाव आयोग की इस पहल को लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।

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