यमन का प्राचीन शहर - “शिबाम” - रेगिस्तान का ‘मैनहटन’ कहलाता है

Jitendra Kumar Sinha
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जब गगनचुंबी इमारतों की बात करते हैं, तो जेहन में न्यूयॉर्क, दुबई या शंघाई जैसे आधुनिक शहरों की तस्वीर उभरती है। लेकिन यमन का एक प्राचीन शहर, “शिबाम”, जिसे “रेगिस्तान का मैनहटन” कहा जाता है।

“शिबाम”, यमन के हदरमौत क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जिसकी शुरुआत लगभग 1,700 साल पहले माना जाता है। हालांकि वर्तमान शहर का प्रमुख विकास 16वीं शताब्दी में हुआ था जब यह हदरमौत साम्राज्य की राजधानी बना था। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां की अधिकांश इमारतें 5 से 11 मंजिल तक ऊँची हैं और वह भी सिर्फ मिट्टी की ईंटों (mud bricks) से बनी हुईं है। इन बहुमंजिला मकानों की वजह से ही “शिबाम” को "दुनिया का पहला गगनचुंबी शहर" और "रेगिस्तान का मैनहटन" कहा जाता है। इन इमारतों को देखकर कोई भी हैरान रह जाता है कि इतनी ऊँचाई सिर्फ कच्ची मिट्टी से कैसे बनाई जा सकती है!

“शिबाम” की इमारतें हदरमी वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इन भवनों में मोटी दीवारें गर्मी को अंदर आने से रोकती हैं और ऊँचाई से शहर को ताजी हवा मिलती है। यही नहीं, पूरी बस्ती एक सुव्यवस्थित ग्रिडनुमा योजना पर आधारित है जिसमें गलियों और चौराहों का पूरा नेटवर्क तय है। यह बताता है कि शिबाम केवल सुंदर ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी दक्ष शहरी नियोजन का परिचायक है।

“शिबाम” केवल वास्तुकला की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह हदरमौत के लोगों की परंपरागत जीवनशैली, मुस्लिम-अरब संस्कृति और सामुदायिक सहयोग का जीवंत मिसाल भी है। यहां का हर घर, हर दीवार इतिहास की गवाही देती है।

1993 में “शिबाम” को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। यह न केवल संरक्षण की दृष्टि से जरूरी था, बल्कि दुनिया को यह भी दिखाने का माध्यम बना कि किस तरह सीमित संसाधनों में भी इंसान असाधारण निर्माण कर सकता है।

“शिबाम” आज भी सिखाता है कि टिकाऊ जीवनशैली और स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके कैसे एक शानदार, जीवंत और पर्यावरण-संवेदनशील शहर बसाया जा सकता है। जहाँ एक ओर आधुनिक शहरों में कंक्रीट और प्लास्टिक का बोलबाला है, वहीं “शिबाम” आज भी मिट्टी में बसकर भी आकाश को छूता है। “शिबाम” केवल एक प्राचीन शहर नहीं है, बल्कि एक दृष्टिकोण है, जहाँ परंपरा और नवाचार एक साथ चलता हैं। 



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