पप्पू यादव की राहुल-खड़गे से गुप्त बैठक ने बढ़ाई लालू-तेजस्वी की चिंता

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार की राजनीति में अचानक तेज हलचल मच गई है। जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव की कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ बंद कमरे में हुई मुलाक़ातों ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है। यह मुलाकातें एक ऐसे समय पर हुई हैं जब बिहार में महागठबंधन को लेकर कई तरह की अटकलें चल रही हैं और 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारियाँ जोरों पर हैं। पप्पू यादव ने इन बैठकों के बाद जो बयान दिए, उनसे साफ संकेत मिलता है कि वे अब केवल समर्थनकर्ता नहीं, बल्कि नेतृत्व की भूमिका में भी दिखना चाहते हैं।


बताया जा रहा है कि पप्पू यादव ने कांग्रेस नेतृत्व के सामने खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने की इच्छा ज़ाहिर की है और कहा है कि वे राहुल गांधी की विचारधारा को हर घर तक पहुंचाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें कांग्रेस नेतृत्व का आशीर्वाद मिल गया है और बिहार की जनता के लिए वे हर मोर्चे पर लड़ने को तैयार हैं। यह बयान ऐसे समय आया है जब महागठबंधन के भीतर पहले से ही सीटों के बंटवारे और नेतृत्व को लेकर खींचतान चल रही है।


पप्पू यादव की सक्रियता से राष्ट्रीय जनता दल के खेमे में बेचैनी देखी जा रही है। तेजस्वी यादव को अब तक महागठबंधन का एकमात्र नेता और संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार माना जा रहा था। लेकिन पप्पू यादव की इस अचानक हुई मुलाकात और उसके बाद दिए गए बयानों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कांग्रेस अब बिहार में अपना स्वतंत्र नेतृत्व गढ़ने की तैयारी कर रही है। आरजेडी के नेताओं ने हालांकि इसे तवज्जो नहीं दी है और कहा है कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है तथा तेजस्वी यादव ही उनका चेहरा रहेंगे।


इस पूरे घटनाक्रम को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पप्पू यादव कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश में हैं। वह खुद को जनता के नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं और यह संकेत दे रहे हैं कि यदि उन्हें सही मंच और मौका मिले तो वे बिहार की राजनीति में बड़ा चेहरा बन सकते हैं। उनके इस रुख से महागठबंधन के भीतर एक नया दबाव बनता नजर आ रहा है, खासकर आरजेडी पर जो अब तक कांग्रेस के साथ तालमेल की शर्तों को अपने अनुसार तय करता रहा है।


पप्पू यादव की छवि एक फायरब्रांड नेता की रही है और वे बिहार के कोसी क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं। अगर कांग्रेस उनके साथ खुलकर जाती है और उन्हें कोई बड़ी भूमिका देती है, तो इससे बिहार की राजनीति में समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। लेकिन इसका खतरा यह भी है कि इससे आरजेडी और कांग्रेस के बीच पहले से मौजूद दरार और गहरी हो सकती है।


फिलहाल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है लेकिन राजनीतिक संकेत साफ हैं कि पार्टी बिहार में अपना आधार बढ़ाने और आरजेडी पर निर्भरता कम करने की दिशा में गंभीरता से सोच रही है। ऐसे में पप्पू यादव की यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक नई सियासी पटकथा की शुरुआत हो सकती है। लालू और तेजस्वी यादव के लिए यह एक चेतावनी भी हो सकती है कि अब गठबंधन की राजनीति में नए चेहरे और नए दावे भी सामने आ रहे हैं।

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