बिहार में चल रहे विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision) को लेकर राजनीतिक माहौल गरमा गया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और चुनाव आयोग मिलकर उन विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं के नाम काटने की साजिश रच रहे हैं, जहाँ पिछली बार आरजेडी को मामूली अंतर से हार मिली थी। उनका कहना है कि यदि 1% वोटरों के नाम भी काटे गए तो उन सीटों पर परिणाम पूरी तरह बदल सकते हैं जहाँ हार-जीत का अंतर सिर्फ कुछ सौ वोटों का रहा था।
तेजस्वी ने कहा कि राज्य में कुल 243 विधानसभा सीटों पर यदि हर जगह औसतन 3251 वोटरों के नाम हटाए जाते हैं, तो यह चुनावी नतीजों को गहरा प्रभावित करेगा। उन्होंने दावा किया कि यह अभियान पूरी तरह से एकतरफा और सुनियोजित है ताकि विपक्षी दलों के वोटर सूची से बाहर हो जाएं और सत्ता पक्ष को लाभ मिले। उन्होंने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वे घर-घर जाकर इस कथित वोट कटौती की जानकारी लोगों को दें और उन्हें जागरूक करें।
तेजस्वी यादव ने यह भी आरोप लगाया कि यह विशेष पुनरीक्षण अभियान केवल दिखावे के लिए चल रहा है। उनके अनुसार, न तो बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर फॉर्म बांट रहे हैं, न ही सही तरीके से मतदाता सूची का संशोधन हो रहा है। इसके बावजूद यह दावा किया जा रहा है कि 80% मतदाता फॉर्म पहले ही भर लिए गए हैं, जो पूरी प्रक्रिया पर संदेह खड़ा करता है। तेजस्वी ने तंज कसते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे घर-घर वोटर फॉर्म नहीं बल्कि जलेबी बांटी जा रही हो।
उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरी प्रक्रिया से गरीब, वंचित और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि इन्हीं के नाम सबसे अधिक काटे जा रहे हैं। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि विदेशों से आए लोगों के नाम मतदाता सूची में जोड़े गए हैं जबकि असली भारतीय मतदाता सूची से बाहर हो रहे हैं। इस पर चुनाव आयोग ने सफाई देते हुए कहा है कि वे विदेशियों की पहचान कर रहे हैं, लेकिन तेजस्वी ने इसे भी खारिज कर दिया और कहा कि यह ‘सूत्र नहीं, मूत्र’ है — यानी यह जानकारी एकदम फालतू और अविश्वसनीय है।
भाजपा की ओर से संजय जायसवाल ने तेजस्वी के बयान को बचकाना करार दिया और कहा कि उन्हें चुनाव प्रक्रिया की समझ ही नहीं है। उन्होंने तेजस्वी को अनपढ़ तक कह दिया। इस बयानबाजी से यह साफ है कि दोनों पक्षों में तीखी टकराहट है और चुनाव से पहले आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज़ हो गया है।
तेजस्वी का कहना है कि वोटर लिस्ट से नाम कटने का सीधा असर जन कल्याणकारी योजनाओं पर भी पड़ सकता है, जैसे मुफ्त राशन, पेंशन, आवास योजना आदि। इसलिए यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों का सवाल है।
इस पूरे विवाद ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। एक तरफ सरकार और चुनाव आयोग पारदर्शिता का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष इसे लोकतंत्र के खिलाफ एक गहरी साजिश मान रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मसला क्या मोड़ लेता है और इसका बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पर क्या असर पड़ता है।
