राहु और केतु को नाग (सर्प) रूप में क्यों दर्शाया गया है ?

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय ज्योतिष और पुराणों में राहु और केतु दो छाया ग्रह माने जाते हैं — अर्थात इनके पास न तो भौतिक शरीर होता है, न कोई स्थायी आकार, फिर भी इनका प्रभाव इतना गहरा होता है कि ये किसी की किस्मत चमका भी सकते हैं और तबाह भी। परंतु एक सवाल जो अक्सर लोगों को चौंकाता है: आख़िर इन्हें हमेशा सांप के रूप में क्यों दिखाया जाता है? क्यों राहु को एक कटा हुआ सिर और केतु को कटा हुआ धड़ माना गया है, और दोनों को नाग की तरह वक्र, रहस्यमय और डरावना दिखाया जाता है?


इसका उत्तर सिर्फ पौराणिक नहीं, प्रतीकात्मक भी है।


सबसे पहले बात करें पौराणिक कथा की — समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत निकाला, तो विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत केवल देवताओं को देने की योजना बनाई। परंतु एक चालाक असुर ‘स्वर्भानु’ ने देवताओं का रूप धरकर अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और तत्काल भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। लेकिन तब तक अमृत गले तक पहुँच चुका था, इसलिए उसका सिर और धड़ दोनों अमर हो गए।


उसका सिर बन गया राहु — बिना धड़ के, और धड़ बन गया केतु — बिना सिर के। इन दोनों को आकाश में ग्रह रूप में स्थापित कर दिया गया, और ये सूर्य-चंद्र से चिर-विरोध में बने रहे।अब सवाल यह है कि इस बिना सिर और बिना धड़ वाले अस्तित्व को सांप क्यों बनाया गया?


यहाँ बात आती है प्रतीकात्मकता की।


सांप यानी नाग, भारतीय संस्कृति में रहस्य, कुंडलिनी ऊर्जा, भय, अवरोध, छुपे हुए दोष, और जन्म-ज्योतिष के अदृश्य प्रभावों का प्रतीक है। राहु और केतु दोनों ही अदृश्य छाया ग्रह हैं, जिनका कोई भौतिक आकार नहीं है — ये सिर्फ ऊर्जा और प्रभाव हैं। जैसे सर्प फुफकारता है, बिना चेतावनी के डसता है और अंधेरे में छिपा रहता है, वैसे ही राहु और केतु भी जीवन में अचानक समस्याएं, भ्रम, डर, मानसिक विकार, ग्रहण, हादसे, अचानक परिवर्तन और रहस्यमयी घटनाएं लाते हैं।


राहु को अक्सर नाग के फन वाला सिर दिखाया जाता है क्योंकि वह बुद्धि, छल, भ्रम, वासना और माया का प्रतीक है। जबकि केतु, बिना सिर का धड़ है जो मोक्ष, रहस्य, कटौती, त्याग, और भीतर की यात्रा का प्रतीक है — वह भी नाग की पूंछ के रूप में दिखता है क्योंकि वह हमारी कुंडलिनी शक्ति के मूल में स्थित है।


इसके अलावा, नाग या सर्प को "ग्रहणकर्ता" भी कहा जाता है। राहु और केतु ही सूर्य और चंद्र ग्रहण के कारण माने जाते हैं। राहु सूर्य या चंद्र को निगलने की कोशिश करता है — ठीक वैसे ही जैसे एक सर्प अपने शिकार को धीरे-धीरे निगलता है।


कुछ विद्वानों के अनुसार, नाग रूप में राहु-केतु इस बात का प्रतीक हैं कि इन ग्रहों का प्रभाव धीरे-धीरे ज़हर की तरह जीवन में फैलता है — पहले भ्रम, फिर फँसाव, फिर तड़प और अंत में विवशता।


इसलिए राहु-केतु को सांपों के रूप में दिखाना सिर्फ पौराणिक कल्पना नहीं, बल्कि गहन ज्योतिषीय प्रतीकवाद है। यह दर्शाता है कि ये छाया ग्रह हमारे जीवन के उन हिस्सों को नियंत्रित करते हैं जो नज़र नहीं आते — भय, भ्रम, आकस्मिक घटनाएं, कर्मों के प्रभाव, और जीवन-मरण के रहस्य।


राहु-केतु को नागों के रूप में समझना हमें यह भी सिखाता है कि इनका ज़हर केवल तब प्रभावी होता है जब हम अज्ञानता, लोभ और मोह में फँसे होते हैं। लेकिन जैसे ही हम ज्ञान, तप और ध्यान के पथ पर आते हैं, यही राहु-केतु आध्यात्मिक उत्थान और मोक्ष के साधन भी बन सकते हैं।


अतः अगली बार जब आप किसी मंदिर में राहु-केतु की नाग रूपी मूर्तियाँ देखें, तो उन्हें सिर्फ डरावना न समझें — बल्कि उस छुपे हुए ज्ञान और चेतना का संकेत समझें जो जीवन की परछाइयों से गुजर कर आत्मा की रोशनी तक पहुँचाती है।

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