बड़े मुंह वाला जीव है - “गुलपर ईल”

Jitendra Kumar Sinha
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समुद्र की गहराइयों में ऐसे अनगिनत जीव बसते हैं जिनके बारे में इंसान ने अब तक बहुत कम जाना है। इन्हीं में से एक है “गुलपर ईल”। यह एक अनोखी और रहस्यमयी मछली है, जो अपने असाधारण आकार और शिकार पकड़ने की अनूठी शैली के लिए जानी जाती है। इसे ‘पेलिकन ईल’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका विशाल, लचीला और पेलिकन पक्षी की चोंच जैसा मुंह इसे बाकी समुद्री जीवों से अलग बनाता है।

“गुलपर ईल” का सबसे बड़ा आकर्षण है इसका मुंह, जो शरीर के बाकी हिस्से की तुलना में असामान्य रूप से बड़ा होता है। यह अपने मुंह को गुब्बारे की तरह फुलाकर अपने से बड़े शिकार को भी आसानी से निगल सकती है। यही वजह है कि इसे समुद्र की गहराइयों में एक खतरनाक शिकारी माना जाता है। इसके लचीले जबड़े और फैलने वाले गले इसे मछलियों, क्रस्टेशियंस और यहां तक कि ऑक्टोपस को भी निगलने में सक्षम बनाता है।

“गुलपर ईल” का शरीर लंबा, पतला और सांप जैसा होता है। औसतन यह 1.5 से 2 मीटर तक लंबा हो सकता है। इसका पिछला हिस्सा रिबन जैसा पतला और लचीला होता है, जो गहरे पानी में तैरने और तेजी से दिशा बदलने में मदद करता है।

“गुलपर ईल” आमतौर पर समुद्र की सतह से 3,000 से 8,000 मीटर की गहराई में पाई जाती है। इस क्षेत्र को एबिसल जोन कहा जाता है, जहां सूरज की रोशनी बिल्कुल नहीं पहुंचती और पानी का दबाव अत्यधिक होता है। वहां का तापमान बेहद ठंडा होता है, लेकिन “गुलपर ईल” ने अपने शरीर की संरचना और व्यवहार में बदलाव कर इस कठिन वातावरण के साथ खुद को पूरी तरह ढाल लिया है।

“गुलपर ईल” की पूंछ के सिरे पर एक खास अंग होता है जो बायोल्यूमिनेसेंस पैदा करता है। यह अंग नीली चमक छोड़ता है, जो अंधेरे में दूर तक दिखाई देता है। इस रोशनी का उपयोग यह अपने शिकार को आकर्षित करने के लिए करती है, जैसे ही कोई छोटा समुद्री जीव इस चमक के पास आता है, “गुलपर ईल” अपने विशाल मुंह को खोलकर उसे निगल जाती है।

“गुलपर ईल” न केवल वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह गहरे समुद्र में खाद्य श्रृंखला का हिस्सा है और छोटे जीवों की आबादी को नियंत्रित करती है।



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