“काशी विश्वनाथ”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 

भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म, आस्था और अध्यात्म का संगम हर कोने में दिखाई देता है। इसी देश में एक ऐसा नगर भी है, जिसे स्वयं भगवान शिव ने अपनी नगरी कहा है, वह है काशी, जिसे आज वाराणसी के नाम से जाना जाता है। यह नगरी न केवल सनातन संस्कृति की आत्मा है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी है। काशी का हृदय है श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, जहां विराजते हैं सातवां ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ।

हिन्दू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग अत्यंत पूज्य माना जाता हैं। 'ज्योति' का अर्थ है प्रकाश और 'लिंग' का अर्थ है प्रतीक या रूप। यह 12 स्थान वह हैं जहां भगवान शिव स्वयं लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इन ज्योतिर्लिंगों की महिमा ऐसी है कि इनके दर्शन से सारे पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनमें सातवें स्थान पर आता है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग। यह मंदिर हिंदुओं के लिए उतना ही पवित्र है जितना मक्का मुसलमानों के लिए और वेटिकन ईसाइयों के लिए।

काशी को 'मोक्ष की नगरी' कहा जाता है। यहाँ यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति काशी में अंतिम सांस लेता है, उसे स्वयं भगवान शिव कान में तारक मंत्र देते हैं, जिससे उसकी आत्मा मुक्त हो जाता है। इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है, यानि वह स्थान जिसे भगवान शिव ने कभी नहीं छोड़ा।

काशी में भगवान शिव का असीम प्रभाव है। यहां 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास माना जाता है। यही वह स्थल है जहां मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार के बाद आत्मा को मोक्ष मिलता है और पास ही स्थित है शक्तिपीठ विशालाक्षी देवी का मंदिर, जो इस क्षेत्र को और भी शक्तिशाली बनाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही संघर्षों भरा भी रहा है। इस मंदिर को अनेक बार विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा लेकिन हर बार इसे फिर से बनाया गया। माना जाता है कि मंदिर का मूल निर्माण आदि शंकराचार्य, राजा हरिश्चंद्र, राजा विक्रमादित्य और अन्य महान राजाओं द्वारा समय-समय पर कराया गया। लेकिन इतिहास के पन्नों में स्पष्ट विवरण 12वीं शताब्दी के बाद मिलता है। मुगल काल में 1194 ई. में मोहम्मद गौरी के आक्रमण में मंदिर नष्ट हुआ था। 1585 ई. में टोडरमल के पुत्र ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। 1669 ई. में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर वहाँ ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई।

18वीं शताब्दी में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र और गुम्बद चढ़वाया, जिससे इसे 'सोने की काशी' कहा जाने लगा।

यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली में बना है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित है, जो चांदी के चौकोर वेदी पर स्थित है। मंदिर का ऊपरी भाग सोने का बना हुआ है और इसके चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें काल भैरव, देवी पार्वती, गणेश, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।

विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है ज्ञानवापी कुआं, जो औरंगजेब द्वारा तोड़े गए पुराने मंदिर का अवशेष माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार, जब मंदिर पर हमला हुआ था तो पुजारियों ने शिवलिंग को कुएं में छिपा दिया था ताकि वह अपवित्र न हो। आज भी यह स्थान हिंदू और मुस्लिम विवाद का केंद्र है, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था अटूट बनी हुई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2019 में आरंभ किया गया काशी विश्वनाथ धाम परियोजना आज एक भव्य तीर्थस्थल बन चुका है। यह कॉरिडोर मंदिर को गंगा नदी के घाटों से जोड़ता है और इससे तीर्थयात्रियों को सहज दर्शन का मार्ग मिला है।

कॉरिडोर के अंतर्गत 400 से अधिक पुराने भवनों का जीर्णोद्धार हुआ है। श्रद्धालुओं के लिए विश्राम गृह, शौचालय, जल सुविधा, संग्रहालय और ध्यान केंद्र बनाए गए हैं। मंदिर परिसर अब करीब 5 लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है।

काशी विश्वनाथ की पूजा प्राचीन वैदिक विधियों से होती है। यहां रुद्राभिषेक, लघु रुद्र, महारुद्र, एकादश रुद्र जैसे विशेष अनुष्ठान होते हैं। श्रद्धालु जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग और पंचामृत से बाबा को अभिषेक करते हैं। यहां की एक विशेष परंपरा है 'दर्शन और स्पर्श पूजा', जिसमें भक्त शिवलिंग को छूकर अभिषेक करते हैं।

महाशिवरात्रि के अवसर पर यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं से भर जाता है। पूरी काशी 'हर-हर महादेव' के जयघोष से गूंजता है। विशेष रात्रि जागरण, रुद्राभिषेक और शिव बारात का आयोजन होता है।

विशेष धार्मिक स्थल में मणिकर्णिका घाट है, जो सबसे प्राचीन श्मशान घाट, मोक्षदायिनी है। काल भैरव मंदिर है, जिन्हें काशी के कोतवाल कहा जाता है और इनकी अनुमति के बिना कोई दर्शन नहीं कर सकता। अन्नपूर्णा मंदिर है जो अन्न की देवी हैं, जिन्हें शिव ने स्वयं प्रतिष्ठित किया था। संकटमोचन मंदिर है जो हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है। दशाश्वमेध घाट  है जो प्रसिद्ध गंगा आरती का स्थान है।

काशी की विशिष्टता यह है कि यहां देवी की नौ रूपों में नौ गौरी और आठ रूपों में अष्ट भैरव पूजित हैं। इन सभी स्थलों के दर्शन करने से भक्त को पूर्ण फल प्राप्त होता है।

यहां मृत्यु को दुख नहीं माना जाता है। मणिकर्णिका घाट पर चिता की आग कभी बुझती नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति काशी में मृत्यु को प्राप्त करता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। यहां की मृत्यु 'मुक्ति का महोत्सव' होता है।

श्रावण मास में लाखों कांवड़िए गंगाजल लेकर काशी आते हैं और बाबा विश्वनाथ को जल अर्पित करते हैं। यह यात्रा जीवन का एक अलौकिक अनुभव होता है, जिसमें आस्था, तपस्या और भक्ति का अनूठा संगम होता है।

बाबा विश्वनाथ की मंगल आरती, भोग आरती, शृंगार आरती और रात्रि आरती अत्यंत भव्य होता है। हर आरती में भक्तों का समूह 'हर हर महादेव' के स्वर से शिव को वंदन करता है। बाबा विश्वनाथ के द्वार पर श्रद्धालु आते हैं जीवन में शांति की तलाश में। पापों से मुक्ति पाने हेतु। इच्छापूर्ति के लिए। मोक्ष की अभिलाषा में और शिव तत्व के साक्षात अनुभव हेतु।

काशी केवल एक शहर नहीं है, यह एक जीवंत चेतना है, एक अनुभूति है जो आत्मा से जुड़ती है। काशी विश्वनाथ केवल शिव का एक रूप नहीं हैं, वह सृष्टि केंद्र हैं। यहाँ आकर जो शिव के साक्षात दर्शन करता है, वह स्वयं को पा लेता है। 'हर हर महादेव' की गूंज के साथ काशी की गलियों में जो भक्ति की अनुभूति होती है, वह संसार के किसी अन्य कोने में संभव नहीं है।



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