भारत जैसे विशाल देश में भूख, कुपोषण और खाद्य सुरक्षा हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। करोड़ों लोग सरकारी राशन व्यवस्था पर निर्भर रहते हैं। इन्हें सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को समय-समय पर मजबूत किया। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव आया "वन नेशन वन राशन कार्ड" (ONORC) योजना से, जिसने देश के किसी भी कोने में रहने वाले पात्र व्यक्ति को राशन लेने का अधिकार दे दिया है।
बिहार इस योजना का सबसे बड़ा लाभार्थी राज्य बनकर उभरा है। हालिया रिपोर्ट बताती है कि औसतन 2.80 लाख बिहार के राशनकार्डधारी हर माह अन्य राज्यों से सरकारी अनाज ले रहे हैं, वहीं करीब 19 लाख राशनकार्डधारी बिहार में रहते हुए भी हर माह राशन नहीं उठाते। यह तस्वीर राज्य के प्रवासी मजदूरों की स्थिति, पलायन की मजबूरी और खाद्य सुरक्षा की वास्तविकताओं पर गहरी रोशनी डालती है।
इस महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा 2019 में हुई और 2020 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। इसका उद्देश्य था कि प्रवासी मजदूरों और गरीब परिवारों को उनके गृह राज्य तक सीमित न रखा जाए। अब कोई भी लाभुक अपने आधार लिंक्ड राशन कार्ड से पूरे देश में कहीं भी सरकारी राशन प्राप्त कर सकता है।
राशनकार्डधारी का आधार और राशनकार्ड डेटा राष्ट्रीय स्तर की प्रणाली (इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ पीडीएस - IMPDS) से जुड़ा होता है। लाभुक चाहे अपने गृह जिले में हो, किसी दूसरे जिले में या दूसरे राज्य में, सिर्फ आधार प्रमाणीकरण से राशन ले सकता है। प्रत्येक माह मुफ्त या सब्सिडी वाले अनाज (गेहूं, चावल आदि) का आवंटन केंद्र सरकार द्वारा तय होता है।
बिहार प्रवासी मजदूरों का सबसे बड़ा जनक राज्य है। लाखों लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत तक रोजगार की तलाश में जाते हैं। ऐसे में जब उन्हें वहीं सरकारी अनाज मिल जाता है तो यह उनके लिए राहत का बड़ा साधन बनता है।
औसतन 2.80 लाख बिहार के राशनकार्डधारी दूसरे राज्यों से हर माह राशन उठा रहे हैं। सबसे अधिक फायदा उठाने वाले राज्य दिल्ली प्रवासी मजदूरों की पहली पसंद, हरियाणा- खासकर गुरुग्राम और फरीदाबाद क्षेत्र, गुजरात- औद्योगिक नगरों जैसे सूरत, अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश- नोएडा और गाजियाबाद बेल्ट। वहीं, दूसरी ओर बिहार में हर माह औसतन 19 लाख राशनकार्डधारी राशन नहीं उठाते हैं।
राशन नहीं उठाने का कारण है प्रवासन, ये लोग अन्य राज्यों में काम करते हैं और वहां से राशन उठा लेते हैं। आर्थिक सुधार, कुछ परिवारों की आय बेहतर हो गई है, उन्हें हर माह राशन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। विकल्प, ग्रामीण क्षेत्रों में कई बार लोग खुले बाजार से अनाज खरीदना पसंद करते हैं। प्रवृत्ति, कुछ लोग सिर्फ त्योहारों या विशेष अवसरों पर राशन उठाते हैं। तकनीकी कारण, आधार लिंक न होना, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की दिक्कतें, कार्ड ब्लॉक होना।
राज्य खाद्य आपूर्ति विभाग इन 19 लाख लाभुकों पर नजर रख रहा है। अगर पाया गया कि ये पात्रता मानदंड से बाहर हैं, तो कार्ड रद्द भी हो सकते हैं।
दिल्ली में काम करने वाले लाखों बिहारी मजदूरों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं है। महंगे किराए और जीवनयापन के बीच जब 5 किलो मुफ्त चावल-गेहूं मिल जाता है, तो उनका बजट संतुलित रहता है। सूरत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री और मुंबई की कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम करने वाले मजदूरों के लिए राशन कार्ड की यह सुविधा बेहद अहम है। कई प्रवासी परिवार अपने बच्चों को भी साथ ले जाते हैं। मुफ्त राशन से उनकी पोषण संबंधी जरूरतें काफी हद तक पूरी हो जाती हैं।
योजना का फायदा सिर्फ राज्य से बाहर ही नहीं बल्कि राज्य के अंदर भी अंतर जिला स्तर पर मिल रहा है। गया से पटना आने वाला मजदूर वहीं राशन उठा सकता है। दरभंगा से भागलपुर पढ़ाई करने आए छात्र का परिवार भी लाभान्वित होता है। इससे लचीलापन और सुविधा दोनों बढ़ी हैं।
योजना की चुनौतियां भी है, तकनीकी समस्याएं बायोमेट्रिक मशीन की खराबी, नेटवर्क की दिक्कतें, आधार सत्यापन की असफलता, डुप्लीकेट कार्ड और फर्जीवाड़ा, कई बार लोग दो राज्यों में कार्ड बनवा लेते हैं। प्रवासी मजदूरों के नाम पर कुछ बिचौलिये फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। जागरूकता की कमी, गांवों में अभी भी बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि वे राज्य के बाहर भी राशन उठा सकते हैं।
बिहार के लिए फायदे और नुकसान भी हैं। फायदे है कि प्रवासी मजदूरों को राहत, खाद्य सुरक्षा का दायरा बढ़ा, योजना पर लोगों का भरोसा बढ़ा और पलायन करने वाले गरीब परिवार सुरक्षित हुए। नुकसान है कि 19 लाख कार्डधारी नियमित लाभ नहीं उठा रहे हैं, यह सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है। अनाज का वितरण असंतुलित, राज्य में आवंटित अनाज का पूरा उपभोग नहीं हो रहा। कार्डधारियों की वास्तविकता पर संशय, कई कार्ड ऐसे भी हो सकते हैं जो फर्जी हों या अप्रयुक्त हों। सरकार फिलहाल इन पर नजर रख रही है। अगर ये लाभुक पात्रता से बाहर पाए गए तो कार्ड निरस्त होंगे। लेकिन अगर यह सिर्फ प्रवासी या कभी-कभार उपयोग करने वाले हैं तो इन्हें सुरक्षित रखा जाएगा। इसके लिए पारदर्शी सर्वे होना चाहिए, हर साल लाभुकों की स्थिति की समीक्षा हो। टेक्नोलॉजी सुधार, ऑफलाइन मोड में भी बायोमेट्रिक की सुविधा हो। जागरूकता अभियान, लोगों को समझाया जाए कि योजना से बाहर होने का खतरा न लें। फर्जीवाड़ा रोकना, डुप्लीकेट कार्डों की पहचान और रद्दीकरण जरूरी।
बिहार की यह तस्वीर बताती है कि “वन नेशन वन राशन कार्ड योजना” प्रवासी मजदूरों और गरीब परिवारों के लिए जीवनदायिनी है। औसतन 2.80 लाख लोग हर माह बाहर से राशन उठा रहे हैं, यह न सिर्फ योजना की सफलता है बल्कि देश की एकजुटता की मिसाल भी है। हालांकि 19 लाख कार्डधारियों द्वारा हर माह राशन न उठाना एक चुनौती है। सरकार को यह देखना होगा कि यह स्थिति प्रवासन, आर्थिक सुधार या फर्जीवाड़े के कारण है। कुल मिलाकर, यह योजना भारत की "एक राष्ट्र, एक पहचान, एक अधिकार" की परिकल्पना को मूर्त रूप देती है और भूख के खिलाफ जंग को मजबूत बनाती है। बिहार के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में यह राज्य खाद्य सुरक्षा और प्रवासी मजदूर कल्याण दोनों के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि दर्ज करेगा।
