पूर्वजों की स्मृति और आशीर्वाद पाने का समय - “पितृपक्ष” - 7 सितंबर, 2025 से होगा शुरु

Jitendra Kumar Sinha
0

 

 

   

हिन्दू धर्म में श्राद्ध या पितृपक्ष एक ऐसा विशेष समय है जब लोग अपने दिवंगत पितरों को स्मरण करते हैं, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए धार्मिक कर्मकांड करते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हो रही है और इसका समापन 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा। लगभग पंद्रह से सोलह दिनों तक चलने वाला यह पर्व केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करने का पावन अवसर भी है।

शास्त्रों में कहा गया है कि "कुर्वीत श्राद्धं पितृदेवताभ्यः।" अर्थात् श्राद्ध पितरों और देवताओं दोनों को संतुष्ट करता है। मान्यता है कि इन दिनों पितरों की आत्मा धरती पर अपने वंशजों के पास आती हैं और उनसे अन्न, जल और सम्मान की अपेक्षा करती हैं। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान द्वारा उन्हें तृप्त किया जाता है। जब पितर प्रसन्न होते हैं, तो वे अपने वंश को सुख-शांति, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।

पितृपक्ष की अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलती है। इस दौरान पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।

जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात होती है, उनका श्राद्ध उसी तिथि पर किया जाता है। जिनकी तिथि याद नहीं रहती, उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को किया जाता है। श्राद्ध करते समय तिल, कुश, जल और ताजा अन्न का प्रयोग आवश्यक माना जाता है।

श्राद्ध और पिंडदान के लिए बिहार का गया जी सबसे प्रमुख तीर्थ माना जाता है। मान्यता है कि गया जी में किया गया पिंडदान पितरों को मोक्ष प्रदान करता है। इसके अलावा प्रयागराज, काशी, हरिद्वार, गया जी के फल्गु नदी तट और अन्य पवित्र नदियों के किनारे श्राद्ध और तर्पण का आयोजन किया जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज अदृश्य रूप से अपने वंशजों से मिलने आते हैं। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह अवसर परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम है। यह पर्व अपने पूर्वजों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनकी दी हुई परंपराओं को याद करने का अवसर देता है। साथ ही, दान-पुण्य और ब्राह्मण भोज जैसे कार्य समाज में परस्पर सहयोग और करुणा की भावना को भी बढ़ाता है।

पितृपक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह अपने मूल, अपनी परंपरा और अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर है। इन दिनों किए गए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से जहां पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है, वहीं घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वातावरण भी स्थापित होता है। इसलिए पितृपक्ष को श्रद्धा और निष्ठा के साथ मनाना हर व्यक्ति का कर्तव्य माना गया है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top