“शिक्षक दिवस” पर होगा प्रदर्शन - 25 अगस्त से मशाल जुलूस - 5 सितंबर को मुख्यमंत्री का घेराव

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार के संबद्ध डिग्री कॉलेजों के शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारी इस वर्ष शिक्षक दिवस को एक अलग अंदाज में मनाने की तैयारी कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि लंबे समय से उनकी मांगें अनसुनी की जा रही हैं, इसलिए अब आंदोलन का रास्ता अपनाना ही पड़ेगा। इसी सिलसिले में रविवार को वीर कुंवर सिंह पार्क में हुई बैठक में आंदोलन की रूपरेखा तय की गई।

बैठक की अध्यक्षता डॉ. कुमार राकेश कानन ने की, जिसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों से जुड़े शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारी बड़ी संख्या में शामिल हुए। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि 25 अगस्त से राज्य के प्रत्येक विश्वविद्यालय वाले जिला मुख्यालय पर मशाल जुलूस निकाला जाएगा। यह जुलूस सरकार को चेतावनी देने का काम करेगा कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आंदोलन और उग्र होगा।

बैठक में यह भी तय हुआ कि 18 अगस्त से राज्य के सभी संबद्ध डिग्री कॉलेजों में संगठन के बैनर के साथ काले झंडे लगाए जाएंगे। इसका उद्देश्य सरकार तक यह संदेश पहुंचाना है कि शिक्षकों और कर्मचारियों में आक्रोश है और वे अब चुप नहीं बैठेंगे।

शिक्षकों ने घोषणा की है कि 5 सितंबर, जिसे देशभर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, उस दिन वे पटना में बड़ा प्रदर्शन करेंगे। इसमें सभी शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारी सिर पर काली पट्टी बांधकर गांधी मैदान से डाकबंगला चौराहा होते हुए आयकर गोलंबर तक मार्च करेंगे और अंत में मुख्यमंत्री का घेराव करेंगे। उनका कहना है कि शिक्षक दिवस पर यह प्रदर्शन उनके दर्द और असंतोष की गवाही देगा।

शिक्षकों और कर्मचारियों का आरोप है कि लंबे समय से उनकी सेवा शर्तों, वेतनमान और पदोन्नति संबंधी मांगों पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। कई बार पत्राचार और वार्ता के बावजूद समाधान नहीं निकला। अब मजबूर होकर उन्हें विरोध का रास्ता अपनाना पड़ रहा है।

शिक्षकों का कहना है कि यह आंदोलन केवल उनके हितों के लिए नहीं है, बल्कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के भविष्य के लिए भी है। उनका तर्क है कि जब तक शिक्षकों की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना संभव नहीं है।

अब सबकी नजर 25 अगस्त से शुरू होने वाले मशाल जुलूस और 5 सितंबर के बड़े प्रदर्शन पर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस बढ़ते दबाव का सामना कैसे करती है और क्या शिक्षकों की मांगों पर कोई सकारात्मक कदम उठाया जाता है या नहीं।



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