आभा सिन्हा, पटना
भारत भूमि में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिदृश्य का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र भी है। महाराष्ट्र के नासिक जिला के ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित यह तीर्थस्थल गोदावरी नदी के उद्गम के कारण भी प्रसिद्ध है। त्र्यंबकेश्वर का अर्थ है "तीनों नेत्रों वाला ईश्वर", और यह शिवजी के त्रिनेत्र रूप की प्रतीकात्मक व्याख्या करता है।
भारत में द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंगों की मान्यता है, जो भगवान शिव के आत्मज्योति से प्रकट हुए हैं। हर ज्योतिर्लिंग का अपना पौराणिक, आध्यात्मिक और भौगोलिक महत्व है। त्र्यंबकेश्वर इस श्रृंखला का आठवां ज्योतिर्लिंग है, और यह इकलौता ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां शिव के साथ ब्रह्मा और विष्णु की भी पूजा होती है।यहां शिवलिंग के स्थान पर एक पिंडी (गोलाकार पवित्र प्रस्तर) है जिसमें तीन अलग-अलग ब्रह्मांडीय शक्तियों का वास माना जाता है, वह है ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार गौतम ऋषि ने यज्ञ करके वर्षा की कृपा प्राप्त की थी, जब सारे ऋषि-संत अकाल से त्रस्त थे। जल संकट के समाधान के लिए उन्होंने गोदावरी नदी को धरती पर बुलाया, जिसके बाद यह ब्रह्मगिरि पर्वत से बहने लगी। इसी पवित्र क्षेत्र में शिवजी ने स्वयं प्रकट होकर त्र्यंबकेश्वर रूप में निवास किया। यह क्षेत्र इतना पवित्र है कि गंगा, यमुना और सरस्वती की ऊर्जा भी यहां गोदावरी में समाहित माना जाता है।
अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में जहाँ शिवलिंग ऊँचा होता है, वहीं त्र्यंबकेश्वर में शिवलिंग गर्त में स्थित है, जो सदा जल में डूबा रहता है। यहां का शिवलिंग प्राकृतिक क्षरण (erosion) के कारण धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है, जिसे हिंदू धर्म में कलियुग के प्रभाव का प्रतीक माना जाता है। यहाँ शिवलिंग के साथ ब्रह्मा और विष्णु के भी प्रतीकात्मक लक्षण हैं, जो इसे ‘त्रिदेव ज्योतिर्लिंग’ बनाता हैं। यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ शिव के साथ सृष्टि के अन्य दोनों संचालनकर्ता भी प्रतिष्ठित हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना साहेब पेशवा) द्वारा 18वीं सदी में करवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला नागर शैली पर आधारित है। मंदिर काले पत्थरों से बना है और इसकी ऊंची शिखर पर स्थित स्वर्ण कलश और त्रिशूल इसकी दिव्यता में चार चांद लगाता हैं। मुख्य मंडप में विशाल नक्काशीदार स्तंभ, गर्भगृह और मंडप, सब मिलकर भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता हैं। मंदिर के चारों ओर छोटे-छोटे तीर्थकुंड हैं, जिनमें से कुशावर्त कुंड सबसे प्रमुख है, जो गोदावरी का मुख्य उद्गम माना जाता है।
मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1690 में त्र्यंबकेश्वर मंदिर पर हमला कर यहां स्थित शिवलिंग को क्षतिग्रस्त कर दिया था। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, उसने मंदिर के ऊपर एक मस्जिद का गुम्बद बनवाया, जिससे हिन्दू आस्था को चोट पहुँची। इसी कारण से आज त्र्यंबकेश्वर में मूल शिवलिंग नहीं है बल्कि उसे प्रतीकात्मक रूप से पूजा जाता है। हालांकि बाद में पेशवाओं ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया और फिर से इसे धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाया।
त्र्यंबकेश्वर वह स्थान है जहाँ हर 12 वर्षों में कुंभ मेला लगता है। यह भारत के चार पवित्र कुंभ स्थलों- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक, में से एक है। यहां कुंभ के दौरान गोदावरी तट पर लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं। यह मेला हिन्दू धर्म की आस्था और संस्कृति का वैश्विक प्रतीक बन गया है।
त्र्यंबकेश्वर के पास स्थित कुशावर्त तीर्थ एक पवित्र कुंड है, जिसे गोदावरी का प्रारंभिक स्रोत माना जाता है। यहां स्नान करने से सारे पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी अद्वितीय है। यहां हर दिन हजारों श्रद्धालु पुण्य प्राप्त करने आते हैं।
त्र्यंबकेश्वर में अनेक प्रकार के विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता हैं, जिनमें नारायण नागबली, कालसर्प दोष निवारण और पितृ दोष पूजा प्रमुख हैं। भारत के कोने-कोने से लोग इन विशेष पूजा विधियों के लिए यहाँ आते हैं, ताकि अपने जीवन में सुख-शांति और पितृ संतोष की प्राप्ति हो सके।
त्र्यंबकेश्वर में मनाए जाने वाले मुख्य त्योहार में महाशिवरात्रि- इस दिन लाखों भक्त मंदिर में रात्रि जागरण करते हैं और भगवान त्र्यंबकेश्वर का जलाभिषेक करते हैं। श्रावण मास- पूरे महीने यहाँ विशेष पूजा होती है और शिवभक्त कांवर लेकर आते हैं। कुंभ मेला- हर 12 वर्षों में आयोजित इस महाकुंभ का अलग ही महत्व है। गणेश चतुर्थी और दीपावली- सांस्कृतिक आयोजन और विशेष आरतियाँ होती हैं।
त्र्यंबकेश्वर आने वाले पर्यटक केवल धर्म ही नहीं, अपितु प्राकृतिक सौंदर्य और पुरातात्विक विरासत का भी अनुभव करते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत पर ट्रेकिंग, गोदावरी घाट पर आरती, मंदिर परिसर में ध्यान और त्र्यंबक शहर की गलियों में धार्मिक सौंदर्य, सभी मिलकर एक पूर्ण आध्यात्मिक अनुभव देता हैं।
त्र्यंबकेश्वर केवल एक तीर्थ नहीं है, एक जीवंत आध्यात्मिक अनुभव है। यहाँ का शिवलिंग भले ही गर्त में स्थित है, लेकिन उससे उठती अध्यात्म की ज्योति भक्तों के अंतःकरण को प्रकाशित करता है। यह वह स्थान है जहाँ तीनों देवों का वास, गोदावरी का उद्गम, और कुंभ की दिव्यता एक साथ मिलती है। यह ज्योतिर्लिंग एक ओर जहां शिवभक्तों के लिए मोक्ष का द्वार है, वहीं भारतीय सभ्यता, संघर्ष और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक भी है। त्र्यंबकेश्वर न केवल शिव का निवास है, बल्कि एक सांस्कृतिक जागरण स्थल भी है, जो आज भी अपने कण-कण में संस्कार, तप, और शुद्धता को समेटे हुए है।
