1 सितंबर से बंद होगी कैशलेस सुविधा

Jitendra Kumar Sinha
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देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े एक बड़े फैसले ने लाखों बीमा उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ा दी है। एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (AHPI) ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके सदस्य अस्पताल 1 सितंबर से बजाज आलियांज और केयर हेल्थ इंश्योरेंस की कैशलेस सुविधा बंद कर देंगे। इस निर्णय का असर करीब 15 हजार अस्पतालों पर होगा, यानी इन दोनों कंपनियों के पॉलिसीधारकों को इलाज के समय सीधे अस्पताल में भुगतान करना पड़ेगा और बाद में उन्हें बीमा क्लेम की प्रक्रिया से गुजरना होगा।


अस्पतालों का कहना है कि लंबे समय से बीमा कंपनियां इलाज की दरों को यथावत बनाए हुए हैं जबकि स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक लागत लगातार बढ़ रही है। दवाओं, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का वेतन, मेडिकल उपकरणों की कीमत, बिजली और अन्य खर्च लगातार बढ़ चुके हैं लेकिन बीमा कंपनियां टैरिफ को समायोजित करने से इनकार कर रही हैं। नतीजा यह हुआ है कि अस्पतालों के लिए कैशलेस सुविधा आर्थिक रूप से बोझिल साबित हो रही है।


इसके अलावा अस्पताल प्रबंधन का आरोप है कि बीमा कंपनियां समय पर भुगतान नहीं करतीं। क्लेम सेटलमेंट में महीनों की देरी होती है, साथ ही कई बार अनुचित कटौती कर दी जाती है। इससे अस्पतालों की नकदी स्थिति प्रभावित होती है। ऊपर से कंपनियां बड़ी संख्या में दस्तावेजों की मांग करती हैं जिससे प्रशासनिक कामकाज का बोझ और बढ़ जाता है। अस्पतालों का कहना है कि इन सब कारणों से उनके पास कैशलेस सेवा रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।


मरीजों और उनके परिजनों पर इसका सीधा असर पड़ेगा। अभी तक पॉलिसीधारक कैशलेस सुविधा का लाभ उठाकर इलाज करवा लेते थे और खर्च सीधे बीमा कंपनी से निपट जाता था। लेकिन 1 सितंबर से उन्हें पूरा बिल अस्पताल में अपनी जेब से चुकाना होगा और बाद में रीइम्बर्समेंट क्लेम दाखिल करना होगा। यह न केवल आर्थिक दबाव बढ़ाएगा बल्कि आपात स्थिति में मरीजों के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है।


जानकारी के मुताबिक, AHPI ने पहले केयर हेल्थ इंश्योरेंस को नोटिस देकर कहा था कि यदि 31 अगस्त तक समाधान नहीं निकला तो उसकी कैशलेस सुविधा भी बंद कर दी जाएगी। चूंकि समय पर कोई ठोस समाधान नहीं निकला, अब बजाज आलियांज के साथ-साथ केयर हेल्थ पर भी यह फैसला लागू होगा।


इस पूरे विवाद में बीमा कंपनियों का कहना है कि वे मरीजों के हित में काम कर रही हैं और क्लेम को लेकर उनके पास भी नियामक दिशानिर्देश हैं। हालांकि अस्पतालों का तर्क है कि यदि बीमा कंपनियां समय पर भुगतान और टैरिफ में बढ़ोतरी सुनिश्चित करें तो कैशलेस सेवा को तुरंत बहाल किया जा सकता है।


कुल मिलाकर यह विवाद एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं और बीमा कंपनियों के बीच जारी खींचतान को उजागर करता है। इसका खामियाजा सीधे उन लाखों पॉलिसीधारकों को भुगतना पड़ेगा जिन्होंने अस्पताल में बगैर पैसे दिए इलाज करवाने की सुविधा के लिए बीमा लिया था। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में सरकार या नियामक संस्थाएं इस मामले में हस्तक्षेप करती हैं या नहीं, क्योंकि यदि समाधान नहीं निकला तो आम लोगों पर भारी बोझ पड़ना तय है।

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