चुनाव आयोग और राहुल गांधी के बीच टकराव ने ताज़ा राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग भाजपा की मदद से “वोट चोरी” कर रहा है और मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ है। उन्होंने कहा कि लाखों नाम गलत तरीके से जोड़े और हटाए गए हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठता है। अपनी ‘वोट अधिकार यात्रा’ के दौरान उन्होंने जनता के सामने यह मुद्दा जोरदार तरीके से रखा और दावा किया कि लोकतंत्र खतरे में है।
राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि आयोग को लेकर बनाए गए नए कानूनों से उसकी जवाबदेही कम हो गई है और वह सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम कर रहा है। उन्होंने आंकड़ों और तथ्यों के जरिए दिखाने की कोशिश की कि कई राज्यों में मतदाता सूची में डुप्लीकेट और फर्जी नाम मौजूद हैं।
चुनाव आयोग ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर इन आरोपों का खंडन किया और राहुल गांधी को चुनौती दी कि वे अपने दावे को साबित करें। आयोग ने साफ कहा कि यदि सात दिनों के भीतर हलफनामा और ठोस सबूत नहीं दिए गए, तो इन आरोपों को निराधार मान लिया जाएगा। आयोग ने यह भी दोहराया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में मत चोरी की कोई संभावना नहीं है और मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और कानूनी है।
बिहार में चल रही विशेष मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठे थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आयोग ने 65 लाख हटाए गए नामों की सूची को ऑनलाइन उपलब्ध कराया और दावा किया कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना स्पष्ट होती है।
यह पूरा घटनाक्रम दिखाता है कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका कितनी अहम और संवेदनशील है। एक ओर राहुल गांधी और विपक्षी दलों का आरोप है कि आयोग निष्पक्ष नहीं है, वहीं दूसरी ओर आयोग अपने निर्णयों और प्रक्रियाओं को सही ठहराते हुए विपक्ष से सबूत मांग रहा है। नतीजा यह है कि देश की राजनीति में “वोट चोरी” बनाम “पारदर्शिता” की बहस ने नया मोर्चा खोल दिया है।
