नालंदा में सड़क हादसे के बाद भड़के ग्रामीणों ने मंत्री श्रवण कुमार और विधायक प्रेम मुखिया पर किया हमला

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार के नालंदा जिले के मलावां गांव में पिछले दिनों हुए एक दर्दनाक सड़क हादसे ने पूरे इलाके को शोक और गुस्से से भर दिया। इस हादसे में एक तेज़ रफ्तार ट्रक ने एक ऑटो को टक्कर मार दी थी। ऑटो में सवार लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे और टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि नौ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। गांव में अचानक फैली इस त्रासदी ने न सिर्फ परिवारों को उजाड़ दिया बल्कि पूरे इलाके को आक्रोश से भर दिया।


हादसे के दो-तीन दिन बाद ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार और हिलसा के विधायक कृष्ण मुरारी उर्फ़ प्रेम मुखिया गांव पहुंचे। उनका मकसद पीड़ित परिवारों से मिलकर संवेदना जताना था, लेकिन ग्रामीणों की नजर में उनका यह दौरा केवल औपचारिकता बनकर रह गया। ग्रामीणों का आरोप था कि मंत्री और विधायक इतने बड़े हादसे के बाद तुरंत नहीं आए, और जब आए भी तो बस दिखावे के लिए आए। लोगों को उम्मीद थी कि सरकार और उनके प्रतिनिधि तुरंत पीड़ित परिवारों के साथ खड़े होंगे, मदद और राहत का ऐलान करेंगे, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उनका गुस्सा फूट पड़ा।


जैसे ही मंत्री और विधायक गांव में दाखिल हुए, माहौल बिगड़ गया। पहले लोगों ने नारेबाजी की, फिर देखते ही देखते लाठी-डंडे निकल आए और दोनों नेताओं पर हमला कर दिया गया। भगदड़ मच गई, गाड़ियाँ क्षतिग्रस्त हुईं और अफरातफरी का माहौल बन गया। मंत्री और विधायक को अपनी जान बचाने के लिए लगभग एक किलोमीटर तक दौड़ना पड़ा। इस दौरान उन्हें कई बार गाड़ियाँ बदलनी पड़ीं, तब जाकर वे सुरक्षित निकल पाए। उनके सुरक्षाकर्मी और बॉडीगार्ड भी हमले में घायल हो गए।


हमले के तुरंत बाद पुलिस बल की तैनाती कर दी गई और पूरे गांव को सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। मामले की जांच शुरू हो चुकी है। जेडीयू नेताओं ने इस हमले को विपक्ष की साजिश करार दिया और कहा कि सरकार के प्रतिनिधियों पर हमला सोची-समझी योजना के तहत कराया गया। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि उनका गुस्सा पूरी तरह स्वाभाविक था क्योंकि जिन परिवारों ने अपने प्रियजन खो दिए थे, उनकी सुध लेने में नेताओं ने देर कर दी।


यह घटना बिहार की राजनीति और जनता के बीच के रिश्ते पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। जनता का मानना है कि उनके दुख-दर्द में नेता केवल औपचारिकता निभाने आते हैं, जबकि असली जरूरत के समय वे नदारद रहते हैं। दूसरी तरफ, राजनीतिक दल इसे विपक्ष की चाल बताकर टालने की कोशिश कर रहे हैं। सच्चाई चाहे जो भी हो, इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि जनता का धैर्य अब टूट चुका है।

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