रक्षाबंधन के बाद राखी हमेशा सम्मानपूर्वक उतारना चाहिए

Jitendra Kumar Sinha
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रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक त्योहार है। यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि भाई और बहन के बीच अटूट प्रेम, विश्वास और सुरक्षा के वचन का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर न केवल उसके जीवन में खुशहाली और सुरक्षा की कामना करती है, बल्कि भाई भी बहन की रक्षा का संकल्प लेता है।


राखी एक छोटा-सा धागा, केवल रंग-बिरंगे रेशों का गुच्छा नहीं होता है, बल्कि यह रिश्तों की गरिमा और पवित्रता का संदेश देने वाला एक भावनात्मक प्रतीक है। लेकिन, रक्षाबंधन के बाद एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में आता है कि "राखी को कब और कैसे उतारना चाहिए?"


यह प्रश्न केवल व्यवहारिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि राखी को सम्मानपूर्वक विसर्जित करना भाई-बहन के रिश्ते और इस पवित्र धागे की गरिमा को बनाए रखने का हिस्सा है।


रक्षाबंधन का उल्लेख महाभारत, पुराणों और कई ऐतिहासिक घटनाओं में मिलता है। द्रौपदी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहने पर अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधना, या मेवाड़ की रानी कर्णावती द्वारा मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजना, यह घटनाएं इस पर्व की गरिमा को दर्शाता है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राखी बांधने से भाई-बहन के रिश्ते में शुभता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। यह धागा एक प्रकार का संरक्षण कवच होता है, जो नकारात्मक ऊर्जा और संकटों से रक्षा करता है। आज के समय में रक्षाबंधन का दायरा केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं रहा। कई जगह इसे मित्रता, सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।


राखी उतारने के लिए कोई सार्वभौमिक समय-सीमा तय नहीं है। यह पूरी तरह परिवार की परंपरा और व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है।  कुछ लोग मानते हैं कि राखी तीन दिन तक पहनना शुभ होता है। सप्ताह भर पहनने का प्रचलन भी है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। कई लोग मानते हैं कि 11वें दिन राखी उतारना शुभ और पूर्ण माना जाता है। शहरों में व्यस्त जीवन के कारण कुछ लोग इसे अगले दिन ही उतार देते हैं। कुछ लोग राखी उतारते समय भगवान के समक्ष प्रार्थना करते हैं कि भाई-बहन का रिश्ता हमेशा मजबूत रहे।


राखी को कभी भी खींचकर या काटकर नही निकालना चाहिए। साफ हाथों से धीरे-धीरे खोलकर उतारना श्रेष्कर होता है। राखी उतारने से पहले भगवान या कुलदेवी-देवता के सामने कुछ क्षण ध्यान करके भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती के लिए आशीर्वाद मांगना चाहिए। राखी उतारकर उसे किसी साफ कपड़े या थाली में रखना चाहिए।


राखी को घर के पूजा स्थल या मंदिर में रखा जा सकता है। इसे पवित्र बक्से या थाली में संभालकर रखा जा सकता है। गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों या घर के मंदिर में रखे जल में विसर्जन किया जा सकता है। यह विधि राखी के सम्मान को बनाए रखता है। पीपल, तुलसी या नीम के पेड़ पर राखी बांधना एक प्राचीन परंपरा है। यह प्रकृति के प्रति सम्मान और शुभता का प्रतीक है।


राखी को कूड़े में नही फेंकना चाहिए। बाथरूम या अशुद्ध स्थान पर न रखना चाहिए। राखी को जलाने से बचना चाहिए क्योंकि यह एक पवित्र वस्तु है। उत्तर भारत में राखी को पूजा स्थल में रखकर अगले रक्षाबंधन पर विसर्जन करने की परंपरा है। पश्चिमी भारत में गुजरात और राजस्थान में राखी को तुलसी के पौधे पर बांधना शुभ माना जाता है। पूर्वी भारत में बंगाल में राखी को मिट्टी में गाड़कर या नदी में प्रवाहित किया जाता है। दक्षिण भारत में कई जगह राखी को घर की देवी के मंदिर में अर्पित किया जाता है। कई लोग राखी को डायरी, फोटो एलबम या विशेष बक्से में रखते हैं। यह भाई-बहन के रिश्ते की याद को संजोने का तरीका है।


राखी बांधना भाई-बहन में भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ाता है। यह एक प्रतीकात्मक सुरक्षा कवच के रूप में मन में आत्मविश्वास पैदा करता है। रक्षाबंधन का यह संदेश है कि "रिश्ते केवल खून से नहीं, बल्कि प्रेम से बनते हैं" सामाजिक सद्भाव को मजबूत करता है।


राखी केवल एक धागा नहींहै, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते का पवित्र बंधन है। रक्षाबंधन के बाद इसे कब और कैसे उतारना है, यह भले ही व्यक्ति की इच्छा या परिवार की परंपरा पर निर्भर करता हो, लेकिन इसे हमेशा सम्मानपूर्वक उतारना और संभालना चाहिए। चाहे इसे पूजा स्थल में रखें, पवित्र पेड़ पर बांधें, नदी में विसर्जित करें या स्मृति के रूप में संजोकर रखें, मुख्य बात यह है कि इस पवित्र धागे की गरिमा बनी रहे।

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