दिल्ली से लौटते ही लालू प्रसाद यादव ने महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे की अनिश्चितता के बीच राजद के टिकट वितरण की प्रक्रिया शुरू कर दी। जैसे ही वे 10 सर्कुलर रोड स्थित राबड़ी देवी के आवास पर पहुँचे, वहाँ टिकट की उम्मीद लगाए सैकड़ों कार्यकर्ता और नेता जुट गए। माहौल इतना भीड़भाड़ वाला था कि कुछ देर के लिए भगदड़ जैसी स्थिति बन गई।
लालू यादव ने कई उम्मीदवारों को वहीं पर पार्टी का चुनाव चिह्न और टिकट थमा दिए। इस दौरान उनके साथ तेजस्वी यादव भी मौजूद थे, जिन्होंने कुछ नामों पर अंतिम मुहर लगाई। इस टिकट वितरण में जिन प्रमुख नामों का खुलासा हुआ, उनमें पर्वत्ता से सुनील सिंह, मटिहानी से नरेंद्र कुमार सिंह उर्फ़ बोगो सिंह, और चंद्रशेखर यादव शामिल हैं। इसके अलावा विधायक भाई वीरेंद्र और इस्राइल मंसूरी जैसे पुराने चेहरों को भी दोबारा मौका मिला।
राजद ने जिन उम्मीदवारों को चुना है, उनमें भूमिहार और अन्य ऊँची जातियों के प्रत्याशी भी शामिल हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह तेजस्वी यादव की नई रणनीति है—महागठबंधन की परंपरागत सामाजिक समीकरण से बाहर निकलकर नई जातीय गणित बनाने की कोशिश। राजद इस बार भूमिहार और ऊँची जातियों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना चाहता है, जो अब तक NDA का पारंपरिक वोट बैंक मानी जाती रही हैं।
हालाँकि, इस कदम ने महागठबंधन के भीतर असमंजस पैदा कर दिया है। कांग्रेस और वाम दल अब भी सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बना पाए हैं, और लालू यादव का यह एकतरफ़ा कदम उन्हें दबाव में डालने वाला माना जा रहा है। कुछ नेताओं ने इसे अनुशासनहीनता बताया है, जबकि राजद समर्थक इसे राजनीतिक चतुराई करार दे रहे हैं।
लालू यादव का यह निर्णय संदेश देता है कि वे गठबंधन के भीतर भी नेतृत्व की बागडोर अपने हाथों में रखना चाहते हैं। चुनावी मौसम में जब हर दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, तब लालू का यह आत्मविश्वास उनके पुराने राजनीतिक तेवरों की याद दिलाता है। यह कदम चाहे विवादित हो, पर एक बात स्पष्ट है — बिहार की राजनीति में लालू यादव अब भी खेल के सबसे अनुभवी खिलाड़ी हैं।
