सुप्रीम कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति को लेकर एक बार फिर स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह कोई मौलिक या कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि एक विशेष सहानुभूति आधारित रियायत है। अदालत ने साफ शब्दों में कहा है कि किसी दिवंगत कर्मचारी के आश्रित को दी जाने वाली अनुकंपा नौकरी का उद्देश्य परिवार को अचानक उत्पन्न आर्थिक संकट से उबारना होता है, न कि उसे उसकी योग्यता से परे या मनचाहा ऊँचा पद प्रदान करना।
जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति का मूल आधार “मानवीय दृष्टिकोण” है। यह उस स्थिति में दी जाती है जब कर्मचारी की सेवा काल में मृत्यु हो जाती है और परिवार के सामने आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे में सरकार या नियोक्ता एक अपवादस्वरूप नौकरी देता है ताकि परिवार सम्मानजनक ढंग से जीवन यापन कर सके।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति को सामान्य भर्ती प्रक्रिया के समान नहीं माना जा सकता है। सामान्य नियुक्तियों में संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समान अवसर और प्रतियोगिता का सिद्धांत लागू होता है, जबकि अनुकंपा नियुक्ति इन्हीं सिद्धांतों से एक सीमित अपवाद है। इसका दायरा बहुत संकुचित है और इसे अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल पात्रता के आधार पर यह मांग नहीं की जा सकती है कि आश्रित को उच्च पद पर नियुक्त किया जाए। यदि कोई व्यक्ति न्यूनतम योग्यता रखता है और नीतियों के अनुसार उपयुक्त पद के लिए पात्र है, तो उसे उसी श्रेणी में नियुक्ति दी जा सकती है। ऊँचे पद की मांग करना अनुकंपा नियुक्ति की मूल भावना के विरुद्ध है।
फैसले में यह भी रेखांकित किया गया है कि समय बीत जाने के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग करना भी उचित नहीं है। यदि कर्मचारी की मृत्यु के कई वर्ष बाद परिवार आर्थिक रूप से स्थिर हो चुका है, तो अनुकंपा नियुक्ति का औचित्य समाप्त हो जाता है। इसका उद्देश्य स्थायी रोजगार देना नहीं है, बल्कि तत्काल राहत प्रदान करना है।
यह निर्णय उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहां अनुकंपा नियुक्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चलते रहे हैं। कई बार इसे अधिकार की तरह प्रस्तुत कर उच्च पद, वेतन या पदोन्नति की मांग की जाती रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट संदेश है कि अनुकंपा नियुक्ति न तो विरासत में मिलने वाली नौकरी है और न ही यह समानता के संवैधानिक सिद्धांतों को दरकिनार करने का माध्यम।
शीर्ष अदालत का यह फैसला संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जहां एक ओर मानवीय संवेदना को महत्व दिया गया है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित किया गया है कि अनुकंपा नियुक्ति का दुरुपयोग न हो और यह अपने सीमित, मूल उद्देश्य तक ही सिमटी रहे।
